0 युवक का मुर्गा बाजार से पिस्तौल की नोंक पर अपहरण फिर हत्या
0 कोरचोली के दो ग्रामीणों को जन अदालत में दी मौत
(अर्जुन झा) जगदलपुर। तथाकथित इंसाफ की लड़ाई का दम भरने वाले नक्सली अब अपना असली चेहरा दिखाने लगे हैं। आदिवासियों के हितों और अधिकारों के लिए संघर्ष का ढोंग करने वाले नक्सली पुलिस और सुरक्षा बलों का मुकाबला तो नहीं कर पा रहे हैं, अलबत्ता अब अपनी भड़ास बेकसूर आदिवासियों पर ही उतार रहे हैं। निरीह आदिवासियों को मौत के घाट उतारकर नक्सलियों ने खुद अपने चेहरे से नकाब उतार दिया है। बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में नक्सलियों का असली चेहरा एकबार फिर सामने आ गया है। बीजापुर जिले में दो दिन के भीतर नक्सलियों ने तीन निरीह आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया है। ताजा मामला इस जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र में हुआ है।
गंगालूर थाना अंतर्गत ग्राम रेड्डी गुन्नापारा के साप्ताहिक मुर्गा बाजार से एक युवक का नक्सलियों ने पिस्तौल की नोंक पर अपहरण कर लिया फिर उसकी निर्मम हत्या कर दी।सूत्रों ने बताया कि रेड्डी
व गुन्नापारा के बीच हर रविवार को साप्ताहिक मुर्गा लगता है। युवक मुर्गा बाजार में मुर्गों की लड़ाई देख रहा था। इसी बीच वहां आ धमके नक्सलियों द्वारा शाम को युवक का अपहरण कर लिया गया। नक्सली इस आदिवासी युवक को जंगल की ओर ले गए। साथी युवकों द्वारा युवक को नक्सलियों से छुड़ाने का प्रयास किया गया, लेकिन नक्सलियों ने साथियों पर भी पिस्तौल तान दी थी। मृतक 24 वर्षीय युवक मुकेश हेमला कमकानार का रहने वाला था। अपहरण के बाद गुन्नापारा व कमकानार के बीच मुकेश हेमला की हत्या कर दी गई। इस हत्या की जिम्मेदारी गंगालूर एरिया कमेटी ने लेते हुए पर्चा भी छोड़ा है। परिजनों द्वारा गंगालूर थाना में इसकी सूचना दी गई है। गंगालूर क्षेत्र के अंतर्गत ही कोरचोली के दो ग्रामीणों को नक्सलियों ने जन अदालत लगाकर मौत की सजा सुनाई थी। सूत्रों ने बताया कि नक्सलियों ने इन दोनों आदिवासियों पर पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाते हुए उन्हें मौत की सजा दी है। गंगालूर टीआई गिरीश तिवारी ने बताया कि इसकी सूचना मिलने पर घटना स्थल में पहुंच कर पूछताछ की जा रही है। कमकानार के युवक को कुछ अज्ञात लोगों द्वारा बंधक बनाकर ले जाए जाने फिर युवक की आधी रात में हत्या कर दी जाने की सूचना मिली है। इसकी रिपोर्ट परिजनों ने थाने में दर्ज कराई है। टीआई गिरीश तिवारी ने बताया कि कोरचोली क्षेत्र में हुई घटना के संबंध में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिली है और न ही किसी ने इसकी रिपोर्ट दर्ज कराई है। सूत्रों ने बताया कि कोरचोली के दो आदिवासी ग्रामीणों की हत्या के बाद उनके शवों का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है। नक्सलियों की दहशत के चलते परिजन थाने तक नहीं पहुंच पाए हैं।
आदिवासियों के हितैषी नहीं हैं नक्सली
आदिवासियों के हक की लड़ाई का ढोंग कर अपना घर भरने वाले नक्सली आदिवासियों के हितैषी हरगिज नहीं हैं। इसका प्रमाण वे स्वयं बार बार देते आ रहे हैं। दरअसल वे नक्सलवाद और आदिवासी हितों की आड़ में बड़े व्यापारियों, ठेकेदारों और कई अधिकारियों से उगाही को अपना पेशा बना चुके हैं। दीगर राज्यों से आकर बस्तर में डेरा जमाए बैठे नक्सली करोड़ों के आसामी बन गए हैं, वे अपने बच्चों को शहरों के महंगे निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, शहरों के कई नक्सलियों के आलिशान बंगले हैं। अगर वे वास्तव में जंगल के रखवाले और प्रकृति के पुजारी कहे जाने वाले आदिवासियों के शुभचिंतक होते तो निरीह आदिवासियों को यूं मौत के घाट नहीं उतारते। दरअसल उनकी उस बौखलाहट का भी नतीजा है, जो उन्हें सुरक्षा बलों के हाथों पराजय के रूप में मिल रही है। बस्तर के दिग्भ्रमित युवाओं का समाज और विकास की मुख्यधारा से जुड़ना नक्सलियों को रास नहीं आ रहा है। वे कदापि नहीं चाहते कि बस्तर का समग्र विकास हो, यहां के आदिवासी बेटे बेटियां पढ़ लिखकर अपना भविष्य गढ़ सकें। यही वजह है कि वे अपना खौफ कायम रखने के लिए बेकसूर आदिवासियों को लगातार निशाना बनाते चले जा रहे हैं।