जमानत पर जश्न, खड़े हुए प्रश्न…

0 जमानत सिर्फ राहत, सरेआम जश्न मनाना घातक- दुबे

0 प्रशासनिक गुंडागर्दी के तहत हुई थी एफआईआर, जमानत का कर रहे सम्मान- पांडे

जगदलपुर। भाजपा नेताओं की जमानत के बाद सरेआम मनाये गए जश्न पर प्रश्न खड़े हो गए हैं।राजनैतिक दलों द्वारा उनके किसी कार्यकर्ता, नेता को जमानत मिलने के बाद रैली जुलुस निकालकर जश्न मनाने का रिवाज देखने में आता है। इस प्रकार जश्न मनाये जाने को लेकर लोगों की राय अलग-अलग है। आम जनता कहती है कि गंभीर अपराधों में यह ठीक नहीं है। हाल ही भाजपा के पदाधिकारियों की न्यायालय से जमानत होने के बाद भाजपाइयों द्वारा जुलुस निकल कर जश्न मनाया गया था। इसको लेकर शहर में काफी चर्चा हुई।
इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता संकल्प दुबे का कहना है कि कुछ कानूनी वेबसाइट से उन्हें यह जानकारी मिली थी कि मध्यप्रदेश में एक मामले में बलात्कार के आरोपी की जमानत हाई कोर्ट से होने के बाद पूरे शहर में “भैया इस बेक” के पोस्टर/बैनर शहर में लगाये गए थे। इस बात को लेकर पीड़ित पक्ष द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका लगायी गयी है। इसकी सुनवाई जारी है और अंतिम फैसला अब तक न्यायालय ने अपने पास रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की जमानत किसी मामले में मिलती है तो उसका जश्न नहीं मनाया जा सकता। न्यायालय जमानत देकर राहत देता है, न कि जश्न मनाने की इजाजत। इस मामले में अगर पीड़ित पक्ष चाहे तो वो जमानत ख़ारिज कराने के लिए न्यायालय जा सकता है। अगर पीड़ित पक्ष न्यायालय की शरण लेता है तो जमानत ख़ारिज होने की सम्भावना है। जमानत अधिकार नहीं है वरन राहत प्रदान करने के लिए दी जाती है जिसकी कुछ शर्तें होती हैं। जुलुस निकाला जाना या जश्न मनाना, पीड़ित पक्ष के मनोबल को कम करता है और इससे यह साबित नहीं होता कि जमानत पाने वाले निर्दोष हैं। इस मामले में जमानत ख़ारिज होने की सम्भावना 90 फीसदी है।

इधर नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष संजय पांडे का कहना है कि दोनों प्रकरण और मामले अलग-अलग हैं और उनकी गंभीरता अलग-अलग है। शहर का उक्त मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है और जमानत के बाद आम-जनता ने अपने से ख़ुशी मनाई है, लोकतंत्र में उनका हक है। नेता प्रतिपक्ष पांडे के मुताबिक तत्कालीन समय में प्रशासनिक गुंडागर्दी के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी। मामले में मिली जमानत का सभी सम्मान कर रहे हैं। यहां भाजपा ने अपने नेताओं कार्यकर्ताओं की जमानत पर जश्न मना लिया और प्रश्न भी खड़े हो गए। अब आगे इस तरह के जश्न पर राजनीतिक दलों की निगाह परस्पर लगी रहेगी।

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