(अर्जुन झा) जगदलपुर। मिला जो वक्त तो जुल्फें तेरी सुलझाऊंगा, अभी तो उलझा हुआ हूं वक्त को सुलझाने में। मासूमियत से लबरेज रूमानियत और हालात की गहराई में डूबा यह मशहूर शेर चुनाव बाद की इस तस्वीर से कुछ इस तरह बावस्ता महसूस हो रहा है कि मिला है वक्त तो अपनों के साथ बिताऊंगा, अब तक उलझा रहा हूं वक्त को सुलझाने में। छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बस्तर के युवा सांसद चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार के तौर पर अपने चुनाव क्षेत्र और प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से पूरे राज्य में कांग्रेस के लिए वक्त को सुलझाने में लगे हुए थे। सियासी वक्त को सुलझाने के बाद नतीजों के इंतजार में कुछ फुर्सत मिली तो वे धार्मिक यात्रा पर निकल पड़े। सपरिवार महादेव की आराधना करने से आत्मिक शांति मिली तो फिर अपनों के मन को प्रसन्न करने राजनीति से दूर कुदरत की हसीन वादियों में विचरण करने की जरूरत से भी कैसे इंकार किया जा सकता है। जनता के लिए हरदम तत्पर रहने वाले राजनेता अक्सर अपने और अपनों के लिए वक्त नहीं निकाल पाते। चुनाव सामने हो, खुद का कैरियर दांव पर हो और संगठन की जिम्मेदारी सिर पर हो तो वक्त का मिजाज और भी सख्त हो जाता है। राजनेता भी आखिर घर परिवार के प्रति अपने दायित्वों से बंधे होते हैं। इनके परिवार की अपनी इच्छाएं भी होती हैं लेकिन इनके परिवार वक्त की नजाकत को देखते हुए समझौते करते हैं।यह इनके परिवार का समर्पण माना जा सकता है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सांसद दीपक बैज ऐसे ही जननेता हैं, जो पूरे समय अपने जनप्रतिनिधित्व धर्म के पालन में व्यस्त रहते हैं। जनता प्रथम के ध्येय पर चलने वाले को पारिवारिक धर्म भी निभाना ही चाहिए। जब परिवार समझौता करता है तभी जननेता जनता को भरपूर वक्त दे पाता है। ऐसा ही दीपक बैज के साथ है। जब राजनीति के मोर्चे पर चुनौतियों को सुलझा लिया। चुनाव सम्पन्न हो गए। तो जनता पर भरोसा करते हुए दीपक पारिवारिक सैर सपाटे के लिए निकल गए।राजनीति से इतर अपने भाई योगेश बैज, पत्नी पूनम बैज और बच्चों के साथ दीपक बैज कान्हा नेशनल पार्क में चुनावी थकान मिटाकर तरोताजा हो रहे हैं। इस संकल्प के साथ कि जनता की उलझनों को फिर नए जोश के साथ सुलझाएंगे।