सुकमा जिले के धुर नक्सल गढ़ के गांवों से आई लोकतंत्र की बहुत ही खूबसूरत तस्वीर

0  इन तस्वीरों में है बस्तर के सुनहरे भविष्य की उम्मीद की सतरंगी किरण 
0 12 किमी पैदल चलकर मतदान करने पहुंचे ग्रामीण 
0 कुछ ट्रैक्टर से पहुंचे, कुछ बच्चों को कंधे पर लादकर 
(अर्जुन झा) जगदलपुर। जिस नक्सल गढ़ में कोई भी चुनाव पुरसुकून अंदाज में नहीं निपटता था, उसी लाल आतंक के गढ़ में अब लोकतंत्र की खूबसूरत तस्वीर देखने को मिल रही है। बस्तर लोकसभा सीट के लिए 19 अप्रैल को हुए मतदान के दौरान लगा कि बस्तर के आदिवासी भी अपने लोकतंत्र को लेकर बेहद संजीदा हैं। उनका भरोसा नक्सलवाद से उठ चुका है और अब वे भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने में विश्वास करने लगे हैं। इसकी शानदार बानगी शुक्रवार को बस्तर संभाग के धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में देखने को मिली। इस खूबसूरत तस्वीर में बस्तर के सुनहरे भविष्य की उम्मीद भरी सतरंगी किरण नजर आ रही है।
लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में छत्तीसगढ़ की एकमात्र बस्तर लोकसभा सीट के लिए 19 अप्रैल को मतदान हुआ। बस्तर का सुकमा जिला नक्सली गतिविधियों के मामले में बेहद संवेदनशील माना जाता है। इस जिले में कई गांव ऐसे हैं, जहां आज तक विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है, लेकिन इन गांवों में रहने वाले संतोषी प्रवृत्ति के आदिवासियों को इस बात का ज्यादा मलाल नहीं है। मगर हां उन्हें इस बात का थोड़ा अफ़सोस जरूर होता है कि जिन्हें वे अपने क्षेत्र की बागडोर सौंपते हैं, उन नुमाइंदों को क्षेत्र का बाशिंदों की जरा भी परवाह नहीं रहती। किसी गांव में सड़क नहीं है, किसी गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई और किसी गांव में पेयजल की व्यवस्था नहीं है। बावजूद इन गांवों के लोगों की उम्मीद अभी टूटी नहीं है और इसी उम्मीद के साथ वे इस लोकसभा चुनाव में भी अपने देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के महायज्ञ में आहुतियां देने अपने घरों से निकल पड़े। गांव तक पक्की सड़क बने जिस पर चलकर विकास गांव तक पहुंचे। इसी उम्मीद के सहारे भीमा अपने छोटे बच्चे को कंधे पर बिठाकर सपरिवार मतदान करने के लिए पैदल 10 किमी का सफर तय करता नजर आया। शरीर को झुलसा देने वाली 40 डिग्री की गर्मी और तेज धूप के बावजूद ग्रामीण मतदाता 10 से 12 किलोमीटर तक का सफर तय कर मतदान करने पहुंचते रहे। यही तो हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। केरलापाल से 10 किमी दूर स्थित गोनंदीगुड़ा मतदान केंद्र को शिफ्ट किया गया। गांव तक जाने के लिए कच्ची सड़क है। इलाका नक्सल प्रभावित है जिसके कारण वाहनों की आवाजाही न के बराबर है। लेकिन मतदान जरूरी है इसलिए ग्रामीण पैदल चलकर पहुंचते रहे।गांव का भीमा अपने बेटे को कंधे पर लिए मतदान करने जा रहा था। साथ मे कुछ महिलाएं भी पैदल जा रही थीं। भीमा कहता है कि गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नही है। जब सड़क बनेगी तभी बाकी सुविधाएं पहुंच पाएंगी। यह तभी संभव होगा मतदान कर सही जनप्रतिनिधि चुनने से। इसलिए हम लोग मतदान करने के लिए जा रहे हैं। ग्रामीण बहुत परेशान रहते है, कोई भी सुविधा नही है। कोई भी काम हो तो इसी तरह हम लोग पैदल आते हैं।
उम्मीद के भरोसे 12 किमी का सफर
रबड़ीपारा व पोंगाभेज्जी गांव में विधानसभा चुनाव में मतदान गांव में ही हुआ था, लेकिन इस बार मतदान केंद्र को 12 किलोमीटर दूर स्थित मांझीपारा मे शिफ्ट कर दिया गया है। इन गांवों के ग्रामीण ट्रेक्टर पर सवार होकर पहुंचते रहे। जबकि ये नक्सल प्रभावित है, बावजूद जोखिम उठाकर मतदान करने ग्रामीण पहुंचे। ग्रामीणों ने कहा कि गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नही है। पुल की जरूरत है। बारिश के समय हांडी के सहारे नदी पार करते हैं। गांव में सरकारी राशन नही पहुंचता है। प्रधानमंत्री आवास तक नही बने हैं। इसलिए हम लोग मतदान करने जा रहे है। ताकि सरकार बने और विकास कार्य गांव तक पहुंचें।सालों से मतदाता इसी उम्मीद के साथ वोट देते आ रहे है, ताकि उनकी समस्याएं दूर होगी और विकास कार्य होंगे। लेकिन मतदान के बाद सरकार बनती है और जनप्रतिनिधि इन ग्रामीणों को भूल जाते है। बावजूद ये ग्रामीण मतदान कर अपना फर्ज निभा रहे हैं।

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