0 तोतों को घरों में रखना अवैध, छोड़ने का फरमान
(अर्जुन झा)जगदलपुर। अगर आपने अपने घर में तोता पाल रखा है, तो सावधान हो जाइए। यह तोता आपको सरकारी पिंजरे में कैद करवा सकता है। मिट्ठू यानि तोता को घरों में पालना गैर कानूनी है। अगर किसी घर के पिंजरे में तोता पाया जाता है, तो उस घर के मालिक को सरकारी पिंजरे यानि जेल में कैद कर दिया जाएगा। बस्तर वन मंडल अधिकारी ने इस आशय का फरमान जारी कर दिया है।
वैसे किसी भी वन्य प्राणी को घरों में बंधक बनाकर रखना गैर कानूनी है, चाहे वह तोता ही क्यों न हो। वैसे तोते व कुत्ते का मनुष्य के साथ अनादि काल से मधुर रिश्ता चला आ रहा है। सनातन धर्म में तोते को बड़ा ही शुभ पक्षी माना जाता है। यह वाचाल पक्षी बहुत जल्दी मनुष्य की भाषा सीख जाता है और मनुष्य की भाषा में ही बोलने लग जाता है। एक दौर था जब अमूमन हर घर में तोता नजर आ जाता था। राजा महाराजा भी तोता पालते थे। तोता को लेकर कई कहावतें प्रचलित हैं, जैसे तोता रटंत, अपने मुंह मिया मिट्ठू बनना, हाथ से तोते उड़ जाना, रट्टू तोता, तोते की तरह टर्र टर्र करना आदि। वही तोते बोलने में सिद्धहस्त होते हैं, जिसे शिशु अवस्था से पाला जाता है। तोते की वाचालता और मिलनसारिता के चलते ही मनुष्य शुरू से तोते पालने का शौकीन रहा है। घर घर में तोतों की आवाज सुनाई देती थी। उनके मुंह से राम राम सुनना बड़ा ही सुखद लगता है। मगर अब छत्तीसगढ़ शासन के वन विभाग को मनुष्य और तोते का यह रिश्ता रास नहीं आ रहा है। तोता या किसी भी पक्षी अथवा जानवर को घरों में बंधक रखना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत गैर कानूनी है। इसी अधिनियम का हवाला देते हुए वन विभाग ने तोते बेचने या पालने पर रोक लगा दी है। बस्तर डीएफओ ने इसी तारतम्य में एक आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि जिन भी घरों में तोते हैं, उन घरों के मालिक तोतों को जगदलपुर लामनी पार्क में पंछी विहार में पहुंचा दें। ऐसा न करने वालों को 3 साल के कारावास की सजा हो सकती है। यानि जिस तोते को आपने वर्षों पिंजरे में रखकर अपने अपने परिवार के सदस्य की तरह उसकी देखभाल की है, उसी तोते की वजह से आपको सरकारी पिंजरे में तीन साल तक बंद रहना पड़ सकता है।
लामनी पार्क की हकीकत
जिस लामनी पार्क के हवाले पालतू तोतों को करने का फरमान जारी किया गया है, उस लामनी पार्क की हकीकत भी जान लीजिए।करोड़ों रुपए खर्च कर बनाया गया लामनी आज बड़ा बदहाल हो चला है। वहां के सारे पंछी या तो उड़ चुके हैं अथवा मर गए हैं। पार्क में दाना पानी और रख रखाव का समुचित प्रबंध न होने के कारण लमानी पार्क परिंदों को रास नहीं आया। अब उसी मौत के मुंह में तोतों को ठीक है की पंछी को भी धकेलने का फरमान वन मंडल अधिकारी ने जारी किया है। सनातन काल से मनुष्य का सहचर रहे तोतों के अस्तित्व के लिहाज से वन विभाग का यह फरमान तुगलकी साबित हो सकता है। वैसे भी कृषि कार्य में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग और भारी प्रदूषण के चलते कई प्रजातियों के पक्षियों का अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है। जो गौरैया हर घर में चहकती रहती थी, उसके दर्शन तक दुर्लभ हो गए हैं। गिद्ध और कौव्वे भी नजर नहीं आते। ऐसे में बचे खुचे तोतों को मौत के मुंह में धकेलना भला कहां तक जायज होगा? ऐसा करना तोतों के अस्तित्व से ही खिलवाड़ नहीं, बल्कि सनातन आस्था पर भी प्रहार होगा।