0 मातागुड़ी निर्माण की राशि की चल रही है बंदरबांट
(अर्जुन झा) बकावंड। भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की नजर अब देव स्थलों पर भी लग गई है। वे भगवान के लिए `घर’ बनाने में लूट मचा रहे हैं।आदिवासियों की आस्था को आघात पहुंचाते हुए देवगुड़ी और मातागुड़ी के निर्माण में गड़बड़ी कर स्वीकृत राशि को हजम करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। भगवान के घर में इंसान द्वारा मचाई गई लूट का एक नजारा बकावंड विकासखंड में देखने को मिला है।
सालों टेंट में रहे भगवान श्री रामलला को भव्य मंदिर में विराजमान कराने के लिए पूरा देश एकजुट हो गया था। लोगों ने अयोध्या में श्रीराम जी के मंदिर निर्माण के लिए मुक्त हस्त से दान दिया था। यह ईश्वर के प्रति हमारी अगाध आस्था का सर्वोत्तम उदाहरण है। वहीं दूसरी ओर बकावंड विकासखंड की ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचारियों की नजर से बस्तर के आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों की आस्था के केंद्र अब देवगुड़ी और मातागुड़ी भी नहीं बच पाई है। छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में देव स्थलों को मंदिर कहा जाता है। वहीं बस्तर संभाग में देवालयों को देवगुड़ी और मातागुड़ी नाम से जाना जाता। बस्तर संभाग के हर गांव के विशिष्ट देवी देवता होते हैं। कई गांवों में देवगुड़ी और मातागुड़ी सदियों एवं दशकों पुराने हैं। जीर्ण शीर्ण हो चुकी देवगुड़ियों और मातागुड़ियों के जीर्णोद्धार एवं नव निर्माण के लिए शासन द्वारा विभिन्न मदों से राशि उपलब्ध कराई जाती है। इसी राशि पर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की नजर गड़ गई है। घटिया निर्माण कराकर या फिर बिना निर्माण कराए ही स्वीकृत राशि डकार ली जा रही है। बकावंड ब्लॉक की ग्राम पंचायत उड़ियापाल के डेंघगुड़ा में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है इस बस्ती में बावड़ी मातागुड़ी निर्माण के लिए बस्तर विकास प्राधिकरण मद से 3 लाख रूपए की स्वीकृति सन 2023 -24 में मिली थी। इस स्वीकृत राशि में से डेढ़ लाख रुपए 2 माह पहले ग्राम पंचायत द्वारा निकाल लिए गए हैं। बावजूद मातागुड़ी का निर्माण शुरू नहीं कराया गया है। बावड़ी माता आज भी खुले आसमान के नीचे जर्जर हो चले चबूतरे पर विराजमान हैं। चबूतरे पर काई भी लग चुकी है। धूप, बारिश और ठंड के मौसम में माता रानी खुले आसमान तले विराजित रहकर गांव वालों की रक्षा करती आ रही हैं। ग्रामीणों ने माता के लिए एक गुड़ी बनवाने की फरियाद क्षेत्रीय विधायक एवं शासन से की थी। राशि स्वीकृत हो गई और उसमें से आधी रकम निकाल भी ली गई, मगर निर्माण कार्य का अता पता नहीं है। गुड़ी बनवाने के लिए सीमेंट की इंटें और बजरी मंगवा कर गुड़ी के पास जरूर रखवा दी गई हैं। वहीं कॉलम खड़े करने के लिए महज एक एक फुट गहरे गड्ढे मात्र करवाए गए हैं। क्या इतने से कार्य और मंगाई गई ईंट व बजरी पर डेढ़ लाख रुपए खर्च हो गए? यह जांच का विषय है। बस्ती के कुछ ग्रामीणों का कहना है कि इसमें बमुश्किल 20 हजार रुपए ही खर्च हुए होंगे। बाकी 1 लाख 30 हजार रुपए आखिर किसकी -किसकी जेब में समा गए?
पंचायत का भगवान ही मालिक
इस संबंध में जिम्मेदार लोगों की बातें विरोधाभासी हैं। उड़ियापाल के सरपंच घीवनाथ बघेल तो मातागुड़ी निर्माण की स्वीकृति से भी अनजान हैं। वे कहते हैं कि मातागुड़ी निर्माण की स्वीकृति किसने दी है,कौन बनवा रहा है और किस जगह पर मातागुड़ी बन रही है, इसकी कोई जानकारी मुझे नहीं है। आप रोजगार सहायक से जानकारी ले लो। वहीं ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक फरमाते हैं – मैं तो सर्फ निर्माण कार्य पर नजर रखता हूं। सरपंच सचिव सारा काम कराते हैं। दूसरी ओर पंचायत सचिव गुलमिल सिंह ठाकुर ने मातागुड़ी निर्माण की जानकारी मांगने पर मौन व्रत धारण कर लिया। सचिव की जबान से एक शब्द भी नहीं निकला। जिस ग्राम पंचायत के सरपंच को अपनी ही पंचायत में चल रहे कार्यों की जानकारी न हो और पंचायत कर्मी जिम्मेदारी से पीछे हटने लग जाएं, उस पंचायत का तो बस भगवान ही मालिक है।
जल्द शुरू होगा काम
उड़ियापाल के डेंघगुड़ा पारा में मातागुड़ी निर्माण का कार्य जल्द शुरू कराया जाएगा।
-एसएस मंडावी,
सीईओ जनपद
….पंचायत बकावंड