0 नक्सलियों की करतूत ने फिर बुझा दिए दो घरों के चिराग, दो बच्चों की मौत
0 तेंदूपत्ता संग्रहण के दौरान घटना से ग्रामीण दहशत में
(अर्जुन झा)जगदलपुर। बस्तर संभाग के जंगलों के बीच बसे गांवों के आसपास तथा जंगलों में नक्सलियों द्वारा प्लांट किए गए आईईडी की चपेट में आकर निरीह आदिवासी और उनके बेगुनाह बच्चे मारे जा रहे हैं। हर दूसरे दिन नक्सलियों की करतूत का शिकार निर्दोष आदिवासी बन रहे हैं। तीन दिन पहले ही एक आदिवासी युवती प्रेशर आईईडी का शिकार बनी थी और कल फिर दो मासूम बच्चे आईईडी ब्लास्ट में काल कवलित हो गए। ये तीनों घटनाएं बीजापुर जिले की हैं।
बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में नक्सलियों द्वारा लगाए गए प्रेशर आईईडी की चपेट में आने से इंद्रावती नदी उस पार के ग्राम ओड़सापारा बोड़गा में 2 मासूम बच्चों की मौत हो गई। यह घटना थाना भैरमगढ़ क्षेत्र के ओड़सापारा बोड़गा गांव की है। नक्सलियों द्वारा जवानों को निशाना बनाने के उद्देश्य से आइईडी को प्लांट किया गया था। जानकारी के अनुसार तेंदूपत्ता तोड़ाई के दौरान आईईडी ब्लास्ट होने से ग्राम बोड़गा निवासी 13 वर्षीय लक्ष्मण ओयाम पिता मुन्ना ओयाम और 11 वर्षीय बोटी ओयाम पिता कमलू ओयाम की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। इसकी सूचना पर थाना भैरमगढ़ थाने में दी गई। बीजापुर के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र यादव ने घटना की पुष्टि की है। तीन चार दिन पहले ही बीजापुर जिले में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी की चपेट में आने से एक आदिवासी युवती शांति पुनेम की भी मौत हो गई थी। यह घटना गंगालूर थाना क्षेत्र के मल्लूर गांव में हुई थी। 20 वर्षीया शांति पुनेम बुरजी से मल्लूर अपने रिश्तेदार के यहां तेंदूपत्ता तोड़ने गई थी। रात लगभग 8-9 बजे अपने घर बुरजी वापस जा रही शांति पुनेम का पैर जमीन के अंदर दबाकर रखे गए प्रेशर आईईडी पर रख गया और पैर के दबाव से आईईडी में ब्लास्ट हो गया। शांति की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी। विस्फोट से युवती के दोनों पैरों के चिथड़े उड़ गए। ज्ञात हो कि पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों को निशाना बनाने के लिए नक्सलियों द्वारा प्रेशर आइईडी प्लांट किया जाता है।
आदिवासी बन रहे हैं निशाना
बीजापुर जिले के गंगालूर थाना अंतर्गत ग्राम मल्लूर में आदिवासी युवती शांति पुनेम और भैरमगढ़ थाना के बोड़गा में आइईडी ब्लास्ट से हुई दो बच्चों की मौत से ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। मिली जानकारी अनुसार 13 वर्षीय लक्ष्मण ओयाम और 11 वर्षीय बोटी ओयाम अपने माता- पिता के साथ तेंदूपत्ता तोड़ने गांव के पास स्थित जंगल में गए थे। जहां आइईडी के चपेट में आने से दोनों बच्चों की घटना स्थल पर मौत हो गई। इस तरह 10 म़़ई को तेंदूपत्ता तोड़ने गई बुरजी की एक आदिवासी युवती शांति पुनेम की प्रेशर आईईडी ब्लास्ट से मौके पर मौत हो गई थी। नक्सली भले ही पुलिस और सुरक्षा बलों को टारगेट करने के लिए आईईडी प्लांट करते हैं, मगर इसका शिकार बेकसूर आदिवासी और उनके मासूम बेटे बेटियों को बनना पड़ रहा है। दुख की बात तो यह है कि खुद को आदिवासियों का हिमायती बताने वाले तथा आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने की बात करने वाले नक्सली अपने द्वारा प्लांट किए गए आईईडी की जद में आकर जान गंवाने वाले बेकसूर आदिवासियों की मौत पर संवेदना व्यक्त करने की जरूरत भी नहीं समझते। पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान तो प्लांट किए गए विस्फोटकों की पहचान कर अक्सर सुरक्षित बच निकलते हैं। वहीं भोले भाले आदिवासी पहचान नहीं कर पाते और बेमौत मारे जाते हैं। इससे एक बात साफ हो गई है कि नक्सली आदिवासियों के हितैषी नहीं बल्कि दुश्मन हैं और अब विदेशी ताकतों के हाथों खेलने लगे हैं।
10-10 लाख का मुआवजा
केंद्र व राज्य सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए व अंतिम संस्कार हेतु 25- 25 हजार रुपए की सहायता राशि बीजापुर कलेक्टर द्वारा स्वीकृत की गई है। भैरमगढ़ ब्लाक के ग्राम बोड़गा में दो मासूमों की मृत्यु क्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी ब्लास्ट से होने पर बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय ने संवेदना व्यक्त की है। कलेक्टर अनुराग पाण्डेय ने नक्सलियों से अपील की है कि वे हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौट आएं। शासन ने उनके पुनर्वास के लिए योजना चला रखी है। कलेक्टर ने केंद्र और राज्य शासन की ओर से दोनों मृत बच्चों के परिजनों को 10- 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता अतिशीघ्र उपलब्ध कराने की बात कही है। इसके अलावा दोनों बच्चों के अंतिम क्रियाकर्म के लिए 25-25 हजार रुपए अग्रिम रूप से देने की घोषणा की है।
मानवाधिकार की दुहाई देने वाले चुप
मानवाधिकार की दुहाई देने वाले तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता आदिवासियों की मौत पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं? क्या उनकी नजर में आदिवासियों के लिए मानवाधिकार नहीं होते? कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं को नक्सलियों के ही मानवाधिकार क्यों नजर आते हैं? ये सारे सवाल तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों की मंशा को उजागर करने के लिए काफी हैं। ज्ञात हो कि कुछ माह पूर्व पालनार में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी से एक स्कूली छात्रा भी घायल हुई थी, जिसे नक्सलियों ने उचित इलाज से भी वंचित रखा था। तथाकथित कुछ मानव अधिकार संगठनों के लोगों द्वारा निरंतर निर्दोष और मासूमों की मौत पर चुप्पी साधे रहना भी समझ से परे है। इसे उनकी मौन सहमति ही माना जाएगा। ये सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन आदिवासियों के हितों के प्रति संवेदनहीन बने हुए हैं।