0 नक्सलियों के हाथों भाई की मौत का मंजर देख चुके केदार कश्यप ने सुनाई भयावह गाथा
0 बस्तर की आने वाली नस्लों को वो मंजर देखना न पड़े
(अर्जुन झा) जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो दादा बलिराम कश्यप को न जानता हो। एक दौर था जब दिल्ली के सियासी गलियारे में भी बस्तर के इस सपूत के नाम की गूंज सुनाई देती थी। आजीवन नक्सली हिंसा के खिलाफ मुखर रहे बलिराम कश्यप ने बस्तर को जहां बहुत कुछ दिया, वहीं उनके परिवार ने बस्तर में शांति के लिए बहुत कुछ खोया भी है। नक्सली हिंसा में जहां बलि दादा के घर का एक कुल दीपक बुझ गया, वहीं दादा के दूसरा कुल दीपक दैवयोग से बूझते- बूझते बच गया। जो आंखें बचपन से बस्तर में माओवाद का खूनी खेल देखती आई हैं, वो आंखें नक्सली तांडव के भयावह मंजर की दास्तां सुनाते सुनाते सहसा छलक पड़ी।
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ सरकार में वन एवं सहकारिता मंत्री केदार कश्यप की। केदार कश्यप बलि दादा के तीसरे कुल दीपक हैं, जो अपने ओज और तूफानों के बीच भी निरंतर आलोकित हैं और बस्तर को भी आलोकित करते आ रहे हैं। केदार कश्यप जब किशोरावस्था में थे तब उनकी आंखों के सामने नक्सलियों ने उनके अग्रज तानसेन कश्यप को गोलियों से छलनी कर दिया। नक्सलियों का इरादा केदार कश्यप के दूसरे अग्रज दिनेश कश्यप की भी हत्या करने का था। पूर्व सांसद दिनेश कश्यप को गोली लगी, लेकिन उनकी जान बच गई। बलि दादा के परिवार को नक्सलियों ने ऐसी खौफनाक सजा महज इसलिए दी क्योंकि बलिराम कश्यप और उनके वंशज बस्तर में नक्सलियों द्वारा किए जाने वाले रक्तपात के खिलाफ और बस्तर में शांति स्थापना के लिए लगातार आवाज बुलंद करते आ रहे थे। केदार कश्यप ने अपने परिवार के साथ नक्सलियों द्वारा किए गए खूनी खेल के साथ ही कई परिवारों की लाशें बिछती हुई भी देखी हैं। सैकड़ों बच्चों को अनाथ होते और पचासों बहनों की मांग उजड़ते भी अपनी आंखों से देखा है, निरीह आदिवासियों की नक्सलियों के हाथों हत्याएं होती देखी हैं। जो शख्स बचपन से लेकर जवानी तक नक्सलियों का खूनी खेल देखते आया हो, वह भला चैन की नींद कैसे ले सकता है। ये सारे मंजर 3 जून को केदार कश्यप की आंखों के सामने तब फिर उभर आए जब लोकतंत्र और माओवाद विषय पर बस्तर शांति समिति द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में उन्हें बोलने का अवसर मिला।
आंखों से ओझल नहीं होता वो मंजर
बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले में नक्सलियों द्वारा किए गए रक्तपात की घटनाओं का जिक्र करते समय मंत्री केदार कश्यप बेहद भावुक और रूआंसे हो उठे। उन्होंने कहा कि मैंने पूरे के पूरे परिवार की हत्या होते देखा है, लाशों का बड़ा समूह देखा है। गोलियों से छलनी शरीर देखे हैं, किसी के हाथ काट दिए गए, किसी के पैर ओर फिर उन्हें दर्दनाक मौत दी गई। आज भी वो मंजर मेरी आंखों से ओझल नहीं होते। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि बस्तर की मौजूदा नई पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों को ऐसे दृश्य देखने को न मिले। वो आखिर किस बात की लड़ाई लड़ रहे हैं कि बेकसूर आदिवासियों की हत्याएं कर रहे हैं? वे आदिवासियों को सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा जैसी मौलिक सुविधाओं से आखिर क्यों वंचित रखना चाहते हैं? हमारी सरकार बस्तर के सुदूर और बीहड़ गांवों के हमारे आदिवासी भाई बहनों तक ये सभी सुविधाएं पहुंचाने के लिए काम कर रही है। हमारे गृहमंत्री विजय शर्मा जी ने नियद नेल्लानार (मेरा अच्छा गांव) योजना चलाकर एक नए युग का सूत्रपात किया है। गांवों में तमाम सुविधाएं पहुंचा रहे हैं, राह भटके लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रहे हैं। गृहमंत्री विजय शर्मा जी की इसी दृढ इच्छाशक्ति, सेवा ओर समर्पण भावना का सबसे बड़ा उदाहरण सुकमा जिले के अति नक्सल प्रभावित गांव पूवर्ती मे अस्पताल का खुलना है। हमारी सरकार ने माओवादियों के समक्ष शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा है, नक्सल प्रभावित और भटके लोगों के पुनर्वास के लिए ठोस नीति बनाई बनाई जा रही है। इसके लिए विजय शर्मा जी ने दो कदम आगे बढ़कर नक्सलियों से भी सुझाव मांगे हैं, मगर नक्सलियों ने न तो शांतिवार्ता पर कोई पेशकश की और न ही पुनर्वासनीति पर कोई सुझाव दिया है। इसी से उनकी मंशा ओर उनके रक्त चरित्र का पता चलता है। केदार कश्यप के इस शुरुआती वक्तव्य ने जहां सभा स्थल का माहौल कुछ देर के लिए गमगीन बना दिया था, वहीं उनके वक्तव्य की अंतिम पंक्तियों ने खूब तालियां बटोरी।