0 यूनिफार्म, कॉपी, पुस्तकों की आड़ में लूट खसोट
0 स्कूल संचालकों और पुस्तक विक्रेताओं की सांठगांठ
(अर्जुन झा) जगदलपुर। नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही पालकों से लूट खसोट का खेल फिर चल पड़ा है। हाईकोर्ट के फैसले और जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए निजी स्कूल प्रबंधन अपनी पसंदीदा स्टेशनरी शॉप से ही पाठ्य पुस्तकें, कॉपियां और यूनिफार्म खरीदने के लिए पालकों को बाध्य करने लगे हैं। यह सब कमीशन के लिए किया जा रहा है।
जबसे छत्तीसगढ़ में निजी स्कूल का चलन बढ़ा है, तबसे शिक्षा माफिया और स्टेशनरी माफिया चांदी काटते आ रहे हैं। पहले से ही आम लोगों में धारणा बन गई है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई ढंग से नहीं होती, वहां अपने बच्चों का दाखिला करवाना यानि उनका भविष्य बर्बाद करने जैसा है। आज के पालक चाहते हैं कि उनके बच्चे शुरू से ही अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाई करें और डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, आईएएस, आईपीएस बनें। यही वजह है कि आज के माता पिता अपने बच्चों को निजी इंग्लिश मिडियम स्कूलों में दाखिला दिलाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाने लगे हैं। यहां तक कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक शिक्षिकाएं भी अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूलों में पढ़ाने लगे हैं। पालकों की बदलती धारणा को देखते हुए शिक्षा माफिया तेजी से पांव पसार रहा है। बस्तर जैसे आदिवासी संभाग में भी ऐसे निजी स्कूलों की भरमार हो गई है। निजी स्कूलों के संचालक जमकर लूट मचा रहे हैं। बच्चों के यूनिफार्म, पुस्तक, कॉपियां, टाई, बेल्ट, जूते, मोजे, बैग आदि सबकुछ स्कूल प्रबंधन की मर्जी अनुसार पालकों को खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। स्कूल प्रबंधन और कॉपी पुस्तक विक्रेताओं की सांठगांठ से पालकों का आर्थिक एवं मानसिक शोषण किया जा रहा है। पालकों को ये सारी चीजें तयशुदा दुकान से ही खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। कॉपी पुस्तकें बेचने वाले व्यापारी अब यूनिफार्म, टाई, जूते मोजे तक बेचने लगे हैं। कॉपी, पुस्तकों, यूनिफार्म, टाई, जूते, मोजे की मनमानी कीमत पालकों से वसूली जा रही है। जो वस्तु अन्य स्टेशनरी शॉप में 80 रुपए में मिलती है, वही वस्तु स्कूलों की सांठगांठ वाली दुकान में 120 रुपए से लेकर 150 रुपए तक में बेची जा रही है। इस तरह जबरदस्त मुनाफा कमाकर पालकों की जेब हल्की की जा रही है। व्यापारी इस मुनाफे का आधा हिस्सा स्कूल प्रबंधन को देते हैं। इससे स्टेशनरी व्यापारी को जहां ज्यादा कमाई हो जाती है, वहीं स्कूल संचालकों को बैठे बिठाए बड़ी आमदनी होती है।
हिंदी स्कूल भी नहीं हैं कमतर
पालकों को यह बात समझनी होगी कि इंग्लिश मिडियम में शिक्षा देने वाले कान्वेंट स्कूल बच्चों को सिर्फ अंग्रेजी में ही दक्ष बना सकते हैं, उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस नहीं बना सकते। ऐसे मुकाम बच्चे अपनी मेधा और प्रतिभा के बूते ही हासिल कर पाते हैं। हमारे बस्तर संभाग में ही ऐसे कई उदाहरण हैं कि यहां के कई बेटे बेटियां सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाई कर डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस, सीए, वकील आदि बनकर देश की सेवा कर रहे हैं। हाल ही में आए सीजी पीएससी में बस्तर की कई बेटियां डीएसपी, डिप्टी कलेक्टर, खनिज अधिकारी सरीखे पदों के लिए चयनित हुई हैं। जगदलपुर की एक बेटी ने तो यूपीएससी क्वालिफाई कर अपनी प्रतिभा को लोहा मनवा दिया है। इन बेटियों से पालकों को नसीहत लेने की जरूरत है।
रद्द हो सकती है मान्यता
जिले के कुछेक स्कूलों को छोड़ अधिकांश निजी स्कूल की किताब और ड्रेस के लिए एक दुकान निर्धारित है। बच्चो के दाखिले के बाद स्कूल की ओर से पालकों को इन दुकानो की जानकारी दी जाती है और वहीं से किताब, कॉपी, यूनिफार्म खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता है। आएदिन मिल रही ऐसी शिकायतों के बाद जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान ने सभी निजी स्कूलों के लिए एक आदेश जारी किया है। आदेश में साफ कहा गया है कि पालकों को दुकान विशेष से पुस्तक कॉपियां, जूते मोजे, टाई, यूनिफार्म खरीदने के लिए बाध्य करना गैर कानूनी है। ऐसे स्कूलों की मान्यता रद्द करने की कार्रवाई की जाएगी।
क्या है हाईकोर्ट का फैसला
यहां यह बताना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भी निजी स्कूलों के इस कदम को लेकर फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर याचिकाकर्ता निजी विद्यालय प्रबंधन संघ या संस्था खुले बाजार से पुस्तक की खरीदी के लिए जाता है तो प्रतिवादी राज्य स्कूल शिक्षा विभाग और निदेशक लोक शिक्षण याचिकाकर्ता के खिलाफ बल पूर्वक कदम नहीं उठा सकते। सिवाय उन पुस्तकों ke जिनकी आपूर्ति पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा की जाती है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पाठ्य पुस्तक निगम की पुस्तकों और राज्य शासन के सिलेबस को निजी स्कूलों में अहमियत नहीं दी जाती।