रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र का दूसरा दिन भारी हंगामे और तीखी बहस का गवाह बना। सुकमा और दंतेवाड़ा के सरहदी गांवों में पुलिया निर्माण में कथित अनियमितताओं को लेकर कांग्रेस विधायक कवासी लखमा ने सरकार को घेरा। बिना प्रशासकीय स्वीकृति के पुलिया निर्माण को लेकर उन्होंने दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की। विपक्ष ने सदन में जोरदार नारेबाजी की और अंततः वॉकआउट कर दिया।
प्रश्नकाल में उठा पुलिया निर्माण का मुद्दा
कवासी लखमा ने सवाल किया कि इन पुलियों का निर्माण कब स्वीकृत हुआ, कितने पुलिया निर्माणाधीन हैं और कितने पूरे हो चुके हैं? उन्होंने यह भी पूछा कि क्या प्रशासन ने कार्य एजेंसी तय करने से पहले किसी प्रकार की स्वीकृति ली थी और क्या दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है? उन्होंने कहा, “हम नक्सल प्रभावित क्षेत्र से हैं और विकास चाहते हैं, लेकिन यह कैसा नियम है कि पहले पुल बनता है, फिर टेंडर होता है?”
सरकार की सफाई
इस पर उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने जवाब दिया कि सुकमा और दंतेवाड़ा जिलों में स्थित परिया और मुलेर के इन पुलिया निर्माणों को भारत सरकार की स्वीकृति मिली थी। हालांकि, आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण काम रोक दिया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि “निविदा प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही निर्माण कार्य आगे बढ़ेगा।”
तीखे सवाल और आरोप
कवासी लखमा ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बिना स्वीकृति और ऑर्डर के सड़क और पुल बनाए गए। उन्होंने सवाल किया, “एक ही नाले में तीन पुल क्यों बनाए जा रहे हैं? क्या यह केवल कमीशन के लिए किया गया है?” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विरोध के बावजूद उसी ठेकेदार को काम सौंपा गया, जिससे जनता का पैसा बर्बाद हो रहा है।
भ्रष्टाचार का आरोप और विपक्ष का आक्रोश
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा, “मंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि पुल बन चुका है और टेंडर बाद में हुआ। यह गंभीर गड़बड़ी है। क्या गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई होगी?“
सरकार की ओर से ठोस जवाब न मिलने पर विपक्ष ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी। “जनता का पैसा बर्बाद करना बंद करो” जैसे नारे गूंजने लगे। हंगामे के बीच विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया।