0 विलुप्त होती धरोहरों और संस्कृति को बचाने पहल
0 बस्तर की समृद्ध विरासत को सहेज रहे नौनिहाल
(अर्जुन झा) जगदलपुर। अपनी समृद्ध कला संस्कृति, विरासत के लिए मशहूर रहा बस्तर अब आधुनिकता के अंधे युग में पहुंच चुका है। हमारे बस्तर के पुरखे ऐसे ऐसे यंत्रों का उपयोग कर अपना जीवन आसान बना चुके थे, जो विज्ञान की खोजों से कतई कमतर नहीं हैं। आज की पीढ़ी इन यंत्रों और उपकरणों से अनजान बनी हुई है। ऐसे में उम्मीद की किरण जगाई है डेंगगुड़ा पारा झारतरई के प्रायमरी स्कूल के बच्चों ने। इन बच्चों ने प्राचीन समय में अपने पुरखों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं को संग्रहित करने का बीड़ा उठाया है। उनके इन नन्हें कदमों को सहारा देने का काम उनके पालकों और शिक्षक शिक्षिकाओं ने किया है। आज इन छुटके छुटकियों ने शानदार संग्रहालय तैयार कर लिया है। उम्मीद है इसकी गूंज रायपुर और दिल्ली तक सुनाई देगी।
जब बच्चों ने पालकों से अपने दादा परदादा के जमाने की जीवनचर्या के बारे में जानने की कोशिश की, तो उसका यह सुफल अब सामने आया है। पालकों ने अपने पूर्वजों के जमाने में घरों में उपयोग की जाने वाली सामग्री, उपकरणों, खेती किसानी के औजार सहित बस्तर वनांचल क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली विलुप्त सामग्रियों को सहेजने की जिम्मेदारी छुटके छुटकियों के नन्हें सुकोमल हाथों में दी है और बच्चे उसे बखूबी निभा रहे हैं। जिला मुख्यालय जगदलपुर से महज 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित लामकेर संकुल की प्राथमिक शाला डेंगगुडा पारा झारतरई के पालकों ने अपने स्कूल के बच्चों को अपने दैनिक जीवन में पूर्वजों के द्वारा उपयोग किए जाने वाली सामग्रियों को सहेजने की जिम्मेदारी दी है। ग्राम के सभी पालकों ने अपने-अपने बच्चों को वह सामग्रियां उपलब्ध कराई हैं, जिनका उपयोग वे, उनके माता पिता और दादा दादी घर पर करते रहे हैं। देखते ही देखते 47 प्रकार की सामग्रियों का संग्रहण कर एक संग्रहालय का निर्माण कर लिया गया।
ये सामग्रियां हैं संग्रहालय में
बच्चों के संग्रहालय में रुई बड़गी, तोसर, कोड़ा, हल, लगड़ा, पीढ़ा, तुमा, ढूटी, सोढिया, खपरा सांचा, फार, धान भुनने की चम्मच, मूसल, कावड़, सलप, सोडिया टाटी, बैल घंटी, चूल्हा, बेट, बैल नाथ, रेंदा, सीका, सूप, टूकनी, चोलन, कोंडी, पतरी, ककवा, चिमनी, कुसला, सूत आटना, लामन दिया, दही मथनी, मुठला, टार्च, आहरा, परला, लावा जाल, चम्मच, टांगा, गेड़ी, कुश आदि 47 प्रकार की सामग्रियां रखी गई हैं।
ये यंत्र आकर्षण के केंद्र
संग्रहालय में 47 प्रकार की सामग्रियों को रखा गया है। सभी सामग्रियों के आगे उनका नाम भी लिखा गया है। आज के नवयुवक भी स्कूल में आकर इस संग्रहालय में उन सामग्रियों को देख रहे हैं जो उनके पूर्वज उपयोग करते थे ।आज के आधुनिक युग में जहां लोग ट्रैक्टर से खेती का कार्य करते हैं। लेकिन पुराने जमाने में जब यह सब यंत्र व सामग्रियां नहीं होती थीं, तब कितनी विषम परिस्थितियों में लोग कार्य किया करते थे। इन बातों को भी संग्रहालय में लोगों को समझाया जा रहा है। संग्रहालय में उपलब्ध रुई बढ़गी, तोसर, ढेरा, कोड़ा आकर्षण का केंद्र केंद्र बना हुआ है। रुई बढ़गी से दही मथने, तोसर का उपयोग कपड़ा बुनने के लिए, ढेरा का उपयोग रस्सी आंटने के लिए और कोड़ा का उपयोग जानवर हांकने के लिए किया जाता था। इन सामग्रियों को लोग कौतूहल से देख रहे हैं।
संग्रहालय का शुभारंभ ग्राम के वरिष्ठ नागरिक झड़गू द्वारा किया गया। बुजुर्ग झड़गू ने उपस्थित सभी लोगों को प्रत्येक सामग्री के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस अवसर पर संकुल प्राचार्य चरण कश्यप, संकुल समन्वयक धर्मेंद्र अग्रवाणी, संतोष अग्रवाणी, शिक्षक झरना अग्रवाणी, नेहा कश्यप, नजीर खान, देव कुमार नाग, प्रदीप पटेल, उमा राज, गौरी पोर्ते, संध्या वर्मा, ओमप्रकाश ध्रुव, किरण साहू, मंजुला दास, पालक एवं ग्रामीण बलराम, जयराम, खेमराज, बलदेव, रामकुमार, रामप्रसाद, सुलधर, झगडू राम, अंतूराम, लखमू, कमलबती, खीरो, मंगली, मिटकी, कवसिला, पार्वती, गीता, सुकरी, ललिता, सुको, समबती, नीलो, बसंती, रतन, समदू, मदनी, अमिषा, मुनि, भगवती, एलसी, संतोष, सुमनी आदि उपस्थित थे।
प्रशंसनीय पहल : महेश कश्यप
प्राथमिक शाला के बच्चों द्वारा बस्तर के आदिवासियों के प्राचीन उपकरणों और घरेलू समग्रियों का संग्रहालय स्थापित किए जाने की जानकारी मिलने पर बस्तर सांसद महेश कश्यप ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों ने वह कर दिखाया है, जिसके बारे में कभी बड़ों ने सोचा भी नहीं था। सांसद श्री कश्यप ने कहा कि बस्तर क्षेत्र अपनी संस्कृति, सभ्यता और समृद्ध विरासत को लेकर पहचाना जाता है। आज के समय में अपनी संस्कृति को सहेजने का जो कार्य डेंगगुड़ा के स्कूली बच्चों ने उठाया है। वह बहुत ही प्रशंसनीय है। सांसद महेश कश्यप ने इस अतुलनीय कार्य में लगे बच्चों, उनके पालकों और शिक्षक शिक्षिकाओं को शुभकामनाएं दी है। इस संवाददाता से चर्चा में सांसद महेश कश्यप ने कहा कि वे जल्द ही समय निकालकर डेंगगुड़ा पारा झारतरई स्कूल जाएंगे और संग्रहालय को देखेंगे।