रायपुर। यूं तो दीपावली में गिफ्ट बांटने और लेने की परम्परा सदियों से चली आ रही है, लेकिन लीवर सिरहोसिस जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे तिल्दा निवासी, 52 वर्षीय अनिल कुमार यादव के लिए आने वाली ये दीपावली एक नई जिंदगी की सौगात एडवांस में लेकर आई. जब उनकी बेटी वंदना ने विगत 6 अक्टूबर को अपना आधा लीवर उन्हें खुशी खुशी डोनेट कर पिता के प्रति अपने अगाध स्नेह को व्यक्त कर एक अनूठी और यादगार मिसाल पेश की. ये सफल लीवर ट्रांस्प्लांट राजधानी रायपुर के देंवेंद्र नगर स्थित श्री नारायणा हॉस्पिटल में संपन्न हुआ। अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक किन्हीं वजहों से पिछले वर्ष अनिल का लीवर खराब हो जाने के कारण उन्हें बार-बार पीलिया होने लगा था, पेट में पानी भर जाता था, कई बार तो वे बेहोश तक हो जाते थे और उन्हें अनेकों बार खून की उल्टियां भी होती थीं, इन सभी इंडिकेशन के कारण वे लगातार कमजोर होते चले गए जिसकी वजह से उन्हें हमेशा हॉस्पिटिलाइस्ड करना पड़ता था। श्री नारायणा हॉस्पिटल के लीवर ट्रांसप्लांट एवं जीआई सर्जन डॉ.हितेश दुबे ने उनकी सघन जांचोंपरांत पाया कि मरीज का लीवर फैलियोर की स्थिति में आ गया है और उनकी जान बचाने का एकमात्र उपचार उनकी “लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी” करना ही रहेगा. इसे क्लिनिकली भाषा में “डीकंपनसेट लीवर सिरहोसिस” कहते हैं. इस तरह के मरीजों को इंफेक्शन होने का खतरा हमेशा ही बना रहता है, जिसकी वजह से उनकी जान कभी भी जा सकती है, इन्ही सब बातों के मद्देनजर उनकी लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी विगत 6 अक्टूबर को श्री नारायणा हॉस्पिटल में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। दो ऑपरेशन थिएटर में लगातार 12 घंटे चली इस मेजर सर्जरी में, जहाँ एक ओटी में डोनर का लीवर निकाला जा रहा था, तो उसी समय बाजू के दूसरे ओटी में मरीज के लीवर के खराब हिस्से को निकाला जा रहा था याने दोनों सर्जरियों को एक साथ अंजाम दिया जा रहा था, जिसमें हास्पिटल के लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ.हितेश दुबे, लीवर ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ.भाविक शाह, हैदराबाद के लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ सचिन वी.डागा, एनेस्थेटिक द्वय डॉ.निशांत त्रिवेदी और डॉ.सीपी वट्टी और पूरी टीम ने उस दिन एक नया ही इतिहास लिख दिया, डॉ हितेश ने बताया कि वर्तमान में लीवर ट्रांसप्लांट करने की दो ही प्रमुख तकनीकें हैं, जिनमें से एक है डीडीएलटी यानी डिजीज डोनर लीवर ट्रांसप्लांट जिसमें किसी ब्रेन डेड व्यक्ति का पूरा का पूरा ही लीवर निकाल कर वांछित व्यक्ति में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है और दूसरी तकनीक है एलडीएलटी यानी लिविंग डोनर लीवर ट्रांसप्लांट, इसमें ऐसे डोनर की जरूरत पड़ती है जो मरीज का रिलेटिव हो, यंग हो और सबसे बड़ी और अहम बात,जो खुद से लीवर डोनेट करने हेतु इच्छुक भी हो, वह परिवार में से ही कोई भी हो सकता है, जैसे भाई-बहन पति-पत्नी माता-पिता,बस उसे पूर्णतया स्वस्थ्य होना चाहिए. हास्पिटल के लीवर ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ.भाविक शाह ने बताया कि आजकल लीवर की बीमारियां सामान्यतया बहुत ही ज्यादा होने लगी हैं, स्पेशिफिकली क्रॉनिक लीवर डिजीज, जिसका मोस्ट कॉमन कॉज़ ज्यादा एल्कोहल कंजम्प्शन है, पहले अल्कोहल जनित बीमारियों में हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी एकदम कॉमनली हुआ करते थे, लेकिन अब उनको फिलहाल फैटी लीवर और लीवर संबंधी मेटाबोलिक बीमारियों ने रिप्लेस कर दिया है, लीवर की कोई भी बीमारी जब शुरू होती है, तो उसमें प्रारंभ में केवल फैटी लीवर होना ही दिखता है, जो आगे चलकर फाइब्रोसिस और फिर उसके बाद लीवर सिरहोसिस में तब्दील हो जाता है, फैटी लीवर और फाइब्रोसिस को तो दवाइयों, परहेज तथा एक्सरसाइज आदि से रिवर्स किया जा सकता है लेकिन लीवर सिरहोसिस को रिवर्स करना अत्यंत ही मुश्किल काम होता है, लीवर सिरहोसिस होने के कारण ही खून की उल्टी, पीलिया, पेट में पानी भरना, ब्रेन में इफेक्ट और लीवर कैंसर हो सकता है, ऐसी स्थिति बन जाने के बाद दवाइयां से इन बीमारियों को कुछ समय तक के लिए सिर्फ रोका ही जा सकता है, लेकिन अंततोगत्वा केवल लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी कराना ही इस बीमारी का एकमात्र परमानेंट इलाज है, अपोलो मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कोलकाता में 6 साल काम करने के बाद श्री नारायणा हॉस्पिटल में विगत 4 सालों में हमने यहाँ पर एक “स्टेट ऑफ आर्ट गैस्ट्रो एडवांस्ड एंडोस्कोपिक और हैपेटोलॉजी सेंटर” इस्टैबलिश्ड किया है, जिसमें लीवर की मामूली सी मामूली बीमारियों से लेकर एडवांस लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी जैसी अति आधुनिक सुविधाएं एक ही छत के नीचे इस हास्पिटल में उपलब्ध हैं। श्री नारायणा हास्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ सुनील खेमका ने इस अवसर पर बताया कि “लीवर की बीमारी अब वर्तमान में एक बहुत ही आम सी बीमारी बन गई है, लीवर की विभिन्न प्रकार की बीमारियां जैसे हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, लिवर सिरोसिस एवं लीवर कैंसर के पेशेंट वर्तमान में लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं, जिसकी मुख्य वजह खाने-पीने की चीजों में मिलावट होना, फास्ट फूड या ब्रेवरेज में आर्टिफिशियल रंग, प्रिजर्वेटिव्स या स्वाद बढ़ाने वाले विभिन्न हानिकारक केमिकल आदि का ज्यादा उपयोग होना है, जो कि लीवर कैंसर होने का प्रमुख कारक है, इन सभी वजहों से भविष्य में लीवर ट्रांसप्लान्ट जैसी जटिल सर्जरी कराने की आवश्यकता कुछ ज्यादा ही होने की संभावना है”, इस समय मध्य भारत में छत्तीसगढ़ एक प्रमुख मेडिकल हब के रूप में उभर रहा है, यहां पर किडनी ट्रांसप्लांट और लीवर ट्रांसप्लांट आदि तो कॉमनली हो ही रहे हैं, परंतु भविष्य में यहाँ पर कैडवरिक लिंब ट्रांसप्लांट ( हाथ पैर एवं अन्य ऑर्गन्स का ट्रांसप्लांट) तथा हार्ट ट्रांसप्लांट भी अतिशीघ्र ही प्रारंभ होगा, केंद्र शासन यदि रायपुर को इंटरनेशनल हवाई सेवाओं से डायरेक्ट जोड़ देता है, तो हमारा छत्तीसगढ़ मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में निश्चित रूप से अपना स्थान बनाने में कामयाब होगा, क्योंकि “यहाँ रायपुर में मेडिकल एक्सपेंस, मेट्रो शहरों के कंपरीजन में आधे से भी कम हैं।