(अर्जुन झा)
दल्ली राजहरा। बालोद जिले में सियासी उठापटक के लिए सबसे अधिक चर्चित दल्ली राजहरा की जनता को राजनीतिक नजरिये से काफी जागरूक माना जाता है। यहां की जनता हर स्तर के चुनाव में अपनी राय परिस्थितियों और गुणदोष के आधार पर व्यक्त करती है। दल्ली राजहरा कांकेर लोकसभा और डोंडी लोहारा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। दल्ली राजहरा नगरपालिका क्षेत्र है और सबसे ज्यादा चर्चा नगरपालिका की राजनीति की ही होती है। दल्ली राजहरा नगरपालिका की राजनीति इन दिनों फिर उबाल पर है। विवादों के दायरे में आये नगरपालिका उपाध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया है।भाजपा पार्षद दल गुटबाजी के झूले में वैसे ही झूल रहा है, जैसे भाजपा की नाव गुटबाजी के तूफान में हिचकोले खा रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि दल्ली नगरपालिका में भाजपा का गांव कैसे बसेगा? भाजपा अपना उपाध्यक्ष कैसे बनवा पायेगी? आखिर दल्ली राजहरा नगर पालिका का उपाध्यक्ष कौन बनेगा? कहा जा रहा है कि नगर पालिका में कांग्रेस और भाजपा नेताओं की साठगाँठ, शहर के विकास को रोकने एवं भ्रष्टाचार का आरोप लगा और इस सिलसिले में उपाध्यक्ष द्वारा इस्तीफा देने से सियासी सरगर्मी बढ़ गई। नगर पालिका अध्यक्ष चुनाव के समय से ही भाजपा पार्षदों की भूमिका संदिग्ध हो गई थी। भाजपा के 13 पार्षद और एक निर्दलीय पार्षद के समर्थन के बावजूद भाजपा अपने पार्षदों को संगठित करने में विफल रही | जिसके परिणाम स्वरूप भाजपा को अध्यक्ष चुनाव में 12 वोट मिले थे। भाजपा नेताओं ने 3 पार्षदों पर भीतरघात का आरोप लगा कर उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था | जिसमें भाजपा के खेमे में से उपाध्यक्ष बने संतोष देवांगन भी शामिल थे। ढाई साल में नगर पालिका में भाजपा विपक्ष की भूमिका में सक्रिय नजर नहीं आयी। कहा जाता है कि कुछ अवसरवादी सेटिंगबाज नेता और कुछ पार्षद नगर पालिका में ठेकेदारी के लिए अपने सम्मान व पार्टी के सम्मान को गिरवी रखने से भी बाज नहीं आये। नगर पालिका में अढ़ाई साल तक विपक्ष की भूमिका दिखाई नहीं दी लेकिन अब पालिकाउपाध्यक्ष संतोष देवांगन द्वारा अपने पद से इस्तीफा देने के बाद सियासी तापमान बढ़ गया है। उपाध्यक्ष के इस्तीफे के घटनाक्रम के मद्देनजर सियासी गलियारों में चर्चा है कि भाजपा और कांग्रेस द्वारा सेटिंग कर कार्य करने का खुला आरोप लगाया गया। इसके बाद एक कांग्रेस पार्षद ने उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने हेतु हस्ताक्षर अभियान चला कर अपनी दावेदारी ठोक दी। इस कांग्रेस पार्षद के समर्थन में भाजपा के भी कुछ पार्षद विशेष और नेता भी सक्रिय हो गये। नगर पालिका के ठेके में हिस्सेदारी के लिए सियासी सेटिंग की चर्चा कई जुबानों पर है। भाजपा अपनी गुटबाजी में उलझी हुई हैं भाजपा का एक गुट सेटिंग स्पेशलिस्ट नेताओं के प्रभाव में आकर कांग्रेस के साथ मिल कर विद्रोह कर उपाध्यक्ष के खिलाफ लामबंध हो गया है तो दूसरा गुट इसका विरोध कर रहा हैं। उसका कहना हैं कि भाजपा का उपाध्यक्ष तय होने पर ही वर्तमान उपाध्यक्ष को हटाया जाये। मगर आपसी गुटबाजी से यह मुमकिन नहीं लग रहा हैं। इधर कांग्रेस में भी गुटबाजी की कोई कमी नहीं है। नगर पालिका अध्यक्ष की कुर्सी पर कांग्रेस काबिज है। अध्यक्ष अपनी पसंद का उपाध्यक्ष चुनवाने की कोशिश करते हैं तो कांग्रेस की गुटबाजी सामने आ सकती है। ऐसे में क्या होगा, इस पर जिज्ञासा का माहौल बना हुआ है।