बीएड सहायक शिक्षकों की नौकरी पर संकट, आदिवासी समाज के आत्मसम्मान और शिक्षा का सवाल

०  मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से शिक्षकों ने लगाई नौकरी बचाने की गुहार
०  दांव पर लग गया है तीन हजार शिक्षकों का भविष्य 
(अर्जुन झा) जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर संभागों में कार्यरत 3000 से अधिक बीएड डिग्रीधारी सहायक शिक्षकों की सेवा संकट में है। चयनित बीएड सहायक शिक्षक अपनी सेवा सुरक्षा की मांग को लेकर प्रदेश के समस्त मंत्री विधायकों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री के नाम लगातार ज्ञापन सौंप रहे हैं।
इसी क्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित आदिवासी सम्मान कार्यक्रम के दौरान लगभग 1500 आदिवासी बीएड सहायक शिक्षकों ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मुलाकात कर अपनी सेवा की सुरक्षा के लिए गुहार लगाई। शिक्षकों ने मुख्यमंत्री को बताया कि वे आदिवासी समाज से आते हैं और कठिन संघर्षों के बाद शिक्षक बने हैं। बीते डेढ़ वर्षों से ये शिक्षक सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों में कार्यरत हैं। जहां शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्तियों को अवैध ठहराया है, जिससे उनकी नौकरियां खतरे में हैं।

चयनित शिक्षकों का संघर्ष

सरगुजा संभाग के एक चयनित शिक्षक ने कहा, “मैंने इस नौकरी के लिए अपनी पुरानी नौकरी छोड़ दी थी, क्योंकि सरकारी शिक्षक बनना मेरे और मेरे परिवार के लिए सम्मान और स्थिरता का प्रतीक था। अब नौकरी जाने का खतरा हमारे जीवन को अनिश्चितता में डाल रहा है। बस्तर की एक शिक्षिका ने बताया- हमने इस नौकरी के लिए कर्ज लेकर पढ़ाई की और बीएड की डिग्री हासिल की। आज हमें ऐसा लग रहा है जैसे हमारी मेहनत और त्याग व्यर्थ हो गया। एक अन्य शिक्षक ने कहा- हमने पिछले डेढ़ साल में सुकमा, कोंटा, ओरछा जैसे दुर्गम क्षेत्रों में सेवाएं दी हैं। बच्चों को शिक्षा से जोड़ने और स्कूलों का माहौल बेहतर बनाने के लिए दिन-रात मेहनत की। अब नौकरी छिनने से यह सब व्यर्थ हो जाएगा।

शिक्षकों की समस्याएं

यदि सेवा समाप्त की जाती है, तो शिक्षकों और उनके परिवारों के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा। ये शिक्षक न केवल आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि समाज की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा भी हैं। नौकरी जाने से उनकी पहचान और सम्मान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। नौकरी समाप्त होने से आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रति विश्वास कमजोर होगा। शिक्षा को प्रगति का माध्यम मानने वाली नई पीढ़ी निराश हो सकती है। शिक्षकों ने सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन कर नौकरी प्राप्त की थी। अब उनकी सेवाओं पर सवाल उठाना, सरकारी व्यवस्था और नीति के प्रति विश्वास को कमजोर करेगा।

ये हैं शिक्षकों की मांगें

सेवाओं की सुरक्षा देते हुए इन शिक्षकों को उच्च कक्षाओं में समायोजित किया जाए, जैसा कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने सुझाव में कहा है। इस मुद्दे को न्यायपूर्ण और स्थायी रूप से हल किया जाए ताकि भविष्य में किसी और शिक्षक को ऐसी समस्या का सामना न करना पड़े।आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रति भरोसे को बचाने और शिक्षकों के आत्म सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं।मुख्यमंत्री से निवेदन करते हुए शिक्षकों ने कहा है- मुख्यमंत्री जी, आपका संघर्ष और आदिवासी समाज के प्रति आपका समर्पण हमारी प्रेरणा है। आपसे निवेदन है कि हमारे संघर्ष को समझें और इस संकट का समाधान निकालें। यदि हमारी सेवाएं समाप्त होती हैं, तो यह केवल हमारा व्यक्तिगत नुकसान नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज को पीछे धकेलने का कार्य होगा। शिक्षा और समाज को कमजोर न होने दें। न्याय और सुरक्षा का वादा निभाएं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *