– साधुराम दुल्हानी
छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के जिला मुख्यालय में स्थित है यह शक्ति पीठ। केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार माता सती का दांत यहां गिरा था, इसलिए यह स्थल पहले दंतेवला और अब दंतेवाड़ा के नाम से चर्चित है। डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने 700 साल पहले करवाया था। 1883 तक यहां नरबलि होती रही। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने करवाया था। अब यह मंदिर केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है। नदी किनारे नलयुग से लेकर छिंदक नागवंशी काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी है। मां दंतेश्वरी को बस्तर राजपरिवार की कुलदेवी माना जाता है, परंतु अब वह समूचे बस्तरवासियों की अधिष्ठात्री है। प्रतिवर्ष वासंती और शारदीय नवरात्रि के मौके पर हजारों मनोकामनाएं ज्योति कलश प्रज्वलित होती हैं। 50,000 से ज्यादा भक्त पदयात्रा कर शक्ति पीठ पहुंचते हैं। दंतेश्वरी मंदिर प्रदेश का एकमात्र ऐसा स्थल है जिसमें हजारों आदिवासी शामिल होते हैं। नदी किनारे 8 भैरव भाइयों का आवास माना जाता है इसलिए यह स्थल तांत्रिकों की भी साधना स्थली मानी जाती है।