अब विदेशी भी पढ़ पाएंगे बस्तर के पुरखती कागजात को

0  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने किया अंग्रेजी संस्करण का विमोचन
0  पुरखती में बस्तर के देवी देवताओं की वाचिक परंपरा, इतिहास का है संकलन

जगदलपुर। बस्तर की वैभव गाथा को अपने आप में समेटे दस्तावेज पुरखती कागजात को अब विदेशी पर्यटक भी आसानी से पढ़ सकेंगे। पुरखती कागजात के अंग्रेजी संस्करण का विमोचन मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मुरिया दरबार कार्यक्रम में किया।
बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के माध्यम से आदिवासी परंपरा, रीति-रिवाज, सांस्कृतिक विविधता एवं ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित तथा संवर्धित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी तारतम्य में बस्तर संभाग अंतर्गत देवी देवताओं की शक्तिशाली वाचिक परंपरा, इतिहास एवं उत्पति के बारे में गांव-गांव से गुनिया-बैगा, सिरहा, माटी पुजारी, पेरमा, मांझी, गांयता, पटेल से विस्तृत चर्चा करते हुए जानकारी संकलित कर आनेवाली पीढियों को अपने देवी-देवताओं की सेवा परंपरा से अवगत कराने के लिए “पुरखती कागजात” नामक पुस्तक तैयार की गई है। मुख्यमंत्री श्री साय ने पुस्तक के प्रकाशन पर प्राधिकरण को बधाई दी। कार्यक्रम में उपस्थित वन मंत्री केदार कश्यप, सांसद बस्तर महेश कश्यप, सांसद कांकेर भोजराज नाग, बस्तर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष एवं कोंडागांव विधायक लता उसेंडी, जगदलपुर विधायक किरण देव, चित्रकोट विधायक विनायक गोयल ने भी पुस्तक की सराहना की।ज्ञात हो कि सामाजिक, सांस्कृतिक से परिपूर्ण बस्तर के देवी, देवता जागृत रूप में स्थित है। बस्तर की विविध जनजातियों को पृथक भौगोलिक निवास क्षेत्र हैं। बस्तरवासी अपनी पारम्परिक प्राचीन मान्यताओं के अनुसार साम्य देव और कुल देवी- देवताओं को पूजते हैं। कुछ कुटुंब स्तर पर, कुछ ग्राम स्तर पर, कुछ ग्राम समूहों में और कुछ परगना स्तर पर महत्व रखते हैं तथा कुछ देवी-देवता सम्पूर्ण बस्तर क्षेत्र में आराध्य हैं। बस्तर के धार्मिक संस्कारों में देवी-देवताओं के वंशज या परिवारों का विस्तार सदियों से होता आ रहा है और उनके वंशज या परिवार गांव-गांव में स्थापित है। बस्तर में देवी-देवताओं के नाम, लोक मान्यता और लोक विश्वास की परम्परा अद्‌भुत और सदियों पुरानी है। सेवा विधि भी अत्यंत रोचक और ठेठ आदिम है। सदियों पूर्व से इसके नियम बने हुए हैं कि किस देवता की सेवा किस कामना के लिए की जाए और कौन से देवता किस मनोकामना को पूर्ण करते हैं। बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अंतर्गत बस्तर संभाग में आदिवासी आस्था के केंद्र, मातागुड़ी, देवगुड़ी, सेवा-अर्जी स्थल आदि कुल 7055 स्थलों को चिन्हित किया गया है। जैसे मातागुड़ी में मां दंतेश्वरी, शीतलादई, कोला कासमीन, गांवदई, बंगेडोकरी, जलनदई, तुलमुते, कानीबूड़ी, आनामुंडा, चिकलादई, पीरनता माता, बावड़ी मातागुड़ी, शीतलादई, चमलदई, समरैया आदि तथा देवगुड़ियों में गुमोरुगाल, इर्सहूंगा, चुडइंगा कुपेर, भीमाराज पेन, नंदराज पेन, हूंगा, वेला, बूम उसेंडी, इंगल माइको, पालबोमड़ा, विज्जा मंडा, फोतालगुड़ी, बरें हिड़मा दादी, हुर्रा मोरला दादो, हांदल कोसा, वूम हिर्रा, हिड़माराज, कोंडराज, कर्रेओड़ आदि के साथ ही गोटुल और प्राचीन मृतक स्मारकों के नाम ‘भुंईयां’ के माध्यम से खसरा के कैफियत कालम में दर्ज कर कुल 26000 हेक्टेयर यानि 7000 एकड़ भूमि बस्तर संभाग में संरक्षित की गई है। उक्त स्थलों को अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के अन्तर्गत धारा 3 (1) (ठ) के तहत ग्रामसभा को सामुदायिक वनाधिकार पत्र जारी करके संरक्षित किया गया है। प्राधिकरण द्वारा पुरखती कागजात पुस्तिका बस्तर अंचल के देवी- देवताओं, मान्यताओं के प्रति एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करेगी, साथ ही देवगुड़ियों, आदिवासी धर्मस्थलों, सामुदायिक सेवा-अर्जी स्थलों का दस्तावेजीकरण होने से बस्तर को एक अलग पहचान मिलेगी। इसी क्रम में बस्तर तथा युवाओं द्वारा इस पुरखती कागजात का अंग्रेजी अनुवाद की मांग के आधार पर पुरखती कागजात का अंग्रेजी में अनुवाद कर विश्व स्तर पर बस्तर की सांस्कृतिक विविधता एवं ऐतिहासिक विरासत को अलग पहचान दिलाने का प्रयास किया गया है।

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