भाजपा-संघ में मतभेद से उलझ गया है बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव का मसला?

० आखिर कौन होगा भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष?
(अर्जुन झा) जगदलपुर। क्या भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच खाई गहरी होती जा रही है? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच पटरी नहीं बैठ रही है? ये सवाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में हो रही देरी की वजह से उठ रहे हैं।
आज हम आपको जो जानकारी देनें वाले हैं वह कहीं न कहीं भाजपा और आरएस एस के बीच चल रही शीत युद्ध से जुड़ी है।एक तरफ मोदी हैं, तो दूसरी तरफ मोहन भागवत और इस कहानी का सार है कि आखिर भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा?राजनीतिक गलियारों से आ रही खबरों के मुताबिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच मनमुटाव है। इसमें कितनी सच्चाई है इसकी पुष्टि करना तो मुश्किल है, लेकिन देखने वाली बात यह है कि 30 मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी के नागपुर दौरे के दौरान क्या मोदी और मोहन भागवत के बीच इस संबंध में चर्चा होगी? क्या पहले से तय मुलाकात सार्थक होगी?भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर हाल के महीनों में काफी चर्चा और विवाद देखने को मिला है। यह विवाद भाजपा और उसके वैचारिक संरक्षक आरएसएस के बीच मतभेदों के कारण उभरा है। वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2024 में समाप्त हो चुका है, लेकिन लोकसभा चुनावों के कारण उन्हें छह महीने का विस्तार दिया गया, जो जून 2024 में खत्म हुआ। इसके बाद से नए अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी और नामों को लेकर असहमति ने स्थिति को जटिल बना दिया है।

संघ और भाजपा में तनाव
आरएसएस चाहता है कि नया भाजपा अध्यक्ष संघ की विचारधारा और कार्यप्रणाली के प्रति समर्पित संजय जोशी को बनाया जाए। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली गुजरात लॉबी इससे सहमत नहीं दिखती। कुछ लोगों का मानना है कि मोदी-शाह एक ऐसा अध्यक्ष चाहते हैं जो उनकी नीतियों को बिना सवाल जवाब के लागू करे, जैसा कि जेपी नड्डा करते आए हैं। भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तब तक नहीं हो सकता, जब तक 50 प्रतिशत से अधिक राज्य इकाइयों में संगठन चुनाव पूरे न हो जाएं। अभी तक केवल करीब 12 राज्यों में ही यह प्रक्रिया पूरी हो पाई है, जिसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। इसके चलते राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव में देरी हो रही है। भाजपा का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के कारण यह देरी स्वाभाविक है।

ये नाम भी हैं चर्चा में
भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर संजय जोशी के अलावा और भी कई नाम चर्चा में हैं। संजय जोशी आरएसएस का पसंदीदा हैं, लेकिन मोदी के साथ पुराने मतभेद के कारण उनका नाम विवाद में फंसा है। दूसरे हैं शिवराज सिंह चौहान। चौहान ओबीसी चेहरा हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से उनकी संभावना कम है। भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान के भी नाम उभरे हैं। ये दोनों संगठन में अनुभवी नेता हैं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व की सहमति का इंतजार है। एक नाम विनोद तावड़े का भी उठा है। तावड़े महाराष्ट्र से मजबूत दावेदार हैं, पर क्षेत्रीय संतुलन मुद्दा बन सकता है।

मोदी-भागवत मुलाकात टली
पिछले कई दिनों से पीएम मोदी की 30 मार्च नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत से बैठक की चर्चाओं पर पूर्ण विराम लगता हुआ नजर आ रहा है। सूत्र बता रहे हैं कि 30 मार्च को प्रधानमंत्री का नागपुर का बैक टू बैक कार्यक्रम तय हो चुका है और उन्हें उसी शाम को वापस दिल्ली लौटना है। खबर है कि मोदी के नागपुर विजिट के दौरान संघ प्रमुख और पीएम मोदी की मुलाकात का कोई कार्यक्रम तय नहीं है। दरअसल कहा जा रहा है कि मोदी-भागवत मुलाकात का न होना बेंगलुरु से जेपी नड्डा को भाजपा अध्यक्ष के विषय में संघ के निर्णय से अवगत कराया जाना था, जिसमें संघ ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए संजय जोशी के अलावा किसी और नाम पर विचार करने से साफ इंकार कर दिया है। संघ के इस निर्णय को लेकर गुजरात लॉबी में हड़कंप मचा हुआ है।

आखिर संजय जोशी हैं कौन?
जिस संजय जोशी के नाम को लेकर मोदी और मोहन भागवत के बीच मनमुटाव की खबरें आ रही हैं, वे आखिर हैं कौन, चलिए बताते हैं। उनका पूरा नाम संजय विनायक जोशी है जो भाजपा से जुड़े रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मे संजय जोशी मेकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने वीएनआईटी नागपुर से पढ़ाई की है और कुछ समय तक इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में काम भी किया। बाद में वे नौकरी छोड़कर आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। 1988 में आरएसएस ने उन्हें गुजरात में भाजपा को मजबूत करने के लिए भेजा।अपनी संगठनात्मक कुशलता और जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़ाव के कारण वे जल्द ही गुजरात भाजपा में प्रभावशाली नेता बन गए। 1988 से 1995 तक वे नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात भाजपा में सचिव के रूप में काम करते रहे। 2001 से 2005 तक जोशी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) रहे। इस दौरान उन्होंने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 1995 में जब भाजपा पहली बार गुजरात में सत्ता में आई, तो जोशी और मोदी दोनों को इसका श्रेय दिया गया। हालांकि बाद में शंकरसिंह वाघेला के विद्रोह और केशुभाई पटेल के नेतृत्व के दौरान जोशी की स्थिति मजबूत हुई, जबकि मोदी को दिल्ली भेज दिया गया।

फेक सीडी ने की छवि धूमिल
2005 में संजय जोशी के खिलाफ एक कथित अश्लील सीडी सामने आई, जिसके बाद उन्हें भाजपा से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में फोरेंसिक जांच में यह सीडी फर्जी साबित हुई, लेकिन इस घटना ने उनके राजनीतिक करियर को गहरा नुकसान पहुंचाया। जोशी फिलहाल भाजपा में किसी औपचारिक पद पर नहीं हैं और दिल्ली में रहते हैं। फिर भी, उनकी लोकप्रियता जमीनी कार्यकर्ताओं और आरएसएस के कुछ वर्गों में बनी हुई है। उनकी सादगी, संगठनात्मक क्षमता और वैचारिक निष्ठा की वजह से उन्हें संजय भाई के नाम से जाना जाता है। आरएसएस में उनकी गहरी पैठ और जमीनी स्तर पर समर्थन उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाए हुए है। भले ही वे मुख्यधारा की राजनीति से दूर हैं। कुल मिलाकर, संजय जोशी एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने भाजपा को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया, लेकिन विवादों और अंदरूनी सियासत के कारण उनका करियर प्रभावित हुआ। उनकी संभावित वापसी को लेकर चर्चाएं जारी हैं, लेकिन यह समय ही बताएगा कि उनका भविष्य क्या होगा?

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