0 बीस साल पुराने विद्यालय की आज की तस्वीर
आज आदि के पुराने विद्यालय में स्नेह मिलन समारोह आयोजित किया गया है, जहाँ 25 वर्ष पुराने छात्र-छात्राओं को बुलाया गया है। आज मैं आपको आदि और ज्योति के बीच प्यार भरी अनकही कहानी सुनाने जा रहा हूं। कहानी में जाने से पहले वर्तमान में आदि और ज्योति का परिचय आपसे कराना चाहता हूं। आदि आज क्राइम ब्रांच में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। काफी कम उम्र में उन्होंने ने यह उपलब्धि हासिल की है। आदि का कार्य जो ना जाने कितने क्रिमिनल को उनके गुनाहों पर छोड़े गए सुरागों के जरिए ढूंढ कर उनको सजा दिलाता है। क्राइम ब्रांच में इनका कार्य बेहद चुनौती और जिम्मेदारी वाला है, लेकिन जितना ही चुनौतीपूर्ण कार्य है उतना ही ये आम जनता से परिचय नहीं रखते हैं। इनका कार्य केवल जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होता है। आम जनता से इनका सीधा परिचय नहीं होता है। इनका कार्य होता है, बिना किसी दिखावा, बिना किसी तामझाम के बखूबी से अपने कामों को अंजाम देना। वैसे ही ज्योति भी है, ज्योति फॉरेंसिक लैब में साइंटिस्ट है, जैसा कि मैंने आदि का परिचय दिया, ठीक वैसे ही ज्योति का भी है, इनका भी काम बेहद चुनौतीपूर्ण और जिम्मेदारी भरा होता है। वह छोटी सी छोटी चीजों को अध्ययन करके उसको विस्तार देने का कार्य करती है। अगर कहीं पर क्राइम हुआ है तो क्राइम में प्रयुक्त की गई हर चीज का बारीकी से अध्ययन करके उस क्रिमिनल तक पहुंचने का काम आसान करने का कार्य करती है। इनके कार्यों से फोरेंसिक विभाग को काफी मदद मिलती है और जैसा कि मैंने बताया कि आदि का काम एक प्रकार से गुमनामी भरा होता है, उससे कहीं ज्यादा ज्योति का विभाग है। इसमें केवल वही लोग इनको जानते हैं जो इनके आसपास कार्यरत होते हैं। इनके अलावा आम जनता को इनसे सीधा कोई सम्पर्क नहीं होता है। ये लोग न कभी किसी मंच से भाषण देते हैं ना कभी टीवी या समाचार पत्रो में इनका इंटरव्यू होता है। इनका ध्येय केवल अपना कार्य करना एवं देश की सेवा करना होता है। 20 वर्ष पहले साथ में अध्ययन किये आदि और ज्योति की कहानी आखिर मैं क्यूँ सुना रहा हूँ, शायद आप यही सोच रहे होंगे। दरअसल कहानी अभी शुरू नहीं हुई हैं मैंने तो मात्र कहानी के 2 पात्रो का आप से परिचय कराया है।
अब आते हैं आज के दृश्य पर 20 साल पहले 2002 में इन दोनों की मुलाकात फिल्मी कहानी के रूप में हुई या कहें विधि के विधान से हुई।दरअसल आदि इससे पहले अपने पिताजी के समूह द्वारा संचालित गांव के विद्यालय में कक्षा 9वीं तक पढ़ाई करने के बाद गांव के पास ही एक कसबे के शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा दसवीं में दाखिला लिया दरअसल गांव के स्कूल को 10वी की मान्यता नहीं मिल पाने के कारण स्कूल का संचालन आगे की कक्षाओं के लिए अचानक बंद करना पड़ा था। चूँकि तब अगस्त का महीना लगभग समाप्ति पर था अतः आनन-फानन नजदीक में एकमात्र शासकीय हायर सेकेण्डरी स्कूल होने के कारण वहां बोर्ड कक्षा में अध्ययन करने के लिए बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने दाखिला लिया था। एक क्लास में करीब डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चे थे। तब कुछ जिलो में जैसा कि नाम से ही शासकीय विद्यालय बदनाम होते थे, वैसे ही बच्चे भी वहां अधिक क्लास ही नहीं करते थे। इसके पूर्व कक्षा छठवीं से लेकर कक्षा 9वी तक आदि की पढ़ाई निजी विद्यालय में हुई थी। निजी विद्यालय के अनुशासन के अनुरूप दिनचर्या और कक्षा में नियमित उपस्थिति का रहना। उसी दिनचर्या को निरंतर आगे जारी रखते हुए आदि दसवीं में भी प्रतिदिन कक्षा में उपस्थित होता रहा। प्रारंभिक कक्षाओं से ही आदि के साथ ऐसा रहा कि चचेरी फुफेरी भाई बहन साथ में पढ़ती रहीं और इसी वजह से ही आदि की मित्रता इन्ही भाई बहनो तक सीमित रही। वह करीबियों और नाते रिश्तेदारों के बीच ही रहा और यही परिपाटी नवीन विद्यालय में भी कायम रही। आदि के सगे मामा की बेटी और फुफेरी बहन साथ में पढ़ती थीं। लेकिन कहते हैं ना कि आपके क्लास में या फिर आपके आसपास अगर कोई ऐसा चेहरा हो जिसको देखकर आप भाव विभोर हो उठते रहे हों या फिर जिसको सामने पाकर आपके अंतर्मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो, ऐसा ही कुछ ज्योति को लेकर आदि के साथ हो रहा था।प्रायः कक्षा 10वीं के विद्यार्थी जीवन में नाबालिग उम्र की मनोदशा के साथ ही शरीर में बायोलॉजिकल परिवर्तन देखने को मिलता है। कुछ ऐसे ही बदलाव आदि के अंदर भी हो रहा था, जिसके कारण आदि अपने विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो रहा था। कह सकते हैं कि तब 90 के दशक में कोई टेक्नोलॉजी का इतना अधिक विकास व विस्तार नहीं हुआ था, उस समय चिट्ठी-पत्री का ही जमाना था। ना कोई मोबाईल ना कोई अन्य विद्युत यंत्र जिससे पलक झपकते ही आपके शब्दों का संचार किया जा सके। आदि के कक्षा में मासूम सी लड़की ज्योति भी थी उसको भी निजी विद्यालय से मजबूरन पारिवारिक कारणों की वजह से शासकीय विद्यालय में दाखिला लेना पड़ा था। पहले से ही निजी विद्यालय में पढ़ने से वह काफी होशियार और प्रतिभावान लड़की थी। जब कक्षा में ज्योति की बोलने का बारी आती या फिर शिक्षक से या सहपाठियों से जब वह कुछ सवाल करती तो उसके शब्दों से ही, उसकी मधुर वाणी को ही सुनकर आदि आकर्षित हो जाता था। वैसे तो वे लोग मुश्किल से 6 महीने तक ही साथ में पढ़े और इन 6 महीनों में जब भी ज्योति क्लास में होती या जब भी आदि के आस पास होती तो वह प्रफुल्लित हो उठता और आप यकीन नहीं करेंगे पूरे 6 महीने में ऐसा एक भी दिन नहीं आया जब उन दोनों के बीच कोई वार्तालाप हुआ हो। दिसंबर का महीना खत्म होने के बाद जैसे ही नया वर्ष प्रारंभ हुआ तो आदि ने भारी हिम्मत करके उस समय ₹40 का न्यू ईयर के लिए ग्रीटिंग कार्ड खरीदा और जैसा की मैंने पहले ही बताया है कि आदि के साथ उसकी फुफेरी बहन भी थी। तत्कालीन समय और बुद्धि के अनुरूप ग्रीटिंग के अंदर टूटी फूटी कविता लिखकर और नववर्ष की शुभकामनाओं सहित अपना नाम लिखकर आदि ने अपनी बहन को मस्का मार-मार कर पटाया कि बहन प्लीज, यार, यह ग्रीटिंग कार्ड मेरे नाम से अपनी अजीज मित्र ज्योति को दे देना। काफी मान मनौव्वल के बाद आदि की बहन तैयार हुई। बहन वह ग्रीटिंग कार्ड उसको देने के लिए ले गई लेकिन शाम को वापस आने के बाद बहन ने बताया कि ज्योति ने तेरा ग्रीटिंग कार्ड लेने से इंकार कर दिया था। आदि को तब पहली बार झटका लगा कि इतनी हिम्मत करने के बाद भी जब परिणाम नकारात्मक आया तो मन में कुछ देर उदासी सी छाई रही। यही वजह रही कि वे दोनों आपस में कभी बात ही नहीं कर पाए और ना ही आदि कभी अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाया। जैसा कि ग्रामीण परिवेश में रहने वाले बच्चों के भीतर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आज के समय में भी बहुत ज्यादा झिझक होती है, फिर हम तो बात 90 के दशक की कर रहे हैं। इसी झिझक के बीच आदि ने कक्षा दसवीं की अपनी पढ़ाई पूरी की और अपने जीवन का पहला अनुभव जो बिना वार्तालाप के ही जिसे एक बायोलॉजिकल अट्रैक्शन कहा जाए या फिर एक झुकाव कहा जाए वहीं तक सीमित रह गया।
आदि 10 वीं पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला गया। उसके बाद 20 वर्षाे बाद आज ज्योति से दोबारा मुलाकात हुई है। चूँकि पुराने सहपाठियों का स्नेह मिलन कार्यक्रम था। आदि और ज्योति जब एक दूसरे से मिले तो दोनों के ही आँखों में खुशी के आंसू थे। काफी देर तक दोनों एक दूसरे को निहारते रहे, फिर एक दूसरे का हाल-चाल पूछने से वार्तालाप प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम में स्कूल के अध्ययनरत वर्तमान छात्र-छात्राएं भी थे जिनके सामने सभी पुराने छात्र-छात्रायें अपने-अपने अनुभव को साझा कर रहे थे। जब ज्योति की बारी आई तो उसने मंच से सबका अभिवादन किया और 20 वर्ष पुराना अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि कैसे इस विद्यालय में उन्होंने 3 वर्ष 10वीं, 11वीं, और 12वीं की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए कहां गए, क्या-क्या तैयारी की और आज इस पद पर कैसे पहुंची। इसके साथ ही उसने आदि के साथ हुई उस ग्रीटिंग कार्ड की कहानी को भी साझा की और उस वक्त आदि के ग्रीटिंग कार्ड को ना लेने की वजह भी बताई उन्होंने बताया कि हां आदि भी मुझे पसंद था। आदि जब मेरे आस-पास या कक्षा में रहता था तो मैं भी उत्साहित रहती थी। यकीन मानो आप जहां पढ़ रहे हो वहां अगर आप किसी ऐसे चेहरे को रोज देखना चाहते हो, उनके सामने आप खुद को अच्छा बनाना चाहते हो या फिर आपको लगता है कि मैं उसके सामने गलत नहीं हो सकता या फिर कुछ गलत नहीं कर सकता तो आप यकीन मानो आप खुद से मोटिवेट होते हो और आपको प्रतिदिन कक्षा में आने की इच्छा होती है आपको किसी और के मोटिवेशन की जरूरत ही नहीं पड़ती। आप अपने क्लास में ऐसा चेहरा जरूर रखो जिनके होने मात्र से आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो और यही मेरे साथ भी था। लेकिन तब, जब नव वर्ष पर आदि ने मुझे अपनी बहन के माध्यम से ग्रीटिंग कार्ड भेजा तब मैं चाह कर भी उसको नहीं ले सकती थी, उसके पीछे कुछ और नहीं मैं खुद और मेरा परिवार था। दरअसल उसी वर्ष हम लोग शहर से वापस गांव लौटे थे और शहर से वापस गांव लौटने के पीछे के कारण मेरे पिताजी थे। हम लोगों का छोटा सा परिवार था। एक भाई एक बहन और माता पिता जी कुल 4 लोगोें का हमारा परिवार हुआ करता था। मुझसे 2 वर्ष छोटा मेरा भाई था लेकिन उसी वर्ष गर्मी के दिनों में लू लगने से भाई की मृत्यु हो गई थी। इस घटना से माँ बहुत दुखी रहने लगी थी। शहर में पिताजी का तहसील कार्यालय में लेखापाल की दूकान होती थी। लेकिन तब अचानक पिताजी बुरी संगत के चलते अत्यधिक नशा और शराब का सेवन करने की लत में पड़ गये और उसी लत के चक्कर में धीरे-धीरे काम बंद हो गया। पिताजी को अपना सारा काम समेटकर दुकान बेचनी पड़ी। फिर हम वापस अपने गांव आ गये क्योंकि गलत संगति में पड़कर पिताजी के ऊपर काफी कर्ज हो चूका था और परिवार चलाने के लिए कोई आय का साधन नहीं बचा था। तब गांव में हमारा जमीन का छोटा सा टुकड़ा था और गांव में हमारे पुराना घर भी था। इसलिए हम शहर से वापस गांव आ गए और मुझे मजबूरन सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा था। लेकिन कहते हैं ना कि जो विधि का विधान होता है उसका होना तय है, और शायद यह मेरे लिए जो हुआ अच्छा हुआ के तर्ज पर अच्छा ही था। मैं ईमानदारी से 3 वर्ष पढ़ाई की अगर उस समय मैं आदि से ग्रीटिंग ले ली होती तो शायद उनका मेरे प्रति विचार और दृढ़ हो जाता और यह जो किशोरावस्था का शारीरिक झुकाव होता है, वह आगे चलकर हम दोनों के भविष्य के लिए रुकावट साबित हो सकता था। इसलिए मैं खुद पर काबू पाते हुए अपने परिवार की जिम्मेदारियों के प्रति ज्यादा सजग रही। जैसा की आदि भी एक होशियार लड़का था तो मैं नहीं चाहती थी कि हमारी किसी भूल की वजह से हमारा कैरियर बर्बाद हो। सही बात तो यह भी है कि उस समय इन सब चीजों पर मेरा विचार ही नहीं हो पाया था। हां, लेकिन आज तक मैं कभी भी उसको भूल नहीं पाई हूं और आज जब हम दोनों की मुलाकात हुई तो हम दोनों की आंखों में आंसू थे और एक सुकून भरा एहसास कि हां जो हुआ शायद अच्छा हुआ, और आज हम दोनों जिस मुकाम पर हैं वह हम दोनों के परिवार वालों के लिए आज गर्व का विषय है। आज मैं अपने माता-पिता के साथ शहर में रहकर अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही हूँ। ज्योति के बाद आदि की बारी थी मंच से बोलते हुए उसने भी अपनी संघर्ष गाथा सुनायी उसने कहा किः- जैसे-जैसे उम्र के आगे बढ़ने के साथ परिपक्वता बढ़ने लगी और समय के साथ जिम्मेदारियों का भार भी समझ आने लगा। परिपक्वता के साथ ही तब आदि को भी एहसास होने लगा कि वह जो विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण था केवल उम्र की वजह से हो रहे शारीरिक बदलाव के ही कारण था। जो सामान्यतः हर बच्चे में पाया जाता है। वास्तव में उम्र का यह दौर बहुत खतरनाक मोड़ पर होता है, जिसमें बच्चों को सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है। अन्यथा भटकने में समय नहीं लगता और जिन्दगी तबाह हो जाती है। इस बदलाव को समझते हुए किशोरावस्था जिसे गधापचीसी की उमर भी कहा जाता है, उसको सही तरीके से पार कर लेना ही बेहतर भविष्य का सूचक है। यह बहुत ही आवश्यक हो जाता है कि सभी माता-पिता अपनी दिनचर्या में कितने भी व्यस्त क्यों न हों, लेकिन इस उम्र के बच्चों के साथ उन्हें कुछ समय जरूर बिताना चाहिए, ताकि उम्र में बदलाव के साथ हो रहे मानसिक भटकाव की स्थिति से उन्हें बचाते हुए अपने बच्चे के सुन्दर भविष्य की नींव पुख्ता कर सकें। आखिर में आज बिना किसी फुफेरी बहन के आदि ने खुद से हिम्मत कर के ज्योति से भरे मंच पर ही अपनी दिल की बात कह दिया। चूँकि आदि ने भी अब तक विवाह नहीं किया था, जो 20 वर्ष पहले का अधूरा प्यार या किशोरावस्था का आकर्षण था आज उनके भीतर परिपक्वता आ चुकी थी। ज्योति ने भी आज आदि के प्रस्ताव को सभी के सामने स्वीकार किया, वास्तव में आज विद्यालय का पुनर्मिलन समारोह, सभी पूर्व विद्यार्थियों की उपस्थिति में दो दिलो के सुखद मिलन समारोह के साथ सम्पन्न हुआ था।
लेखक
©️एम बी बलवंत सिंह खन्ना