✍️ – ठाकुर राम वर्मा
कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, कभी तबीयत से पत्थर उछाल करके तो देखो। इस बात को चरितार्थ कर दिखाया है पलारी क्षेत्र के गौरव 27 वर्षीय उत्तम कुमार वर्मा ने, जिन्होंने जीवन में आए कठिन संघर्षों से जूझते हुए उन पर विजय प्राप्त की और अपनी सफलता की कहानी लिखी।
सफलता की कहानी कुछ ऐसी कि वह अब बाकी लोगों के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है। वो कहते हैं ना, अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात आपको वो चीज दिलाने में जुट जाती है, कुछ ऐसा ही बलौदाबाजार जिले के ग्राम दतान निवासी उत्तम कुमार के साथ हुआ। उत्तम कुमार वह शख्स है जो कि बचपन से पूर्णतः नेत्रहीन छात्र रहते हुए तैयारी की और अपने मेहनत और डिप स्टडी के दम पर इस मुकाम पर पहुंचा है की वह अब बलोदाबाजार जिले के टॉप कालेज डीके स्नातकोत्तर महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर (इतिहास) के पद पर नियुक्त हुआ हैं।
उनका यहां तक का सफर काफी रोमांचक है। दरअसल छत्तीसगढ़ के बलौदाबाज़ार जिले के गांव दतान में रहने वाले उत्तम कुमार की यह सक्सेस स्टोरी साझा करते मुझे हुए बड़ा गर्व महसूस हो रहा है कि इस छोटे से गांव ने एक असिस्टेंट प्रोफेसर (Assistant Professor) को जन्म दिया है। उत्तम के इस गांव से प्रोफेसर बनने तक के सफर की उनकी कहानी को साझा कर रहा हूं। अगर मेरी इस कहानी और उनके सफर से एक भी व्यक्ति इंस्पायर हो जाता है तो मुझे बहुत खुशी महसूस होगी।
कठिन परिस्थितियों में भी नहीं मानी उत्तम ने हार
छोटे से गांव से निकल कर रायपुर तथा रायपुर से दिल्ली और दिल्ली से निकल कर चंडीगढ़ तक का सफर काफी प्रेरणादायक है।
रायपुर के शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधितार्थ विद्यालय में पढ़े उत्तम कुमार ने अच्छे ग्रेड के साथ 12वीं की परीक्षा को पास किया था, लेकिन परिस्थितियों को कुछ और ही मंजूर था।
उनके बाकी साथियों ने जहां छत्तीसगढ़ में पढ़ाई की वही उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉप कालेज हंसराज कालेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। उनके लिए ग्रेजुवेशन भी किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके लिए उन्होंने बाकायदा कंप्यूटर की ट्रेनिंग पूरी करने के साथ ही साथ वे एंड्रॉयड फोन भी चलाना सीखा। उसे किसी ने नहीं बनाया है और किसी ने उनका मार्गदर्शन नही किया है। उत्तम बस यूं ही आगे बढ़ता चलता गया और जीवन में आयी विपरीत परिस्थितियों से सीख लेता गया। उनका ध्येय एक ही था एक कुशल शिक्षक बनना। और आज प्रोफेसर के पद पर नियुक्त होकर उन्होंने उसे पूरा कर दिखाया है।
हंसराज कालेज से जेएनयू तक का सफर
ये बात उन दिनों की है जब मैं अपने दांपत्य जीवन में कदम रखने वाला था इस दौरान उत्तम ने पीजी के लिए जेएनयू में इंटरव्यू पास कर लिया था। हंसराज कॉलेज ने उसे यह समझाया कि किस तरह से अच्छा वक्ता बन सकते हैं। अध्ययन के दौरान उत्तम को यह समझ में आ चुका था कि बाहर भी एक बहुत बड़ी दुनिया है। उत्तम को जेएनयू जाने का मौका मिला पर वहां उन्होंने अपने आप को सबसे अलग पाया। उसे हिचकिचाहट होती थी और इस बात का भ्रम और डर दोनों ही था कि शायद उत्तम जेएनयू के वातावरण में खुद को ढाल ना सके। उत्तम की अंग्रेजी भी अच्छी नहीं थी, लेकिन उनके कई मित्रों ने उत्तम को बीच में लड़ाई छोड़ने से मना कर दिया और अपने डर पर उन्हें विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
उत्तम के पिता सामान्य किसान तो मां है गृहणी, पांच भाई और तीन बहनों में सबसे छोटा
मैं यह लेख बस इस उद्देश्य से लिख रहा हूं की लोग उत्तम के इस सफलता से प्रेरणा ले और सपने देखना कभी ना छोड़े। सभी लोग सपने देखें और उन सपनों को पाने के लिए मेहनत भी भरपूर करें। इस पोस्ट से ज्यादा से ज्यादा लोग प्रेरित हो और अपनी कामयाबी की कहानी लिखे। बचपन में जब रायपुर के दृष्टि बाधित स्कूल में उनका दाखिला हुआ तो वे स्कूल छोड़कर अपना घर जाना चाहते थे। उनको पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लगता था। उनके पिताजी कृषक थे। अपने घर तथा पास के अन्य गांवों में अखंड नवधा रामायण में टीकाकार का काम करते थे। पिता जी के दिए हुए संस्कार उत्तम में कूट-कूट कर भरे थे। उन्होंने रामायण के दोहा और चौपाई अपने पिताजी के माध्यम से कंठस्थ कर लिए थे। ये उनकी सबसे बड़ी खासियत थी।
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती!
जिंदगी में आई इतनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी जिस तरह से उत्तम ने अपनी सफलता की कहानी बुनी। उसने इस बात को भी सिद्ध कर दिया है कि लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। बता दें कि उत्तम कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति है संगीत से उन्हें काफी ज्यादा लगाव है। वहीं उनका चंडीगढ़ विवि से पीएचडी जारी है, वे यथा शीघ्र पीएचडी भी पूर्ण कर लेंगे। बीते मंगलवार को ही उत्तम का असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति पत्र आया है।