आदिवासी भतरा समाज में आने वाली है बड़े बदलाव की बयार, फिजूलखर्ची और आडंबर से दूर रहेगा समाज

0  गोटीगुड़ा में हुई भतरा समाज की अहम बैठक
0 युवाओं और बेटियों की उच्च शिक्षा पर दिया जाएगा जोर, दूर होंगे कई चलन 
(अर्जुन झा) बकावंड। आदिवासी भतरा समाज में अब बड़े बदलाव की बयार बहने वाली है। आडंबर, फिजूलखर्ची, रूढ़िवाद, शादी ब्याह और मृत्यु कर्म के अव्यवहारिक लेनदेन तथा मांस मदिरा के चलन से यह समाज अब उबरने वाला है। समाज में शिक्षा की नई क्रांति आने वाली है। बेटियों की शिक्षा को समाज में प्राथमिकता दी जाएगी। विकासखंड बकावंड की ग्राम पंचायत गोटीगुड़ा में आदिवासी भतरा समाज की बड़ी महत्वपूर्ण बैठक समाज के संभागीय अध्यक्ष शंभूनाथ कश्यप, संभागीय कोषाध्यक्ष लीलाधर कश्यप, ब्लॉक अध्यक्ष अनंत राम कश्यप, अस्तू राम कश्यप, धनेश्वर नेताम, रुपधर कर्मा, दशमत कश्यप, रतन भारती, मदन राम व अन्य समाज प्रमुखों की उपस्थिति में हुई। बैठक में विभिन्न ग्रामों के नाईक, पाईक एवं समाज प्रमुख उपस्थित थे। समाज के रीति रिवाजों के संबंध में चर्चा की गई। शादी विवाह से लेकर शिक्षा स्तर तक पर गहन मंथन किया गया। चर्चा में कहा गया की शादी विवाह में कपडों की लेनदेन, टीकावन (उपहार) में बर्तन भेंट का जिक्र हुआ। इस संबंध में कहा गया कि हमारे समाज के लोग अधिकतर शादी विवाह के दौरान टीकावन में बर्तन भेंट करते हैं। जो कि ठीक नहीं है। क्योंकि आज हर घर में सभी तरह के बर्तन, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मौजूद रहते हैं। ऐसा करके हम दुकानदारों का धंधा चला रहे हैं। वहीं जिन्हें हम यह चीजें टीकावन में देते हैं, वह उनके लिए अनुपयोगी हो जाते हैं। इस प्रचलन को बंद कर देना चाहिए। शादी विवाह के टीकावन में बर्तन के स्थान पर नगद रुपए देना चाहिए। इससे शादी करने वाले परिवार की आर्थिक मदद हो जाएगी। वह परिवार उस रकम का उपयोग अपनी जरूरत के हिसाब से कर सकेगा। समाज प्रमुखों ने उदाहरण सामने रखते हुए कहा कि एक पीतल का गुंडी 1700 रुपए मे आती है। उसके बदले में इतनी ही राशि टीकावन रूप में दी जाए, तो शादी करने वाले परिवार को यह बड़ी मदद होगी। शादी मे कपड़ा लेनदेन, मांस मदिरा के चलन को भी प्रतिबंधित करने पर चर्चा की गई। कहा गया कि शादी विवाह अपनी हैसियत के अनुसार करना चाहिए। किसी भी प्रकार का दिखावा नहीं करना चाहिए। कर्ज लेकर या पैतृक जमीन जायदाद को बेचकर शादी विवाह दिखावा के लिए नहीं होना चाहिए।

पगड़ी रस्म में नगद रकम दें

इसी प्रकार अंतिम क्रियाकर्म में भी पगड़ी रस्म के दौरान पैसा का चलन होना चाहिए। कपड़े देने की जगह दुखी परिवार को नगद रकम देनी चाहिए। अगर आप 100 रूपए का कपड़ा पगड़ी रस्म के लिए खरीदते हैं, तो कपड़ा न देकर उतने ही रुपए हम यदि पगड़ी रस्म में दे दें तो यह शोक संतप्त परिवार के लिए बहुत ही आर्थिक मदद होगी। हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा। सामाजिक लेनदेन विवाह पर भी चर्चा की गई। शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक कन्या साक्षरता पर विशेष जोर दिया गया। समाज के जागरूक और शिक्षित जनों ने कहा कि हमारे समाज के बच्चे 12वीं पास होने के बाद आगे की शिक्षा ग्रहण नहीं करते हैं। इस पर गहनता से विचार कर हमें ध्यान देना चाहिए। आगे की पढ़ाई करना चाहिए।उच्च शिक्षित होकर ही हम अपने अधिकारों के लिए बेहतर पहल कर पाएंगे और समाज को प्रगतिशील बना सकेंगे।हमारे समाज के लिए आरक्षण लागू है। आरक्षण से हमें बहुत सारी सुविधाएं मिलती हैं। उन सुविधाओं का हमें लाभ उठाना चाहिए। सांस्कृतिक कार्यक्रम खानपान पर भी चर्चा की गई। कहा गया कि क्रियाकर्म में सांस्कृतिक कार्यक्रम उड़िया नाटक को बंद कर देना चाहिए। इस अवसर पर भतरा समाज के संभागीय अध्यक्ष शंभूनाथ कश्यप, संभागीय कोषाध्यक्ष लीलाधर कश्यप, ब्लॉक अध्यक्ष अनंत राम कश्यप, अस्तूराम कश्यप, धनेश्वर नेताम, रूपधर कर्मा, दशमत कश्यप, रतन भारती, मदन राम समेत विभिन्न ग्रामों के सरपंच, सिरहा, पुजारी, ग्रामीणों महिलाओं और माता बहनों की जबरदस्त उपस्थिति रही।

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