रामपाल गांव में है भगवान श्रीरामचंद्र के हाथों स्थापित प्राचीन शिवलिंग, जन आस्था का बड़ा केंद्र है यह

0 वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम ने स्थापित किया था लिंगेश्वर शिवलिंग को 
0 बस्तर में कई जगह मौजूद हैं श्रीराम की निशानियां 
(अर्जुन झा)बकावंड। भगवान श्रीरामचंद्र ने अपने वनवास काल में लंबा समय बस्तर के जंगलों में गुजारा है। बस्तर के जंगलों को दंडाकरण्य कहा जाता है और श्रीराम चरित मानस ग्रंथ में दंडाकरण्य का कई जगह उल्लेख है। भगवान रामजी की ढेरों निशानियां बस्तर संभाग में आज भी मौजूद हैं। इन्हीं में एक है भगवान श्रीरामचंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन शिवलिंग। संयोग देखिए कि जिस गांव में यह अति प्राचीन शिवलिंग स्थापित है, उसका नाम भी रामपाल है। इस गांव को संभवतः भगवान राम ने ही बसाया होगा। श्रीराम के हाथों स्थापित शिवलिंग को लिंगेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है और पूरे इलाके में यह धार्मिक आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है।
बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से महज 10 किमी दूर स्थित बकावंड ब्लॉक के ग्राम रामपाल में रामायण काल का शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान यहां पर लिंगेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी। इसकी पुष्टि दिल्ली के श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान के विशेषज्ञों ने भी की है। यह शोध संस्थान 50 सालों से श्रीराम के वनवास पर शोध कर रहा है। इसी शोध में यह जानकारी मिली है। बकावंड जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत करनपुर के आश्रित ग्राम रामपाल में करीब 38 धाकड़ ठाकुर परिवार निवासरत हैं। पूरा गांव श्रीराम और भगवान शिव की पूजा करता है। यहां स्थित लिंगेश्वर शिव मंदिर कई कविदंतियों, मान्यताओं और दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। यहां के पुजारी अर्जुन सिंह ठाकुर ने बताया कि उनके पूर्वज करीब डेढ़ सौ साल से इस लिंगेश्वर शिव की पूजा करते आ रहे हैं। कैलाश सिंह ठाकुर ने बताया कि खोदाई के दौरान यह शिवलिंग प्राप्त हुआ है। जमीन के अंदर खोदाई कराने से शिवलिंग की थाह नहीं मिली। खोदाई के दौरान जमीन के अंदर ऊपरी सतह की अपेक्षा शिवलिंग की मोटाई अधिक पाई गई। आज तक इस शिवलिंग का कोई अंत नही मिला है। मनेर सिंह ठाकुर ने बताया कि बचपन में शिवलिंग की ऊपरी सतह में कुछ गड्ढे थे, जो अब भर गए है। वहीं धीरे-धीरे शिवलिंग की लंबाई भी बढ़ रही है।

बस्तर में यहां रहे थे श्रीराम
वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लंबे समय तक बस्तर में रहे। शोधकर्ता डॉ. राम अवतार ने अपनी किताब में लिखा है कि श्रीराम धमतरी से कांकेर पहुंचे। कांकेर में रामपुर जुनवानी, केशकाल घाटी शिव मंदिर, राकस हाड़ा नारायणपुर, चित्रकोट शिव मंदिर, तीरथगढ़ सीता कुंड, कोटि महेश्वर कोटमसर कांगेर, ओड़िशा के मल्कानगिरी, रामाराम के चिटमिट्टीन मंदिर सुकमा व इंजरम कोंटा में श्रीराम ने वनवास के दिनों में यहां से होकर गुजरे।

बस्तर दशहरा से संबंध
बस्तर के दशहरे में फूलरथ की परिक्रमा भी श्रीराम और मां दुर्गा से जुड़ी हुई है टेंपल कमेटी के उपाध्यक्ष विजय भारत ने बताया कि बस्तर दशहरा भी श्रीराम और मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है। फूल रथ परिक्रमा से पहले माता का छत्र दंतेश्वरी मंदिर से निकलता है, तो पहले कांकालीन मंदिर में पूजा होती है। फिर जगन्नाथ मंदिर परिसर में मौजूद श्रीराम मंदिर में पूजा होती है। इसके बाद दंतेश्वरी और राम मंदिर के पुजारी टोकरी में फूल लेकर रथ पर चढ़ते हैं। यहां पर पूजा विधान के बाद ही फूलरथ की परिक्रमा होती है।

काफी गहराई तक है शिवलिंग
बस्तर में श्रीराम द्वारा स्थापित इस लिंगेश्वर शिवलिंग का जमीन में कितनी गहराई तक धंसा हुआ है, अबतक इसकी थाह नहीं मिल पाई है। वहीं शिवलिंग की लंबई अंत, बढ़ती जा रही लंबाई भी लगातार बढ़ती जा रही है। इस शिवलिंग को लेकर 50 साल से शोध चल रहा है।
मंदिर परिसर की खोदाई में ईस्वी सन 1860 की घंटी भी मिली है। मंदिर के जीर्णोदार के लिए परिसर की खोदाई की गई। इस दौरान पुरानी ईंट, पत्थर और एक घंटी मिली है। इस घंटी में 1862 और लंदन लिखा हुआ है। शोधकर्ताओं से मिली जानकारी के अनुसार तत्कालीन ब्रिटिश राज्यपाल ने यह घंटी मंदिर में चढ़ाई थी। वहीं पुरातात्व विभाग ने ईट और पत्थर का सैंपल लिया है, जिससे यह पता लगाया जाएगा कि यह कितने साल पुराने हैं। राजपूत क्षत्रिय धाकड़ समाज के जिला सहयोजक जगत सिंह ठाकुर ने बताया कि शोध में यह पुष्टि हुई है कि लिंगेश्वर शिवलिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने ही की है।

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