रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में सिकलसेल संस्थान में इलाज की सुविधाओं की कमी को लेकर गंभीर चर्चा हुई। भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि प्रदेश में 25 लाख लोग सिकलसेल बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन एकमात्र चिकित्सा संस्थान में विशेषज्ञों और रिसर्च की कमी के कारण मरीजों को भारी परेशानी हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि संस्थान के पास अपना भवन तक नहीं है, जिससे मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्री का जवाब
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने जवाब देते हुए कहा कि राज्य में सिकलसेल के इलाज और प्रबंधन के लिए कई कदम उठाए गए हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में सिकलसेल प्रबंधन सेल स्थापित किए गए हैं, और अब तक 19 शोध पत्र प्रकाशित किए जा चुके हैं। इसके अलावा, सिकलसेल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में बोनमैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू करने की प्रक्रिया चल रही है।
डॉक्टरों और संसाधनों की स्थिति
अजय चंद्राकर ने संस्थान में डॉक्टरों की संख्या को लेकर सवाल उठाया। इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि वर्तमान में 28 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें 4 विशेषज्ञ डॉक्टर शामिल हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही नई भर्तियां की जाएंगी और जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं होती, अन्य डॉक्टरों को अटैच किया जाएगा।
तकनीकी संसाधन और मरीजों की जांच
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि संस्थान में चार उन्नत मशीनें उपलब्ध हैं, जिनसे प्रतिदिन 60 मरीजों की जांच की जाती है। इसके अलावा, मशीनों को संचालित करने के लिए 9 तकनीशियन कार्यरत हैं।
भवन और शोध केंद्र को लेकर उठे सवाल
अजय चंद्राकर ने पूछा कि सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में बोनमैरो ट्रांसप्लांट और शोध की प्रक्रिया को शुरू करने में कितना समय लगेगा? साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि संस्थान के विस्तार के लिए मंत्री बंगले की जमीन का उपयोग किया जाए। इस पर मंत्री ने स्पष्ट किया कि मंत्री बंगले की जमीन लगभग दो एकड़ है और वहां किसी भी आर्थिक अनियमितता की जानकारी नहीं है। उन्होंने आश्वासन दिया कि सिकलसेल संस्थान को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे, और यदि कोई अनियमितता सामने आती है, तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी।