तारेका से प्रशासन ने तोड़ा नाता, अब नाले पर ग्रामीण खुद बना रहे हैं लकड़ी का पुल

0 दो गांवों के आवागमन में बाधक बन गया है नाला

0 बुडरा पारा तक पहुंचने से कतरा रहा है सुशासन 
(अर्जुन झा)बकावंड। सुशासन तिहार के बीच बकावंड ब्लॉक की तारेका पंचायत का अनदेखा सच सामने आया है। इस पंचायत के बुडरा पारा के लिए सुशासन तिहार बेमानी हो गया, गांव की समस्याओं के समाधान का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। एक नाला दो बस्तियों के बीच बड़ा बाधक साबित हो रहा है। पुलिया विहीन नाले से त्रस्त ग्रामीण हर साल जंगल काटने को मजबूर हो जाते हैं। काटे गए पेड़ों के लट्ठों से ग्रामीण नाले पर अस्थाई पुल का निर्माणकरते हैं, जिसके दम पर आवागमन होता है।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में सुशासन तिहार एक जन-जागरण और समाधान केंद्रित अभियान के रूप में मनाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के कोने-कोने तक शासन की योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं और आमजन की शिकायतों का त्वरित निराकरण भी किया जा रहा है। स्वयं मुख्यमंत्री विष्णु देव साय हेलीकॉप्टर से अचानक विभिन्न जिलों और ब्लॉकों के किसी भी गांव में अचानक उतरकर जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं और लापरवाह अधिकारियों को कड़ी चेतावनी दे रहे हैं कि काम करो या निलंबन के लिए तैयार रहो। इस उजली तस्वीर के बीच बस्तर जिले के बकावंड ब्लॉक की तारेका पंचायत से एक बदरंग तस्वीर भी सामने आई है। तारेका पंचायत एक गंभीर समस्या से जूझ रही है, जो सुशासन तिहार की आत्मा पर सवाल खड़ा करता है।

पुलिया के बिना खेती चौपट
तारेका पंचायत की जनसंख्या लगभग 1000 है। पंचायत में चार पारा हैं तलपारा, माझीपारा, ऊपरपारा और हाल ही में विकसित बुडरा पारा। बुडरा पारा जाने के रास्ते में बहने वाले नाले पर पक्का पुलिया नहीं है। यही नहीं, ग्रामीणों के खेत भी इसी पार में हैं, और खेत तक पहुंचने के लिए उन्हें हर साल 10-20 पेड़ काटकर अस्थायी लकड़ी का पुल बनाना पड़ता है।इससे न सिर्फ पर्यावरणीय नुकसान होता है, बल्कि ग्रामीणों की जान और फसल के लिए खतरे की घंटी भी है। बरसात में जब नाले में बाढ़ आ जाती है, तब लकड़ी का पुल बह जाता है और ग्रामीण खेत नहीं जा पाते। इस वर्ष यदि पुलिया का निर्माण नहीं हुआ, तो कई किसान खेती ही नहीं कर पाएंगे। ग्रामीणों के अनुसार कई बार सरपंच, जनपद सदस्य, बस्तर सांसद और विधायक तक से पुलिया निर्माण की मांग की जा चुकी है। सुशासन तिहार के दौरान भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया है। लेकिन आज तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। यह विडंबना है कि निर्विरोध रूप से चुने गए सरपंच के नेतृत्व में भी विकास के ऐसे जरूरी काम अटक गए हैं।

आखिर जिम्मेदार चुप क्यों?
यह पंचायत जनपद मुख्यालय बकावंड से लगभग 40-50 किलोमीटर दूर स्थित है, और अंतिम सीमा पर है। इस गांव की सीमा से कोंडागांव जिला व माकड़ी ब्लॉक जुड़ते हैं। घने जंगल और दूरस्थ होने के कारण यहां आने से अधिकारी बचते हैं। इस बीच एक बड़ा सवाल यह उठता है कि सुशासन तिहार जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के आयोजन के बावजूद तारेका पंचायत के बुडरा पारा की बुनियादी समस्याओं का समाधान क्यों नहीं हो पा रहा? क्या यह कार्यक्रम केवल औपचारिकता भर रह गया है?

पंचायत प्रतिनिधि मौन
ग्रामीणों ने विशेष रूप से सरपंच पति जोगेंद्र बघेल, उप सरपंच लखमू मंडावी, कोटवार मानकू नेताम, पटेल असमान बघेल, पंच चंद्रा पोयम, लिमबती बघेल, दसाय बघेल आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सब जानते हैं, लेकिन कोई आगे नहीं आ रहा।

क्या उम्मीदें रहेंगी अधूरी?
तारेका पंचायत के बुडरा पारा में पुलिया निर्माण मात्र एक ढांचागत विकास नहीं, बल्कि किसानों की आजीविका, पर्यावरण की सुरक्षा और शासन की साख का मामला है। यदि सुशासन तिहार का उद्देश्य वास्तव में हर वर्ग की समस्याओं का समाधान करना है, तो यह समस्या उच्च प्राथमिकता में आनी चाहिए। अब देखने वाली बात यह है कि बस्तर जिला प्रशासन, बकावंड जनपद और स्वयं मुख्यमंत्री साय इस मसले को कितनी संवेदनशीलता से लेते हैं और क्या वास्तव में शासन की धरती पर उतरती नीतियां इन जंगलों के बीच रहने वाले लोगों तक पहुंच पाएंगी?

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