(अर्जुन झा) जगदलपुर। कहते हैं कि गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा, लेकिन राजनीति में यह बात लागू नहीं होती। कब कौन सा द्वार बंद हो जाए और कब कौन सा बंद दरीचा द्वार बन जाए, कहा नहीं जा सकता। राजनीति की भूल भुलैया में कुछ भी असंभव नहीं होता। राजनीति संभावना का मंच है। यहां संभावनाएं कभी दम नहीं तोड़तीं। हां, परिदृश्य से ओझल जरूर जान पड़ती हैं, जिन्हें तलाशा और तराशा जा सकता है। राजनीति में वक्त के साथ उतार चढ़ाव आता जाता रहता है। जो सुकून के साथ आड़े वक्त को साध लेता है, उसकी उम्मीद की कोपलें मुरझाने के बाद भी हरिया जाती हैं। बस्तर की कांग्रेस राजनीति के लिहाज से राजधानी रायपुर में आज एक बड़ा धमाका हुआ। जिसकी गूंज वन प्रांतर के चप्पे चप्पे में सुनाई दे रही है। बस्तर के वरिष्ठ कांग्रेस नेता उमाशंकर शुक्ला ने आज कांग्रेस के सबसे चमकदार नेता राहुल गांधी से रायपुर में मुलाकात की। गुजरे जमाने में बस्तर कांग्रेस के आधार स्तम्भ माने जाने वाले उमाशंकर शुक्ला कुछ वर्षों से राजनीतिक हाशिये पर थे। किंतु प्रदेश कांग्रेस का कमांडर बदलने के बाद इनकी अब मुख्य धारा में शानदार वापसी हुई है। नए दौर में आरंभिक अहमियत नसीब हो चुकी है। उनकी राहुल से आज की मुलाकात के मायने कल की राजनीति में क्या असर दिखाएंगे, वह तो बाद में समझ आएगा। मगर बस्तर की कांग्रेस राजनीति को जानने वाले अब जान गए हैं कि शुक्ला की राजनीति अब करवट बदल रही है। एक वक्त था, जब बस्तर संभाग मुख्यालय की कांग्रेस राजनीति उमाशंकर शुक्ला के इर्दगिर्द घूमती थी। वे काफी प्रभावशाली नेता माने जाते थे। वक्त बदला और शुक्ला धीरे धीरे किनारे होकर हाशिये पर पहुंच गए। यह कांग्रेस के लिए लाभकारी है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हाशिए की अहमियत बखूबी जानते हैं। कब किसे हाशिए के बाहर भेजना है और कब किसे हाशिए से उठाकर अहमियत देना है, यह भूपेश बघेल का वह राजनीतिक चातुर्य है जो उनके राजनीतिक विरोधियों पर बहुत भारी पड़ता है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक युक्तियुक्तकरण की कई मिसालें छत्तीसगढ़ और बस्तर कांग्रेस के हालिया इतिहास में दर्ज हैं। जो भी जरा सा भी कांग्रेस के प्रयोजन से इतर गया, वह श्रीहीन हो जाता है। जो कांग्रेस के काम आए, उसे भूपेश पहचान लेते हैं और तराश देते हैं। बीते समय में उन्होंने बस्तर के दमदार कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम को साफ संदेश दे दिया था कि वे अपनी पारी खेल चुके। अब दीपक बैज को खेलने दें। कांग्रेस के राष्ट्रीय महा अधिवेशन में उन्हें एक अवसर मिला लेकिन वे कांग्रेस के काम नहीं आये। बस्तर की आदिवासी राजनीति में कांग्रेस और भूपेश बघेल के पास उपयोगी खिलाड़ियों की भरमार है। भूपेश बघेल ने समय रहते दीपक बैज को उभार दिया। पहले उन्हें बस्तर सांसद बनवाया। क्योंकि बैज युवा हैं। असीम संभावनाएं उनमें भरी हुई हैं। भूपेश को भरोसा था कि बस्तर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का सूनापन बैज ही दूर कर सकते हैं। उन्होंने यह कर दिखाया। उनके संसदीय प्रदर्शन और बस्तर में दिखाई गई नेतृत्व क्षमता ने असर दिखाया। जब प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में परिवर्तन अपरिहार्य हो गया तो भूपेश बघेल को कांग्रेस नेतृत्व ने बैज के तौर पर एक युवा, फुर्तीला, मजबूत कंधा दे दिया। चुनाव के चार माह पहले पीसीसी का नया चीफ भूपेश बघेल की दूरंदेशी का प्रतीक है। बैज की नियुक्ति के बाद प्रदेश कांग्रेस संगठन में नई रवानी आ गई है। अब बात राजनीतिक समीकरण की करें तो बस्तर कांग्रेस में अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले मलकीत सिंह गैदू को प्रदेश कांग्रेस में महासचिव संगठन- प्रशासन बनाकर एक अलग सियासी पैगाम दिया गया। सामान्य वर्ग के सवर्ण नेता उमाशंकर शुक्ला को आज जिस तरह से महत्व दिया गया है, उसका असर भी देखने लायक होगा। बस्तर की 12 सीटों में सामान्य सीट एक ही है और उस सीट जगदलपुर पर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत के लिए शुक्ला का सक्रिय सहयोग कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। समझा जा सकता है कि शुक्ला को सक्रिय करके कांग्रेस बस्तर में यथास्थिति बनाये रखने की रणनीति तैयार कर रही है।