दृष्टिहीनता को मात देते हुए संगीत और नाट्यशास्त्र में डॉ. उत्तम वर्मा ने की पीएचडी

बलौदाबाजा। दृष्टिहीनता को मात देते हुए संगीत और नाट्यशास्त्र में पीएचडी करने वाले डॉ. उत्तम वर्मा अपने जिले के पहले दृष्टिहीन विद्वान् बन गए हैं। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत श्रम और समर्पण का परिणाम है, बल्कि यह दृष्टिहीनता के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने और प्रेरणा देने का भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। उत्तम की यह सफलता इस बात को साबित करती है कि कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी बड़ी हों, अगर मन में इच्छा शक्ति और लगन हो तो किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उनकी इस उपलब्धि से अन्य दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी प्रोत्साहन मिलेगा कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ें। उन्होंने दृष्टिहीनता जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए इतिहास के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल करते हुए, बलौदाबाजार जिले के ग्राम दतान का नाम रोशन किया । उत्तम कुमार वर्मा की यह पीएचडी की उपलब्धि निस्संदेह प्रेरणादायक है और यह दर्शाती है कि कठिनाइयों के बावजूद, यदि व्यक्ति अपनी मेहनत और समर्पण से आगे बढ़े, तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

डॉ. उत्तम कुमार वर्मा वर्तमान में डी.के. कॉलेज, बलौदा बाजार में इतिहास विभाग के अध्यक्ष एवं सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर के मूट पुरैना स्थित सरकारी दृष्टिहीन एवं मूक-बधिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से पूरी की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से प्राचीन भारतीय इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। 2019 में, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से अपनी पीएचडी की यात्रा शुरू की, जिसे अब सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। “संगीत और रंगमंच: नाट्यशास्त्र का एक अध्ययन” विषय पर उनका शोध न केवल इतिहास और संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दृष्टिहीनता जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम भी है। उनके अध्ययन ने नाट्यशास्त्र में संगीत की भूमिका को महत्वपूर्ण रूप से उजागर किया है, और इससे यह पता चलता है कि भारतीय पारंपरिक रंगमंच ने कैसे अपने सांस्कृतिक मूल्यों को समृद्ध रखा है। डॉ. उत्तम का यह कार्य समकालीन रंगमंच और भारत की सांस्कृतिक धरोहर के बीच के संबंधों को भी स्पष्ट करता है, यह दर्शाता है कि किस प्रकार औपनिवेशिक प्रभावों के खिलाफ एक सांस्कृतिक प्रतिरोध का निर्माण हुआ।
उनकी उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। डॉ. उत्तम का उदाहरण युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना कर रहा हो, अपने सपनों को साकार कर सकता है। भविष्य में, उनका लक्ष्य न केवल अपने शोध को आगे बढ़ाना है बल्कि दृष्टिहीनों के लिए शैक्षणिक संसाधनों और तकनीकी उपकरणों को अधिकतम उपयोगी बनाना भी है।

 

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