आदिवासियों की विरासत को सहेजने में धावड़े के योगदान को सदैव याद रखेगा आदिवासी समाज

0  संभाग आयुक्त श्यामलाल धावड़े को सर्व आदिवासी समाज ने दी विदाई 

जगदलपुर। बस्तर संभाग आयुक्त तिरुमाल श्यामलाल धावड़े के स्थानांतरण पर सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग के बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा एवं बीजापुर जिलों के सभी समाज प्रमुखों, अधिकारियों, कर्मचारियों की उपस्थिति में जगदलपुर मुरिया सदन धरमपुरा में विदाई एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया। श्री धावड़े को समारोह में आदिवासी समाज का सबसे बड़े प्रतीक चिन्ह गौर मुकुट, बस्तर आर्ट व पुष्प गुच्छ से सम्मानित किया गया। उन्हें नया दायित्व मिलने पर बधाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की गई और उनके कार्यकाल में किए गए कार्यों की सहराना करते हुए बस्तर समाज के लिए किए गए कार्यों के लिए बधाई दी गई।

समाज के बस्तर संभाग अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने श्री धावड़े द्वारा अपने सफल कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों की सराहना की। प्रकाश ठाकुर ने कहा कि बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के बाद श्री धावड़े ने आदिवासीयों की विरासत एवं संस्कृति के संरक्षण संवर्धन तथा विकास मूलक कार्यो के साथ आदिवासियों के हित में महत्वपूर्ण कार्य किए। वन अधिकार पत्रक भुइयां के माध्यम से शत प्रतिशत राजस्व अभिलेखों में दर्ज करवाया, सामुदायिक वन अधिकार एवं सामुदायिक वन संसाधन अधिकार को संरक्षित करवाया देवगुड़ी मातागुड़ी घोटुल और सेवा अर्जी स्थलों, प्राचीन स्थलों की भूमि को संरक्षित कर राजस्व अभिलेखों में दर्ज करवाया साथ ही देवगुड़ी मातागुड़ी, घोटुल, पेनगुड़ी, सेवा अर्जी स्थल प्राचीन स्थल, स्मारक स्थलों का जीर्णोद्धार और संरक्षित करवाया गया है। श्री धावड़े द्वारा बस्तर संभाग के अंतर्गत स्थानीय भर्ती में तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के 1751 कर्मचारियों की नियुक्ति के आदेश जारी किए गए। बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण मद से बस्तर की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के साथ ही उन्हें इंटरनेट के माध्यम से सर्व सुलभ करवाया। बस्तर संभाग के सभी जिलों के शहीदों की प्रतिमा स्थापना एवं उनके नाम पर विद्यालयों, महाविद्यालयों का नामकरण कर आदिवासीयों की आस्था विरासत के संरक्षण संवर्धन के लिए बस्तर अंचल के माहन वीर सपूतों एवं वीरांगनाओं की स्मृति को जीवंत बनाए रखने के लिए प्रतिमा की स्थापना कराई गई। श्री धावड़े के अथक प्रयास से प्राचीन बस्तर एवं आदिवासियों से संबंधित सभी प्रकार के ग्रंथ, पुस्तकालय, इतिहास, संस्कृति पर्यटन रीति रिवाज, सामाजिक तानाबाना, देवगुड़ी, मातागुड़ी घोटूल, पेन गुड़ी, सेवा अर्जी स्थलों एवं प्राचीन मृतक स्मारकों से संबंधित पुस्तिका पुरखती कागजात बस्तर के ऐतिहासिक आंदोलन से सम्बंधित पुस्तकों का संकलन कर ग्रंथलाय की स्थापना कराई। जहां विद्यार्थी शोध तथा अध्ययन कर सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे तुलसी ठाकुर ने कहा कि समय बदलता गया और अब ऐसा समय आया कि सरकार को मजबूर होना पड़ा। 2006 में भारत की संसद में जो कानून लाया गया, वह आदिवासियों एवं अन्य परम्परागत लोगों के लिए जंगलों में प्रबंधन एवं संरक्षण, उनके संवर्धन कार्य योजनाएं तैयार करने के लिए गांव के पारंपरिक सीएफआर सीमाओं के अंदर आने वाली जंगल भूमि के संरक्षण और सीएफआर वन प्रबंधन के दस्तावेज तैयार करने में सफल प्रयास हुआ। यह बस्तर संभाग आयुक्त के मार्गदर्शन में ही संभव हुआ।

प्रखर वक्ता अश्विनी कांगे ने कहा कि संवैधानिक रूप से बस्तर संभाग 5वीं अनुसूची क्षेत्र में आता है। भारत का संविधान अधिकार देता है कि यह 5वीं अनुसूची क्षेत्र है, लेकिन प्रशासनिक तौर पर इसे सामान्य क्षेत्र के नजरिए से चलाया जाता था। संविधान में इसकी अलग व्याख्या और व्यवस्था दी गई है। संभाग आयुक्त श्यामलाल धावड़े ने सेवा जोहार, जय सेवा, जय बूढ़ादेव से संबोधन शुरू किया। उन्होंने कहा कि उन्हें लगभग ढाई साल से बस्तर में कार्य करने का अवसर मिला। यहां का समाज जागरूक है। उन्होंने गर्व करते हुए कहा कि हमारा समाज जितना सशक्त, मजबूत, जागरूक और पढ़ा-लिखा होगा, उतना ही विकास करेगा। आदिवासी समाज की अलग पहचान, सभ्यता, रीति-रिवाज है। जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष महत्वपूर्ण है। बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के माध्यम से हमने एक छोटा सा प्रयास किया। हमारे बैगा, गुनिया, सिरहा, मांझी, चालकी, पेरमा, पुजारी, पटेल की परंपराओं का एक लिपिबद्ध दस्तावेज तैयार किया और एक पुस्तक तैयार की। मेरा अनुरोध है कि सभी अपने घर परिवार में इस पुस्तक को रखें ताकि बच्चों को अपनी समृद्ध विरासत की जानकारी मिल सके। पुस्तक में देवी, देवता, गांव के पारंपरिक देवी देवता, बस्तर संभाग के सातों जिलों में आयोजित होने वाले मड़ई, मेला, जातरा आदि का वर्णन है। क्रांतिकारी योद्धाओं का भी उल्लेख है। मुझे गर्व है कि हमने यह इतिहास दर्ज किया।

मुरिया समाज के संभागीय अध्यक्ष जगदीश मौर्य ने समापन करते हुए कहा कि हम आदिवासी पिछड़े हैं और प्रशासन के साथ मिलकर आगे बढ़ने के लिए तत्पर हैं। बस्तर संभाग को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करने पर उन्होंने आभार व्यक्त किया। समाज के रीति-रिवाज, भाषा, बोली, खान-पान, रहन-सहन और संरक्षण के लिए तहेदिल से आभारी रहेंगे। इस दौरान प्रकाश ठाकुर, सामू मौर्य, हिड़मो मंडावी, गोपाल भारद्वाज, अश्विनी कांगे, बलदेव मौर्य, गांग नाग, पप्पू नाग, शारदा कश्यप, तुलसी ठाकुर, संतू मौर्य, संतोष उसेंडी, धीरज राणा, एमके राणा, नीरज कुंजाम, महेंद्र उसेंडी, नरेश मरकाम, हिड़मो वट्टी, पांडू वट्टी, लक्ष्मीनाथ कश्यप, रूपचंद नाग, लखेश्वर कश्यप, बंसी मौर्य, सुखदेव बघेल, फूलसिंग नाग, सोमारु बघेल, अभय कच्छ, कमल नाग, कमलेश कश्यप, सुमीत पोयाम, पूरन सिंह कश्यप, हरीश मुचाकी, बसंत कश्यप, संदीप सलाम, जग्गू तेलामी, लच्छू नाग, साधु मंडावी, सीताराम मांझी, लंबूधर बघेल, पदम कश्यप, अमीर कश्यप, महादेव, शोभा, प्रकाश आजाद, बामदेव भारती एवं बस्तर संभाग के समाज प्रमुख, अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित थे।

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