(अर्जुन झा)
बस्तर में बहार आई है। विकास हो रहा है। बमुश्किल शांति का दायरा बढ़ रहा है ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक संदेश भी दिया है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है। इस अधिकार का उपयोग अनुशासित तरीके से करें। कोई भी कानून व्यवस्था बिगाड़ने और शांति भंग करके बस्तर को अशांत करने की कोशिश न करे। मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि कानून व्यवस्था बाधित होगी तो प्रदर्शनकारी जिम्मेदार होंगे। मुख्यमंत्री की इस समझाइश को धमकी नहीं नसीहत समझा जाना चाहिए। पिछले दिनों सुकमा और हाल ही नारायणपुर में जो हुआ, वह बस्तर की संस्कृति से मेल नहीं खाता। प्रदर्शनकारी उत्तेजित हुए तो इसकी कुछ स्वाभाविक और कुछ दीगर वजह भी हो सकती हैं। आदिवासी स्वभावगत शांत और सहज होता है। सुकमा और नारायणपुर में जो हुआ, वह स्वाभाविक रूप से आदिवासियों के स्वभाव के प्रतिकूल है लेकिन यह भी जाहिर है कि आदिवासी एकदम से संयम नहीं खोता। किंतु प्रतिकार करने में भी पीछे नहीं रहता। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा है कि बस्तर का सम्पूर्ण विकास हो और आदिवासी हितों का संरक्षण किया जाय। इस धारणा के प्रति उनकी संवेदनशीलता उनकी कार्यशैली में साफ झलकती है। यदि प्रशासनिक स्तर पर कुछ अवरोध है तो बात जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचाई जा सकती है। शांतिपूर्ण तरीके से विरोध व्यक्त किया जा सकता है लेकिन आंदोलन के बीच उपद्रव समस्या का समाधान नहीं बल्कि अवरोध ही उत्पन्न कर सकता है, यह बात समझ लेनी चाहिए कि आदिवासियों की आड़ में कहीं कोई सियासी झाड़ तो नहीं गाड़ रहा। यदि ऐसा है तो आदिवासी समाज को सतर्क रहना होगा। किसी भी सरकार का यह प्रयोजन नहीं हो सकता कि जनभावनाओं का दमन किया जाय क्योंकि जनता ही सरकार चुनती है और जनभागीदारी से ही विकास तथा शांति की स्थापना सम्भव है। बस्तर विकास के लिए मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता लगातार सामने आ रही है। वे बार बार लगातार बस्तर अंचल का दौरा कर रहे हैं, करोड़ों रुपए के विकास कार्यों की सौगात दे रहे हैं। इस बार भी उन्होंने बस्तर को ढेर सारे उपहार दिए हैं। बस्तर ने कांग्रेस पर जो उपकार किया है, उसका आभार वे बस्तर के कायापलट के रूप में व्यक्त कर रहे हैं। यदि कहीं किन्हीं मुद्दों पर असहमति है तो सहमति की संभावनाओं से खिलवाड़ करने की बजाय बातचीत से सहमति का विकल्प ही बेहतर उपाय हो सकता है।