0 देश के शक्तिपीठों में माता हिंगलाज का है विशेष स्थान
✍️ (किसुन चंद्राकर)
जगदलपुर। बस्तर प्राचीन काल से आज तक शाक्त धर्म का सबसे बड़ा केन्द्र है। सदियों से यहां देवी शक्ति की आराधना की जाती रही है। यहां विभिन्न नामों मे देवियों की पूजा भक्ति की जाती है। बस्तर के हर ग्राम मे देवी का आराधना स्थल है जो कि हजारों वर्षों से है।
बस्तर जिले के बकावंड ब्लाक में एक छोटा सा ग्राम है गिरोला जहां देवी हिंगलाजिन का मंदिर है। देवी हिंगलाजिन यहां सदियों से पूजी जा रही है। वर्तमान में यहां पर पक्का मंदिर बनाया गया है। यह मंदिर भी दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है। नवरात्रि के समय में देवी दर्शन के लिये यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। देवी हिंगलाजिन बस्तर के और भी अन्य ग्रामों में पूजी जाती है। बस्तर में जिस तरह से कई सदियों से आज तक देवी हिंगलाजिन मां को पूजा जाता है वैसे ही पाकिस्तान के बलुचिस्तान में देवी हिंगलाज माता भी सदियों से आज तक पूजी जा रही है। दोनो देवियों के नाम में समानता है और दोनो ही देवी सती के ही रूप है।
देवी दंतेश्वरी बस्तर के प्रत्येक ग्राम में अलग-अलग नाम से पूजी जाती है। दंतेवाड़ा में देवी सती का दांत गिरा था ऐसी यहां मान्यता है। यहां स्थापित देवी दंतेश्वरी के नाम से पूजी जाती है। दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा को 52 वां शक्तिपीठ माना गया है। इसी तरह हिंगलाज माता शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलुचिस्तान राज्य में हिंगोल नदी के तट हिंगलाज क्षेत्र में स्थापित है। मान्यता है कि देवी सती का सिर यहां गिरा था। यह भारत 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ है। यहां देवी हिंगलाज माता के नाम से जानी जाती हैं। हर साल पाकिस्तान के हजारों हिन्दु यहां देवी के दर्शन करते है। इसके अलावा भारत से भी श्रद्धालु देवी हिंगलाज के दर्शन करने के लिये जाते है। बस्तर की देवी हिंगलाजिन और पाकिस्तान में हिंगलाज माता दोनो के नाम में समानता के साथ साथ दोनो ही देवी सती के ही अंश है।