रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के र्व प्रदेश अध्यक्ष द्वय विष्णुदेव साय और विक्रम उसेण्डी ने वन अधिकार पत्रों और तेंदूपत्ता संग्रहण को लेकर आदिवासियों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैए और उनके साथ हो रहे अन्याय को लेकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा है। तथ्यों और आँकड़ों के साथ श्री साय व श्री उसेण्डी ने आरोप लगाया है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार झूठ की राजनीति करती हुई सच्चाई से बहुत दूर निकल चुकी है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष द्वय श्री साय व श्री उसेण्डी ने प्रदेश सरकार की तेंदूपत्ता नीति पर सवाल खड़ा कर कहा कि :
• छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है। यह भूमि आदिवासियों के गौरवशाली इतिहास के रूप में जानी जाती है। जब छत्तीसगढ़ में डेढ़ दशक तक भाजपा की सरकार रही तब आदिवासियों के हित को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाई गई थीं। इसमें सुदूर अंचलों में बसने वाले आदिवासियों की आजीविका से लेकर उनके भोजन और यहां तक कि उनके लिए चरण पादुका तक की व्यवस्था शासन द्वारा की जाती थी। 15 साल तक अथक परिश्रम और विकास की तेज रफ्तार ने आदिवासी क्षेत्रों को विकास से जोड़ा, जिसमें हजारों किलोमीटर की सड़कें बनीं, बिजली-पानी और पुल-पुलियों का निर्माण हुआ। आदिवासियों की मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर उच्च शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध करवाने का कार्य किया गया।
• कांग्रेस के कुशासन और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों को विकास की कड़ी से निकालकर अलग कर दिया है। इस सरकार ने आदिवासियों के लिए एक भी नई कारगर योजना नहीं बनाई बल्कि जो योजनाएं आदिवासियों के लिए हितकारी योजना भाजपा की सरकार लेकर आई थी, इस सरकार ने उन्हें भी बंद कर दिया। ‘चरण पादुका योजना’ इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
• छत्तीसगढ़ के आदिवासी सदियों से वनों में निवास कर रहे हैं। हरा सोना कहे जाने वाला तेंदूपत्ता उनकी आजीविका का प्रमुख साधन है। लेकिन प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों की आजीविका पर सीधा प्रहार किया है, तेंदूपत्ता संग्रहण की एक उत्कृष्ट व्यवस्था जो सालों मेहनत करके भाजपा की सरकार ने बनाई थी, उसे पूरी तरह बर्बाद करने का काम कांग्रेस की सरकार ने किया है।
• सन 2017 में भाजपा शासनकाल में 17 लाख मानक बोरे तेंदूपत्ता का संग्रहण होता था, जिनकी नीलामी के बाद कुल 1,358 करोड रुपए वन समितियों को प्राप्त होते थे। इसके अनुसार प्रति मानक बोरा लगभग 8 हजार रूपये का होता था। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के समय 2021 में तेंदूपत्ता संग्रहण कम होकर 13 लाख मानक बोरा हो गया और इसका भी 10.32 लाख मानक बोरा ही यह सरकार बेच पाई जिससे मात्र 704 करोड रुपए वन समितियों को मिले। इस प्रकार प्रति मानक बोरा लगभग 6,800 रुपए हुए।
• कांग्रेस सरकार की कुनीतियों के चलते एक ओर तो छत्तीसगढ़ सरकार का तेंदूपत्ता से होने वाली कमाई पर बड़ा घाटा पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर तेंदूपत्ता पर निर्भर आदिवासियों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया जा रहा है। बीजापुर में तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों को अपने एक साल के बकाया पारिश्रमिक के लिए ठेकेदार के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन का मार्ग चुनना पड़ा।
• प्रदेश में भाजपा की सरकार के समय वर्ष 2017 में कुल 17.10 लाख मानक बोरे का संग्रहण हुआ जिसमें तेंदूपत्ता संग्राहकों को कुल 427 करोड़ रुपये पारिश्रमिक के रूप में एवं 749 करोड़ रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में भुगतान हुआ। इस प्रकार वर्ष 2017 में कुल 1176 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ। वहीं कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2021 में कुल 13 लाख मानक बोरे का संग्रहण कर पारिश्रमिक के रूप में 520 करोड़ रु. एवं प्रोत्साहन राशि के रूप में सिर्फ 110 करोड़ रु. का भुगतान किया। इस प्रकार कुल 630 करोड़ रु. का भुगतान हुआ। इस प्रकार तेंदूपत्ता संग्राहकों को 546 करोड़ रु. का कम भुगतान किया गया।
• आज न समितियां ढंग से कार्य कर रही हैं और ना ही यह सरकार आदिवासियों के कठिन परिश्रम का पारिश्रमिक उन्हें दे पा रही है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश के आदिवासी लगातार पिछड़ रहे हैं। यह सरकार वनवासी परिवारों के लिए न तो योजना बना पा रही है और न ही उनके तेंदूपत्ता का सही मूल्य दे पा रही है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष द्वय श्री साय व श्री उसेण्डी ने वन अधिकार पट्टों को लेकर प्रदेश सरकार के दावों को झूठ का पुलिंदा बताया और कहा कि :
• मुख्यमंत्री भूपेश बघेल न तो अपनी सरकार की कमजोरी देख पा रहे हैं और न ही धरातल की स्थिति। मुख्यमंत्री बघेल सही कहते हैं कि छत्तीसगढ़ सर्वश्रेष्ठ हुआ है लेकिन पट्टे वितरण करने में नहीं, बल्कि 24 प्रतिशत पट्टे अस्वीकार करने में छत्तीसगढ़ आज देश में सबसे आगे है।
• मुख्यमंत्री बघेल की सरकार को जब राष्ट्रीय अवार्ड मिलते हैं तो सब ठीक होता है, उन्हें सब सही लगता है लेकिन जब राष्ट्रीय आंकड़े भूपेश सरकार की नाकामी को दिखाते हैं तो भूपेश बघेल इसे हजम नहीं कर पाते।
• आदिवासियों को वितरित किए जाने वाले वनाधिकार पट्टे के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा के शासनकाल में 2008 से 2018 तक 4,01,586 आदिवासी वन अधिकार पट्टे प्रदान किये गये, जिनका प्रतिवर्ष अनुपात 40,158 है।
जबकि पिछले साढ़े चार सालों में भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ में लगभग 54,771 वन अधिकार पट्टे ही आवंटित किए हैं, जिनका वार्षिक औसत मात्र 13,692 पट्टे प्रतिवर्ष है।
• भूपेश बघेल का वन अधिकार पत्र वितरित करने में छत्तीसगढ़ के आगे बढ़ने का दावा खोखला है। भारत सरकार की रिपोर्ट बताती है कि डेढ़ दशक के भाजपा शासन में पट्टा वितरण में छत्तीसगढ़ देश में दूसरे स्थान पर था, जबकि आज स्थिति यह है कि 77 प्रतिशत के साथ आँध्रप्रदेश प्रथम स्थान, 72 प्रतिशत के साथ ओड़िशा दूसरे स्थान, 64 प्रतिशत के साथ त्रिपुरा तीसरे स्थान, 62 प्रतिशत के साथ केरल चौथे स्थान, 56 प्रतिशत के साथ झारखंड पांचवें स्थान और क्लेम के अनुपात में पट्टा वितरण करने के मामले में 53 प्रतिशत के साथ छत्तीसगढ़ सातवें स्थान पर आ गया है।
• प्रदेश में जब भाजपा की सरकार थी तब व्यक्तिगत क्लेम की संख्या 8,58,682 थी जिसपर 4,01,251 पट्टे वितरित किये गये थे, लेकिन कांग्रेस के शासनकाल में सिर्फ 12,775 ही व्यक्तिगत क्लेम प्राप्त हुए हैं। उसमें भी कांग्रेस की सरकार ने पुराने क्लेम मिलाकर कुल 4,02,292 क्लेम निरस्त किये हैं।