रायपुर। गरीबों को घर देने के उद्देश्य से 2007 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार के तहत हाउसिंग बोर्ड द्वारा बेलभाठा में 525 अटल आवास मकान बनाए गए थे। लेकिन 17 वर्षों बाद यह कॉलोनी अपनी बदहाल स्थिति के कारण गरीबों की मदद के बजाय उपेक्षा और दुर्दशा का प्रतीक बन गई है।
मूलभूत सुविधाओं का अभाव
कॉलोनी में पीने के पानी, सड़कों और सीवर लाइन की स्थिति अत्यंत खराब है। बरसात के दिनों में सड़कों पर पानी भर जाता है और गड्ढों से भरे रास्तों के कारण आवागमन कठिन हो जाता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, 17 वर्षों में कॉलोनी की सड़कों की मरम्मत पर ₹1 भी खर्च नहीं किया गया है।
प्रशासनिक जिम्मेदारी का अभाव
यह कॉलोनी न तो ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आती है, न ही नगर पालिका के। हाउसिंग बोर्ड ने निर्माण के बाद देखभाल की जिम्मेदारी स्थानीय समितियों को सौंप दी थी, लेकिन अब हाउसिंग बोर्ड और ग्राम पंचायत गिरोला दोनों ने इस कॉलोनी की समस्याओं से दूरी बना ली है।
समिति पर सवालिया निशान
स्थानीय समिति हर परिवार से मेंटेनेंस और पानी के लिए ₹305 प्रति माह वसूलती है, लेकिन निवासियों का आरोप है कि इन पैसों का सही उपयोग नहीं हो रहा है। समिति के कार्यों में पारदर्शिता का अभाव है और आरोप है कि इन फंड्स का दुरुपयोग किया जा रहा है।
जनप्रतिनिधियों की उदासीनता
कॉलोनी के निवासियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के समय नजर आते हैं और बाद में गायब हो जाते हैं। हाल ही में शासन द्वारा जन समस्या निवारण पखवाड़ा मनाया गया, लेकिन कॉलोनी के लोग अपनी समस्याएं लेकर किसके पास जाएं, यह तय नहीं कर पा रहे हैं।
निवासियों की मांग
स्थानीय निवासियों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से अपील की है कि कॉलोनी को या तो ग्राम पंचायत या नगर पालिका के अधीन किया जाए, या फिर हाउसिंग बोर्ड खुद इसकी जिम्मेदारी संभाले। वे चाहते हैं कि कॉलोनी में मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाए और समिति के फंड्स के उपयोग की जांच हो। बेलभाठा कॉलोनी गरीबों के लिए आश्रय स्थल के रूप में बनाई गई थी, लेकिन आज यह सरकारी उदासीनता और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है। अब देखना होगा कि प्रशासन इन उपेक्षित परिवारों की समस्याओं को कब और कैसे हल करता है।