0 धर्मान्तरण का पैरोकार बनकर लगे रहे हैं आदिवासी संस्कृति को मिटाने में
0 संजीदगी छोड़ मसखरेपन पर उतर आए हैं लखमा
(अर्जुन झा) जगदलपुर। बस्तर संभाग में बड़े पैमाने पर आदिवासियों का धर्मान्तरण हुआ है और अभी भी जारी है। इसे लेकर आदिवासियों में वर्ग संघर्ष की स्थिति निर्मित होती रही है। इसकी झलक संभाग में कई बार देखने को मिली है। भूपेश बघेल सरकार में मंत्री रहे कवासी लखमा ताल ठोंककर दावा करते थे कि बस्तर में किसी का भी धर्मान्तरण नहीं हुआ है। ऐसा दावा कर एक तरह से लखमा दादी ने धर्मान्तरण करने और कराने वालों का पैरोकार बनने का प्रयास किया। वहीं अपनी परंपरा, संस्कृति और अस्तित्व के लिए चिंतित आदिवासियों को लखमा दादी के इस कथन ने बहुत ज्यादा ठेस पहुंचाई है। एक तरफ धर्मान्तरण का पैरोकार बने बैठे कवासी लखमा आदिवासियों की परंपरा में शामिल मुर्गा लड़ाई के मैदान पर जाकर अब खुद को आदिवासी संस्कृति और परंपरा का सबसे बड़ा हित रक्षक साबित करने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। बस्तर के मूल आदिवासी इस चाल को अच्छी तरह से देख समझ रहे हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों की आदिमकाल से चली आ रही परंपराओं, पूजा पद्धति और संस्कृति के संरक्षण के लिए अच्छी कोशिश की थी। बस्तर संभाग के गांव गांव में मातागुड़ी व देवगुड़ी निर्माण, घोटुल परंपरा को पुनर्जीवित करने, आदिवासी पर्व – त्यौहारों के आयोजन के लिए धन राशि उपलब्ध कराने में भूपेश बघेल सरकार ने कोई कंजूसी नहीं की थी। जगदलपुर के पूर्व विधायक एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता रेखचंद जैन की पहल पर भी सैकड़ों मातागुड़ियों व देवगुड़ियों का जीर्णोद्धार हुआ है और नई मातागुड़ी व देवगुड़ियों का निर्माण भी हुआ है। मगर दुर्भाग्य की बात यह है कि जिन आदिवासियों के लिए यह सारा जतन किया गया, उनमें से बहुतेरे लोग अब इन मातागुड़ियों और देवगुड़ियों की ओर झांकना तक पसंद नहीं करते। इसकी एक ही वजह है धर्मान्तरण। ऐसे लोग आदिवासी तो हैं, लेकिन उनका मूल धर्म अब उनसे कोसों पीछे छूट चुका है। देवी देवताओं की वे न पूजा करते हैं और न आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का पालन। बस्तर संभाग की परंपराओं, संस्कृति और पूजा पद्धति पर ग्रहण लग चुका है। गांव – गांव में चर्च बन गए हैं। यह बात हम नहीं कह रहे हैं कि रोगों का ईलाज प्रार्थना से करने के झांसे में लेकर या दबाव डालकर आदिवासियों को धर्मान्तरित किया गया है, बल्कि आदिवासी समाज के बड़े नेता यह बात सैकड़ों बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं। प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार में केबिनेट मंत्री केदार कश्यप, पूर्व सांसद दिनेश कश्यप, बस्तर सीट से भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप समेत दर्जनों वरिष्ठ आदिवासी नेता छल प्रपंच, और प्रलोभन के सहारे धर्मान्तरण का आरोप लगाते हुए पहले की कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते रहे हैं। तब ये लोग आरोप लगाते थे कि भूपेश बघेल सरकार ने धर्मान्तरण की खुली छूट दे रखी है। बीते कुछ माह पहले तक बस्तर के गांवों में मूल आदिवासियों और धर्मान्तरित हो चुके आदिवासियों के बीच आएदिन संघर्ष की स्थिति निर्मित होती रही है। शवों की अंतिम क्रिया को लेकर ऐसे हालात बनते रहे हैं। जब विधानसभा में धर्मान्तरण का मुद्दा उठता था, तब पूर्व केबिनेट मंत्री कवासी लखमा ताल ठोंककर कहते थे कि बस्तर में एक भी आदिवासी का धर्मान्तरण नहीं हुआ है।अब यही लखमा दादी आदिवासियों की संस्कृति की प्रतीक मुर्गा लड़ाई में शामिल होकर खुद को आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का सबसे बड़ा झंडाबरदार दिखाने की कोशिश कर रहे हैं
अब लड़ा रहे हैं मुर्गों को
आदिवासियों को लड़ाकर शायद कवासी लखमा का जी नहीं भरा, इसीलिए वे अब मुर्गों को लड़ाने लगे हैं। बस्तर के बड़े गांवो में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में मुर्गा बाजार भी लगता है। मुर्गा बाजार में मुर्गों की लड़ाई कराई जाती है और जीतने वाले मुर्गे का मालिक हारने वाले मुर्गे को अपने साथ ले जाता है। पुसपाल के बाजार में कवासी लखमा पहुंच गए और प्रतीकात्मक रूप से मुर्गों की लड़ाई कराने लगे। इस दृश्य का उन्होंने बाकायदा फोटोशूट कराया और वीडियो भी बनवाया। बाद में इस फोटो और वीडियो को मीडिया में भेजकर लखमा दादी ने यह जताने की कोशिश की कि वे आदिवासी परंपराओं और संस्कृति के सबसे बड़े संवाहक हैं। सनद रहे इन्हीं कवासी लखमा के नेता राहुल गांधी कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर शूट बूट वाला और फोटोशूट कराने वाला प्रधानमंत्री होने का तोहमत लगाकर हल्ला मचाते रहे हैं। क्या लखमा अब महज वोटों के लिए आदिवासियों को लुभाने की कोशिश में ऐसे ऐसे हठकंडे अपना रहे हैं? यह सवाल तो उनसे बनता ही है। चुनाव के बीच कवासी लखमा नित नया कारनामा दिखाकर लोगों का मनोरंजन करते रहते हैं। जिस नेता को धीर गंभीर रहना चाहिए वह नेता अगर मसखरी पर उतर आए तो जनता का भगवान ही मालिक है। देश एक बड़े मसखरे नेता का कारनामा और हश्र पहले ही देख चुका है, जो बेऊर जेल की हवा खा चुके हैं।