रामकथा से जनमानस को संस्कारित करने की अनुपम पहल…

कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम में लिखा है कि मेरे लिए रघुवंश लिखने का प्रयास ऐसा ही है जैसा कि कोई छोटी सी डोंगी से समुद्र का थाह लेने चला हो। फिर भी श्रीराम का आशीर्वाद मिले तो यह कार्य सफल होगा, ऐसी उन्होंने आमुख में आशा जताई।

श्रीराम का चरित्र ऐसा ही है जिसका थाह व्यापक है, इसके लिए एक ग्रंथ पर्याप्त नहीं। उनके चरित्र को कहने एक भाषा की संपदा पर्याप्त नहीं। उनके चरित्र का यश देशों की सीमाओं को अतिरेक कर दूर तक विस्तारित हुआ है। ऐसे में निश्चय ही जनता को श्रीराम के आदर्श चरित्र से संस्कारित करने की पहल होती रहनी चाहिए। महोत्सव जैसे आयोजन से इसकी सार्थकता होती है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर रायगढ़ के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 01 से 03 जून तक राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन रामकथा से जनमानस को संस्कारित करने की अनुपम पहल है। छत्तीसगढ़ सरकार ने रामवनगमन पथ के विशिष्ट जगहों का विकास किया अपितु अब रामकथा के उन प्रसंगों को हम सबके समक्ष महोत्सव के माध्यम से बता रहे हैं जो हमारी इस सुंदर पुण्य भूमि से जुड़ी है।

यूं तो श्रीराम का आदर्श चरित्र जनजन में व्याप्त है। फिर भी जैसा कि पद्य है कि पुनि पुनि कितनेहु सुनत सुनाये, हिय की प्यास बुझत न बुझाए। सीताराम चरित अति पावन। मधुर सरस अरु अति मनभावन। श्रीराम का चरित्र ऐसा है कि जितनी बार सुनो, मन नहीं भरता। यह तब और आकर्षक हो जाता है जब अलग-अलग कवियों के माध्यम से श्रीराम कथा के मनोभावों की प्रस्तुति होती है।

वाल्मीकि रामायण से लेकर भवभूति तक संस्कृत में रामायण लेखन की विशिष्ट परंपरा है। दक्षिण में कंबन से लेकर बंगाल में कृतिवास तक सबके अपने अपने राम हैं। राम केवल भारत भूमि के नहीं हैं। वे दक्षिण पूर्वी एशियाई द्वीपों के भी हैं। श्रीराम को लेकर सबकी सुंदर सांस्कृतिक परंपराएं हैं। हमारे प्रदेश के भांजे श्रीराम की लीला को छत्तीसगढ़ के बाहर किस तरह प्रस्तुत किया जाता है। यह हमारे लिए स्वाभाविक उत्सुकता की बात है।

महोत्सव के माध्यम से हम श्रीराम के आदर्श चरित्र की बारीकियों को जान सकेंगे। ऐसा चरित्र जिसने सात समंदर पार के द्वीपों को भी प्रभावित किया। जावा, बाली जैसे द्वीपों ने सैकड़ों बरसों से इन स्मृतियों को संभाल कर रखा है। यह उनकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। छत्तीसगढ़ में हम जान सकेंगे कि किस तरह से अपनी बोली-भाषा में यह देश हमारे महापुरुष की स्मृतियां सजा कर रखे हुए हैं जिन्होंने उनकी जाति को भी श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की सीख दी।

रामायण की कथा हमको संस्कारित करती है। इसे बार-बार सुनना हमें अपने आदर्शों की ओर लगातार बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। इस महोत्सव में देश के अधिकांश राज्यों के रामकथा के दल आ रहे हैं। भगवान श्रीराम का भी वनगमनपथ ऐसा ही रहा है उन्होंने लंका विजय की और इस दौरान देश की अनेक जातियों के लोगों से मिले, उनसे संवाद किये। अरण्य कांड में ऋषियों से चर्चा की। यह सब हमारी सुखद स्मृतियों का हिस्सा है।

आलेख-सौरभ शर्मा

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