आपातकाल का विरोध करने वाली भाजपा की सरकार में 10 साल से अघोषित आपातकाल चल रहा – बैज

रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि आपातकाल का विरोध करने वाली भाजपा की सरकार ने 10 साल से देश में अघोषित आपातकाल लगा रखा है। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबडेकर के लिखे संविधान खतरे में है। संविधान बदलने की बात कही जा रही है, संवैधानिक संस्थाये स्वतंत्र होकर काम नहीं कर पा रही है, मीडिया जनता के मुद्दे उठा नहीं पा रही है, लोकतंत्र का गला घोट जा रहा है, आम जनता के ऊपर टैक्स लादा जा रहा है, पेपर लीक हो रहे हैं, बढ़ती महंगाई बेरोजगारी से हर वर्ग हताश और परेशान है। जनता मूलभूत की सुविधाओं के लिए तरस रही है, समय पर ट्रेन नही मिल रहा है। सरकारी दफ्तरों में अराजकता है, 80 करोड़ लोग 5 किलो अनाज पर निर्भर है, न उनके पास  काम है न भरपेट भोजन की व्यवस्था है। व्यापारी वर्ग डरा हुआ है, देश की संपत्तियां बिक रही है, यह असल मायने में आपातकाल है 10 साल से देश में आपातकाल का दो काला खण्ड चल रहा था, अब तीसरा खण्ड शुरू हुआ है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि आपातकाल का विरोध करने वाले संघ, भाजपा एवं अन्य दल के अन्य नेता अब खुद अपनी सरकार में खुलकर बोलने से डर रहे हैं, उन्हें भी केंद्रीय एजेंसियों का डर सता रहा है। जो लोकतंत्र के सेनानी खुद को बताते थे, वह छिपे हुए बैठे हैं सिर्फ पेंशन लेने के लिए सामने आते हैं। देश में लोकतंत्र के अधिकारों का उपयोग करने से रोका जाता है, किसान नौजवान आंदोलन करें तो उन्हें देशद्रोही ठहराया जाता है, उन पर लाठियां चलाई जाती है, जेल में बंद किया जाता है। विपक्ष को डराया धमकाया जाता है। सदन से लेकर सड़क तक जनता के सवाल उठाने वालों की आवाज को दबाने सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया जाता है। विपक्ष को बोलने से रोका जाता है। इस देश में 10 साल से चल रहा है आज भाजपा के नेता जो आपातकाल के विरोध में काला दिवस मनाने जा रहे है, उन्हें शर्म आनी चाहिये। 10 साल से इस देश में अघोषित आपातकाल का काला अध्याय चल रहा है और उसके लिए भाजपा जिम्मेदार है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि देश के संवैधानिक इतिहास में जितने अलोकतांत्रिक फैसले मोदी राज में हुए उतने आज तक कभी नहीं हुए। विपक्षी दलों के सांसदों को सदन से बाहर करके एक-एक दिन में दर्जनों जन विरोधी कानून पास किए गए, तब तथाकथित लोकतंत्र सेनानी कहां थे? 13 श्रम कानूनों में श्रमिक विरोधी संशोधन बिना चर्चा के पारित किए गए। वन अधिकार अधिनियम में आदिवासी विरोधी संशोधन थोपा गया, नो-गो एरिया को संकुचित किया गया। वन क्षेत्रों में कमर्शियल माइनिंग जबरिया शुरू किया गया। यहां तक की न्यायपालिका पर भी अनुचित दबाव बनाए गए इसके विरोध में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित पांच जजों को सड़क पर आकर पत्रकार वार्ता करना पड़ा। असलियत यही है कि भाजपा और आरएसएस का मूल चरित्र ही लोकतंत्र विरोधी है।

 

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