0 खुली आंखों से गुजार देते हैं कई रातें, खाली पेट रहकर भी रहते हैं चौकस
0 बस्तर संभाग में तैनात वीर जवानों की गजब शौर्यगाथा
0 रातभर पैदल चलकर पहुंचते हैं नक्सल गढ़ में
(अर्जुन झा) जगदलपुर। हमारे देश की सीमाओं पर तैनात जवान कड़कड़ाती ठंड और चिलचिलाती धूप में भी सजग रहकr बाहरी दुश्मनों से देश की रक्षा करते हैं। वैसे ही पुलिस और अर्धसैन्य बल के जवान आंतरिक दुश्मनों से हमारी जान माल और सरकारी संपत्ति की सुरक्षा के लिए चौबीसों घंटे अपनी जान की बाजी लगाकर मोर्चे पर डटे रहते हैं। अपने बूढ़े माता पिता, पत्नी, बच्चों और खुद की सेहत की फिक्र भुलाकर ये जवान राज्य की संपत्ति और राज्य के लोगों की हिफाजत की फिक्र में घुलते रहते हैं। आइए हम आपको बस्तर संभाग के अंदरूनी और सुदूर जंगली इलाकों में नक्सल मोर्चे पर डटे योद्धाओं की शौर्यगाथा से रूबरू कराते हैं।
बस्तर संभाग के विकास में सबसे बड़ी बाधा वर्षों से जारी नक्सलवाद रहा है। बस्तर की जिस धरा पर महुआ, छिंद, सल्फी की गंध समाई रहती थी, वहां लंबे समय तक रक्तगंध समाई रही। जंगली पेड़ों से झर कर गिरे पत्तों और सूखे फलों से जो धरती आच्छादित रहती थी, उस धरती पर यहां वहां फैला खून और क्षत विक्षत शव पड़े दिखाई देने लगे थे। शेर, बाघों की दहाड़ की जगह बारूदी धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट की गूंज सुनाई देने लगी थी।आए दिन शाला भवन, अस्पताल भवन, पुल पुलिया ढहा दिए जाते थे, सड़कें ध्वस्त कर दी जाती थीं। इन सब हालातों से निपटने के लिए केंद्र और राज्य की सरकारों ने संयुक्त रूप से ठोस पहल की। बस्तर समेत राज्य के अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, कोबरा बटालियन समेत अन्य अर्धसैन्य बलों के साथ ही राज्य पुलिस, छ्ग सशस्त्र बल, डीआरजी बस्तर संभाग में जिला लेवल पर बनाए गए बस्तर फाइटर्स बल की तैनाती की गई। इन सुरक्षा बलों में देश के कई राज्यों के जवान शामिल हैं, जो अपने बुजुर्ग माता पिता, पत्नी और बाल बच्चों से मीलों दूर रहकर हमारी सुरक्षा में लगे हुए हैं। कुछ वर्ष पहले तक इन शूरवीरों को नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती रही है। इस बीच असंख्य जवानों ने अपनी शहादत देकर हमारी रक्षा की है। बावजूद जवानों के हौसले बरकरार हैं। हमारे ये जवान अति आधुनिक संसाधनों और हथियारों से लैस हो चुके हैं, उनका जोश हाई है। मगर आज भी बस्तर के दर्जनों गांव पहुंच विहीन हैं और इन्हीं गांवों के जंगलों को नक्सलियों ने अपना ठिकाना बना रखा है। इन गांवों तक पहुंच पाना आसान नहीं है, मगर हमारे जांबाज जवान रात -रातभर पैदल चलकर ऐसे नक्सली मांद तक पहुंच ही जाते हैं। नदी नालों को पार कर और भूखे प्यासे रहकर भी वे नक्सलियों से दो दो हाथ करते रहते हैं और कामयाब होकर ही लौटते हैं। ऐसा ही कुछ बीती रात बस्तर संभाग के सुकमा जिले में देखने को मिला। सचमुच यह वैसा ही है जैसे भगवान श्री रामचंद्र ने रावण की लंका ढहाने के लिए किया था।
25 किमी पैदल चले रातभर
गुरुवार और शुक्रवार की रात सुकमा जिले के अलग-अलग सुरक्षा कैंप से डीआरजी व कोबरा बटालियन की संयुक्त टीम आपरेशन के लिए रवाना हुई थी। 25 किमी से ज्यादा की दूरी पैदल चलकर जवान नदी पार कर जैसे ही चिन्नाबोड़केल, रायगुड़ा इलाके में पहुंचे तो नक्सलियों के साथ उनका आमना- सामना हो गया। दोनों ओर से फायरिंग हुई। अलग-अलग टीमों के साथ तीन जगहों पर मुठभेड़ हुई। दोनो और से अत्याधुनिक हथियारों से फायरिंग हुई। मौके से विस्फोटक सामग्री व हथियार बरामद कर जवान वापस कैंप लौट आए। खबर की पुष्टि एसपी किरण चव्हाण ने की। सुकमा जिले के पूवर्ती व फूलपाड़ इलाके में कैंप खोलने के बाद बीजापुर सीमा से लगा हुआ इलाका रायगुड़ा, चिन्ना बोड़केल में नक्सलियों की मौजूदगी व गतिविधियों की सूचनाएं मिल रही थीं। गुरूवार रात को अलग-अलग थानो व कैंपों से डीआरजी व कोबरा की संयुक्त टीम को आपरेशन के लिए रवाना किया गया। रातभर पैदल चलते हुए जवान इलाके की बड़ी नदी को पार कर गांव पहुंचे। तभी वहां नक्सलियों के साथ आमना-सामना हुआ। अलग-अलग टीमों के साथ अलग-अलग जगहों पर मुठभेड़ हुई। पहले जगरगुड़ा एरिया कमेटी के साथ मुठभेड़ हुई उसके बाद नक्सली बटालियन के साथ जवानों की मुठभेड़ हुई। दोनों ओर से अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल करते हुए फायरिंग हुई। नक्सलियों ने जमकर बीजीएल दागे जिसमें कुछ फटे और कुछ नहीं फटे जिसे बरामद कर लिया गया। वहीं मौके की सर्चिग करने पर जवानों ने विस्फोटक सामग्री व हथियार बरामद किए हैं।
जरा याद करो कुर्बानी
जरा सोचिए उनके बूढ़े माता पिता और विधवा पत्नी तथा बेसहारा बच्चों के बारे में कि उन पर क्या गुजरती होगी। आखिर ये जवान हमारे कौन लगते थे, जिन्होंने हमारी हिफाजत की खातिर अपनी जान की कुर्बानी दी है? जैसे हम मां भारती के लाल हैं, वैसे ही वे भी थे। मगर अपने प्राणों की आहुति देकर उन्होंने मां भारत भारती का भाल दमकाया है और हमने क्या किया? बस दो मिनट मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि देने के सिवा? किसी भी मोर्चे पर शहादत देने वाले जवानों के परिवार को कुछ लाख रुपयों की सहायता दी जा दी जाती है, मगर क्या कागज के इन टुकड़ों से किसी परिवार के आंसू पोंछे जा सकते हैं? क्या उस परिवार का खो चुके लाल को ये चंद रुपए वापस ला सकते हैं? हरगिज नहीं। इसलिए ऐसे जवानों का सम्मान करना, उनकी मदद कर नक्सलियों के खिलाफ जंग में उनका साथ देना हम सबका कर्तव्य है।