इंद्रावती टाइगर रिजर्व में फंदे में फंसा मिला घायल बाघ, वन विभाग ने किया रेस्क्यू

0 टाइगर रिजर्व में सक्रिय हैं महाराष्ट्र के शिकारी, मददगार हैं स्थानीय 
(अर्जुन झा) जगदलपुर। बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में स्थित इंद्रावती टाइगर रिजर्व में अब बाघ भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं। टाइगर रिजर्व के बफर जोन में 5-6 वर्ष की उम्र का एक बाघ गंभीर रूप से घायल अवस्था में मिला है। वन विभाग ने बाघ का सफल रेस्क्यू कर लिया है।शिकारियों द्वारा लगाए गए तार के फंदे में फंसने से बाघ के दोनों पिछले पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे। घावों में सड़न हो गई थी और कीड़े लग गए थे।
इस घटना ने क्षेत्र में सक्रिय महाराष्ट्र के शिकारी गिरोह और स्थानीय सहयोगियों का हाथ होने का अंदेशा है। मामला इंद्रावती टाइगर रिजर्व बीजापुर के बफर जोन के कांदुलनार, मोरमेड़, और तोयनार गांवों के बीच घने जंगल का है। यह स्थान जो बीजापुर जिला मुख्यालय से 25-30 किलोमीटर दूर है। सूचना मिलने पर वन विभाग की टीम ने बीती रात बाघ को ट्रैंक्यूलाइज कर बेहोश किया। फिर तार के फंदे को काटकर अलग किया गया। वेटनरी डॉक्टर से घायल बाघ का उपचार कराया गया। जख्म पर मरहम पट्टी के बाद बाघ को जंगल सफारी क्षेत्र में समुचित इलाज के लिए भेजा गया। रेस्क्यू ऑपरेशन का वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें वन कर्मी तार काटते दिख रहे हैं।
लगभग 15-20 दिन पहले, कांदुलनार गांव के सर्वे कुन्ना नामक व्यक्ति की बाघ के हमले में मृत्यु हो गई थी। वह और 10-12 अन्य ग्रामीण बाघ की स्थिति की रेकी करने गए थे, तब ब बाघ ने उन पर हमला कर दिया था। सर्वे कुन्ना की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। वन विभाग ने शुरू में इसे महुआ बीनने के दौरान हुआ हमला बताया, जो बाद में गलत साबित हुआ।

शिकारी गिरोह की साजिश

जानकारी मिली है कि महाराष्ट्र के गढ़चिरौली क्षेत्र से आया शिकारी गिरोह पिछले डेढ़ महीने से खाल और अंगों के लिए बाघ के शिकार की कोशिश में लगा था। कांदुलनार के 10-12 ग्रामीण, जिनमें सर्वे कुन्ना भी शामिल था, इस गिरोह के साथ मिलकर काम कर रहे थे। शिकारियों ने तार के फंदे लगाए, जो बाघ के लिए घातक साबित हुए। घायल बाघ कई दिनों तक जंगल में शिकार की तलाश में घूमता रहा। बड़ी बात तो यह है कि शेर का घाव देखने से साफ पता चल रहा है कि यह काफी पुराना है करीब दो से तीन सप्ताह पुराना। यानि शिकारियों ने बाघ का शिकार करने के लिए पहले तार लगाए। इसके बाद वे सर्चिंग करने के लिए निकले तो उन्हें यह घायल शेर दिखाई दिया। शेर को बुरी तरह से घायल देख शिकारी जब नजदीक पहुंचा तो शेर ने हमला कर दिया। जिससे एक की मौत हो गई। जबकि प्रारंभिक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि शेर के हमले से एक ग्रामीण की मौत तब हो गई जब वह महुआ बीनने के लिए पहुंचा था। घने जंगलों में जिस जगह से शेर का रेस्क्यू किया गया है उस लोकेशन पर यदि मोबाइल डिवाइस ट्रेक किया जाए तो यह साफ हो सकता है कि ग्रामीण की मौत वाले दिन वहां केवल मृतक ही नहीं था बल्कि और भी लोग मौजूद थे।

वन विभाग पर गंभीर सवाल

वन विभाग की भी भूमिका इस मामले में संदेह के घेरे में है। सूत्रों का दावा है कि डिप्टी रेंजर नीरज श्रीवास्तव और सुमंत राय मांझी को 15 दिन पहले ही घटना की जानकारी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इन पर अवैध शिकार में संलिप्तता और संरक्षण के गंभीर आरोप हैं। डीएफओ संदीप बलगा के नेतृत्व में रेस्क्यू हुआ, लेकिन देरी और पारदर्शिता की कमी ने विवाद को बढ़ाया। सर्वे कुन्ना की मृत्यु की खबर तो उसी दिन गांव वालों को मिल गई थी। फिर वन विभाग ने इस मामले को लेकर गंभीरता क्यों नहीं दिखाई? इंद्रावती टाइगर रिजर्व के अधिकारी कहते हैं ‘नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण वन विभाग की पहुंच सीमित है।’ शायद इसका फायदा शिकारी उठा रहे हैं। यह घटना इंद्रावती टाइगर रिजर्व में वन्यजीव संरक्षण की कमजोर स्थिति को दर्शाती है। वन्यजीव विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों ने शिकारियों पर सख्त कार्रवाई, वन विभाग में पारदर्शी जांच, और बाघ के इलाज के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति की मांग की है। ट्रैप कैमरे और ड्रोन से निगरानी बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय समुदाय को जागरूक करने की भी जरूरत है। इंद्रावती टाइगर रिजर्व में हुई इस घटना ने वन्यजीव संरक्षण की चुनौतियों को सामने लाया है। बाघ का रेस्क्यू उम्मीद की किरण है, लेकिन शिकारी गिरोहों की सक्रियता और वन विभाग की निष्क्रियता चिंता का विषय भी है। तत्काल कार्रवाई और सख्त निगरानी से ही इस जैव विविधता को बचाया जा सकता है। बाघ का इलाज और पुनर्वास अब इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

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