0 तेलंगाना और महाराष्ट्र के नक्सलियों का रहा वर्चस्व
0 पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मारे गए बाहरी
(अर्जुन झा) जगदलपुर। बस्तर संभाग के आदिवासियों और युवाओं को बाहरी नक्सली बरगलाते आ रहे थे। बस्तर की युवा पीढ़ी को हिंसा की आग में झोंककर ये बाहरी नक्सली अपना घर भरते आए हैं। अब उनका नेटवर्क तेजी से ध्वस्त होता जा रहा है। पूर्वी अबूझमाड़ की मुठभेड़ में मारे गए 31 नक्सलियों ज्यादातर बाहरी हैं और सभी टॉप लेवल के लीडर थे। इतनी बड़ी क्षति से बचे खुचे नक्सली लीडर्स का बौखलाना लाजिमी है। इसी बौखलाहट में अब नक्सली लीडर स्थानीय नक्सलियों और ग्रामीणों को मुठभेड़ के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हो सकता आने वाले दिनों में ये नक्सली निरीह ग्रामीणों और लोकल नक्सालियों की हत्याएं करने लगें, तो इसमें आश्चर्य वाली बात नहीं होगी।
बस्तर संभाग को नक्सलियों का गढ़ माना जाता रहा है। अब नक्सलियों का किला ढहता जा रहा है। छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की साझी रणनीति कारगर साबित हो रही है। पुलिस और केंद्रीय अर्ध सैन्य बल बस्तर के आदिवासियों की जितनी नरम रुख अख्तियार कर उनके हित में काम कर रहे हैं, उतनी ही कड़ाई नक्सलियों के प्रति दिखा रहे हैं। बाहर से आए नक्सलियों ने जहां बस्तर की धरती को रक्त रंजित करने का काम किया, वहीं यहां के भोलेभाले युवाओं और आदिवासियों के साथ झूठी हमदर्दी दिखाते हुए उन्हें यहां की सरकार और सिस्टम के खिलाफ भड़काने व बरगलाने का काम किया। यहां के युवा और आदिवासी उन्हें अपना हितैषी मान बैठे और उनके भ्रमजाल में फंसते चले गए। इस तरह बाहरी नक्सलियों ने बस्तर संभाग में अपना अच्छा खासा नेटवर्क तैयार कर लिया। बाहरी नक्सली अपने पुलिस और सुरक्षा बलों के खिलाफ अभियानों के दौरान स्थानीय युवाओं और आदिवासियों को सामने कर देते थे। मारे जाते थे बेचारे स्थानीय लोग। बाहरी नक्सली स्थानीय लोगों से सड़कों पर स्पाईक लगाने, आईईडी प्लांट करने, फोर्स के मूवमेंट की सूचना उपलब्ध कराने, बैनर पोस्टर, पंप्लेट लगवाने, सड़कें खोदकर आवागमन बाधित करने जैसे काम कराते रहे हैं। मुठभेड़ों के दौरान बाहरी नक्सली अपने स्थानीय कैडर को सामने कर खुद सुरक्षित बच निकलते थे और मारे जाते थे स्थानीय लोग। कुछ अरसा पहले तक जब भी फोर्स और नक्सलियों की मुठभेड़ें होती थीं, स्थानीय कैडर के आदिवासी ही मारे जाते थे। तब विपक्षी दल सरकार पर आदिवासियों की हत्या कराने का आरोप लगाते मैदान पर उतर जाते थे। ऐसा कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों के दौरान होता था।
बदल गई हवा की दिशा
अब हवा की दिशा बदल चुकी है। बयार उल्टी दिशा में बहने लगी है। यहां के युवा और आदिवासी बाहरी नक्सलियों के मनोभाव को समझ चुके हैं। नक्सलियों से उनका मोहभंग हो चुका है। सरकार और सिस्टम के प्रति उनकी आस्था बढ़ गई है। नक्सलियों के पास स्थानीय कैडर की नितांत कमी हो चुकी है। अब मोर्चे पर खुद बाहरी नक्सलियों को उतरना पड़ रहा है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि बड़े पैमाने पर बाहरी नक्सली और उनके टॉप लीडर्स मारे जाने लगे हैं। तेलंगाना और महाराष्ट्र के जो टॉप नक्सली लीडर्स यहां आतंक का राज कायम किए हुए थे, वे तेजी से हलाक होते जा रहे हैं। चाहे कांकेर की मुठभेड़ हो, या बीजापुर की या फिर नारायणपुर के पूर्वी अबूझमाड़ की ताजा मुठभेड़। इन सभी मुठभेड़ों में मारे गए प्रायः सभी नक्सली या महाराष्ट्र और तेलंगाना के ही हैं।
करोड़ों वसूल चुके हैं बाहरी नक्सली
दरअसल बस्तर संभाग में तेंदूपत्ता और अन्य वनोपजों तथा खनिज संपदा की प्रचुरता है। यहां बड़े पैमाने पर ठेकेदारों के माध्यम से सड़क, पुल पुलियों का निर्माण भी चलता रहा है। बाहरी नक्सली पहले तेंदूपत्ता ठेकेदारों से लाखों रुपए वसूला करते थे। अब सरकारी स्तर पर तेंदूपत्ता खरीदी हो रही है। इसके अलावा नक्सली खनिज खदान लीजधारकों ठेकेदारों, निर्माण कार्यों में लगे ठेकेदारों और व्यापारियों से हर माह लाखों रुपए वसूलते आ रहे हैं। बाहरी नक्सली यहां से करोड़ों अरबों रुपए जमा कर अपने घरों में भेजते आए हैं। बाहरी नक्सली अपने बच्चों को बड़े शहरों के महंगे स्कूलों में पढ़ाई करवा रहे हैं और बस्तर के बच्चों के स्कूलों को आग के हवाले करते रहे हैं। रायपुर, भिलाई जैसे बड़े शहरों में बाहरी नक्सली अपने परिवार को रखते रहे हैं। भिलाई के एक पॉश इलाके में कुछ वर्ष पहले डोंगरगढ़ के एएसपी रहे मौजूदा एसपी मनीष शर्मा ने छापा मारकर ऐसे ही एक परिवार का पर्दाफाश किया था। इस परिवार के बच्चे भिलाई के सबसे महंगे स्कूल में पढ़ते थे। इससे जाहिर होता है कि नक्सली आदिवासियों के हितैषी नहीं बल्कि उनके दुश्मन हैं।
आंकड़े बताते हैं सच्चाई
बस्तर संभाग में इस वर्ष मारे गए नक्सलियों के आंकड़ों पर गौर करें तो हकीकत खुद बखुद सामने आ जाती है। बस्तर के अकेले नारायणपुर जिले में सन 2024 में अब तक संचालित नक्सल विरोधी अभियानों कुल 44 माओवादी मारे गए हैं, 29 गिरफ्तार किए गए हैं एवं 47 माओवादियों द्वारा आत्मसमर्पण किया गया है। मारे गए ज्यादातर नक्सली दूसरे राज्यों के हैं। इसी तरह पूरे बस्तर संभाग में अब तक कुल 188 नक्सलियों के शव बरामद हुए हैं, 706 गिरफ्तार किए गए हैं और 733 नक्सलियों द्वारा आत्मसमर्पण किया जा चुका है। कुल मिलाकर नक्सलियों के खेमे से अब तक 1627नक्सली बाहर हो चुके हैं। इनमें ज्यादातर टॉप लीडर और बाहरी नक्सली हैं। इस तरह बस्तर में नक्सलियों की कमर टूट चुकी है।