बेहाल है छत्तीसगढ़ के मोगली का परिवार…

(अर्जुन झा)

जगदलपुर। नारायणपुर जिले के गढ़बंगाल गांव ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के फ़िल्म जगत का जाना माना नाम रहा है चेंदरू, जिसे हम छत्तीसगढ़ के मोगली और बस्तर के जंगलों के टार्जन के नाम से भी जानते हैं। चेंदरू यानि वही शख्स, जो बचपन में शेर, तेंदुआ जैसे हिंसक और खतरनाक जंगली जानवरों के साथ बेखौफ़ और बिंदास होकर खेला करता था. बस्तर के इस वन पुत्र ने कच्ची उम्र में ऐसा कारनामा कर दिखाया था, जो आज तक कोई और नहीं कर पाया है. जंगली जानवरों के साथ चेंदरू की अनोखी दोस्ती ने हॉलीवुड का भी ध्यान खींचा और हॉलीवुड के एक बड़े फ़िल्म निर्माता ने अपनी फ़िल्म में चेंदरु को मुख्य किरदार के तौर पर जगह दी. यह फ़िल्म पूरी दुनिया में न केवल चर्चित हुई, बल्कि उसे ऑस्कर अवार्ड से भी नवाजा गया. यह चेंदरु की पहली और आखिरी फ़िल्म थी। उसके बाद आज तक अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में छत्तीसगढ़ के किसी कलाकार को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिली। कभी छत्तीसगढ़ के मोगली तथा बस्तर का टाइगर बॉय के नाम से विख्यात रहा यह अंतर्राष्ट्रीय हीरो आज हमारे बीच नहीं है. 18 सितंबर 2013 को 78 वर्ष की उम्र में चेंदरु सदा सदा के लिए अनंत यात्रा पर चले गये। आज उसकी 9 वीं पुण्यतिथि है। एक बेहद सफल, बेहद चर्चित अंतरराष्ट्रीय फिल्म के हीरो चेंदरू की जिंदगी का बड़ा हिस्सा गुमनामियों में बीता। चेंदरू ने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर संपूर्ण भारत का नाम रोशन किया है. चेंदरू द्वारा अभिनीत फिल्म को वर्ष 1958 में कांस फिल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित किया गया था । चेंदरू के जीवन काल में उसे जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। फिल्म के साथ ही 1960 के दशक में स्वीडिश तथा अंग्रेजी भाषा में चेंदरू के नाम से जो किताबें और फिल्म तैयार की गई थीं, वह समय के साथ-साथ उसके परिवारजनों के पास आज नहीं है। आज उसका परिवार किसी तरह मजदूरी करके गुजर बसर कर रहा है ।


पाठ्यक्रम में हो शौर्यगाथा

चेंदरू के जीवन काल में जो फिल्म तैयार हुई थी तथा अनेक देशों में रिलीज हुई थी, उसे संग्रहित किए जाने की आवश्यकता है। बस्तर के इस पहले हॉलीवुड अभिनेता के संबंध में स्वीडिश व अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित सचित्र पुस्तक का हिंदी हल्बी तथा गोंडी बोली भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित करवाया जाना चाहिए। बतौर मुख्य भूमिका निभाने वाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म के नायक चेंदरू ने बाघ और तेंदुए के बीच रहकर वन्य प्राणियों के साथ मानवीय भावना का परिचय दिया, उसकी गाथा को जन-जन तक पहुंचाया जावे ।छत्तीसगढ़ के शालेय पाठ्यक्रम में चेंदरु की शौर्यगाथा को शामिल किये जाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ी को चेंदरू से अवगत कराया जा सके, यही उसके तथा परिवार जनों का वास्तविक सम्मान होगा। उसके परिवार की बेहाली को देखते हुए मदद की भी दरकार है।

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