० कोंडागांव में गंभीर मरीजों का अब भगवान ही सहारा
(अमरेश झा) कोंडागांव। आज भी जब कोई एंबुलेंस सायरन बजाती हुई तेजी से निकलती है, तो हर व्यक्ति मन ही मन भगवान से यही विनती करता है कि भगवान यह व्यक्ति जो भी हो, उसकी जान बचा लेना।मगर जीवन रक्षक की भूमिका निभाने वाली एंबुलेंस ही बीमार पड़ जाए तो मुसीबत में फंसे मरीजों का हाल क्या होगा ?
जिन मरीजों की जान पर बन आई होती है, उनकी प्राण रक्षा में एंबुलेंस की अहम भूमिका होती है। ऐसे में अगर एंबुलेंस ही बीमार हालत में पड़ी हो तो मरीजों का भगवान ही मालिक है। अगर एंबुलेंस अपनी ही लाचारी पर आंसू बहाने लगे तो फिर क्या कहा जा सकता है। जी हां हम बात कर रहे हैं कोंडागांव जिले की सरकारी एम्बुलेंसों की जो कोंडागांव के विभिन्न गैराजों में विगत कई महीनों से और कुछ तो कई वर्षों से खराब होकर खड़ी हैं। उनका हालचाल जानने वाला कोई नहीं है। एक कॉल पर सडक़ों पर दौडऩे वाली एम्बुलेंस इन दिनों जहां कबाड़ हो रही हैं। वहीं एम्बुलेंस के कई पुर्जे गायब भी हो चुके हैं। उसके बाद भी जिम्मेदार एम्बुलेंस को उठवाने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं। गौरतलब है कि मरीजों की सुविधा के लिए स्वास्थ्य विभाग को एंबुलेंस उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए शासन द्वारा लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। जिससे आपातकाल में गंभीर बीमारी से ग्रसित या विषम परिस्थिति में मरीज को समय पर अस्पताल लाया जा सके। लेकिन यह तभी संभव है जब एंबुलेंस फिट हालत में हो। पुरानी एंबुलेंस विभाग ठीक करने की जहमत नहीं उठाता । जिसके चलते सभी पुरानी एम्बुलेंस खड़ी कर दी गई हैं। वह जंग खाने लगी हैं। लंबे समय से खराब खड़ी एंबुलेंस जंग और धूल खा रही हैं। एंबुलेंस की स्थिति जर्जर हो चुकी है। लेकिन विभाग इस ओर से आंखें मूंदे बैठा है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा इनकी नीलामी के लिए भी कोई पहल नहीं की जा रही है। आपातकाल में मरीजों की जान बचाने वाली एंबुलेंस धूल, मिट्टी, धूप, वर्षा से स्वयं दम तोड़ रही है। जब अस्पताल में गम्भीर रूप से बीमार कोई मरीज को आकस्मिक दुर्घटनाओं में घायल व्यक्ति को लाया जाता है तो डॉक्टरों द्वारा उक्त घायलों या मरीजों को अन्य बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है तब भी एम्बुलेंस का ही सहारा लिया जाता है। फिर इन एम्बुलेंसों के असली महत्व का पता चलता है? और इन्ही हालातों में जब परिजन इन एम्बुलेंसों के बारे में पता करते है तो मालूम पड़ता है कि जो एम्बुलेंस बची है, वो किसी अन्य मरीज को छोड़ने गई है। उसके बाद कितनी बार अस्पताल परिसर में विवाद की स्थिति निर्मित होती है। संबंधित डॉक्टरों का कहना होता है कि एम्बुलेंस की व्यवस्था नही है और जो है भी वे या तो खराब पड़ी है या किसी अन्य मरीज को छोड़ने अन्य जगहों पर गई हैं। ऐसे में मरीजों के स्वास्थ्य की स्थिति चिंतनीय है।आपको बताते चले कि अति इमरजेंसी सेवा में काम आने वाली 108 और 102 नंबर की फ्री एंबुलेंस सेवा का असल हाल देखना हो तो मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के पीछे नजर डालिए। यहां छह से सात एंबुलेंस कबाड़ में तब्दील हो चुकी हैं। यही हाल अन्य अस्पतालों या कार्यालय परिसर में भी देखने को मिल जाती है। जहां इन कंडम एंबुलेंस को इस तरह से छोड़ दिया गया है, जो झाड़ियों में गुम हो गई हैं। परंतु विभाग कुंभकर्णी नींद से जागने में अपनी असमर्थता जता रहा है अब तो कोई चमत्कार ही विभाग को नींद से जगा सकता है।