बैतालों के सवालों से विचलित हुए बिना कर्म पथ पर अग्रसर हैं बीजापुर के विक्रम, निभा रहे आदिवासी होने का धर्म

0  रिश्ते निभाने और मानवीय संवेदना से नहीं करते सुलह 
(अर्जुन झा)जगदलपुर। बैतालों के उल्टे सीधे सवालों से हार नहीं मानने वाला है यह विक्रम। मौन रहकर भी हर सवाल का जवाब देने का माद्दा रखता है बीजापुर का विक्रम। हम बात कर रहे हैं बीजापुर के विधायक विक्रम मंडावी की।जहां जनहित और मानवीय संवेदना की बात हो, वहां विक्रम मंडावी अपनी जान दांव पर लगाने से भी नहीं चूकते। यही वजह है कि बीजापुर विधानसभा क्षेत्र की जनता उन पर आंख मूंदकर भरोसा करती है।
दो दिन पहले विधायक विक्रम मंडावी बीजापुर जिले में हुई भारी बारिश के चलते बाढ़ में फंस गए थे। उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष शंकर कुड़ियाम के भाई के अंतिम संस्कार में शामिल होना जरूरी था। यह मानवीय संवेदना का मसला था। सामने उफनता नाला था। रपटे पर जांघ तक पानी बह रहा था। लिहाजा विधायक विक्रम मंडावी ने अपने वाहन को बीजापुर जाने वाले रास्ते पर छोड़ दिया और एक किसान का ट्रेक्टर लेकर खुद ही उसे ड्राइव करते हुए बाढ़ग्रस्त रपटे को पार कर गए। बीजापुर के कुछ घोर विरोधी और विपक्ष के लोग विधायक विक्रम मंडावी के इस कदम को नाजायज ठहरा रहे हैं। वे दलील दे रहे हैं कि विधायक के इस कदम से लोगों में गलत संदेश जाएगा और हर कोई ऐसा दुस्साहस करने लगेगा। कोई और मौका होता तो हम भी विधायक के उफ़नते नाले को पार करने की हम कतई पैरवी नहीं करते। मगर उस समय जो हालात थे और मानवीय संवेदना का जो मसला था, उन परिस्थितियों के चलते ही विधायक श्री मंडावी को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी थी। यहां यह बताना बहुत जरुरी है कि आदिवासी एक दूसरे से रिश्ते निभाने और दुख की घड़ी में हमदर्द बनकर खड़े रहने में विश्वास ही नहीं रखते, बल्कि ऐसा करते भी हैं। सो विक्रम मंडावी भी एक सच्चे आदिवासी होने के नाते ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर हुए थे। वैसे उनकी जीवटता के उदाहरण हमें पहले भी देखने को मिल चुके हैं। एक दफे नक्सलियों ने विधायक विक्रम मंडावी की गाड़ी पर फायरिंग कर दी थी। श्री मंडावी इस घटना में बाल बाल बचे थे, मगर तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और न ही वे जरा भी विचलित हुए। इस घटना के कुछ ही देर बाद विक्रम मंडावी युवकों और बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते नजर आए थे। इसे कहते हैं जिगर वाला आदिवासी। वैसे विक्रम बैताल की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। बैताल हर बार राजा विक्रमादित्य को घेरने की कोशिश करता है प्रश्नों के जरिए, ताकि वह राजा विक्रम यानि विक्रमादित्य की चुप्पी तुड़वा सके। राजा विक्रम हर बार मौन रहकर कर्म पथ परआगे बढ़ते रहे। कुछ ऎसी ही कहानी बीजापुर के विक्रम की भी है, जो निर्विकार भाव से कर्म पथ पर चलते हुए सच्चे आदिवासी का धर्म निभा रहे हैं।

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