देर लगी आने में उनको शुक्र है फिर भी आये तो…

0 बस्तर की खातिर बाबा बने डिप्टी सीएम

(अर्जुन झा)

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में चुनाव के चार महीने पहले टीएस सिंहदेव की पदोन्नति हो गई। वे डिप्टी सीएम बना दिये गए। बाबा के आत्मीय संबोधन से राजनीति में विशिष्ट पहचान रखने वाले सरगुजा महाराज बस्तर की कांग्रेस राजनीति में खास दखल रखते हैं। उन्होंने 2018 के चुनाव में बहुत अधिक मेहनत यहां की थी। वनांचल ने कांग्रेस की झोली भर दी तो इसमें तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और तब नेता प्रतिपक्ष रहे सिंहदेव की अहम भूमिका थी। सत्ता में आने पर कांग्रेस नेतृत्व के भूपेश बघेल को नेतृत्व सौंपा। तब सिंहदेव भी टक्कर के दावेदार थे। दोनों में सुलह आसान थी लेकिन आगे चलकर जो नजारे सामने आये, वे राजनीति में अचरज का विषय नहीं है। ढाई ढाई साल के फार्मूले का खूब शोर सुनाई दिया लेकिन ढाई साल के बाद 3 साल, साढ़े 3 साल, 4 साल, साढ़े 4 साल का वक्त गुजर गया। कोई फॉर्मूला फिट नहीं हुआ। अब छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं को दिल्ली से बुलावा आया। पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा, टीएस सिंहदेव सहित अन्य नेताओं के साथ विचार विमर्श हुआ और उस बैठक के बाद खड़गे – राहुल ने फैसला कर लिया कि सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए। छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों को दिल्ली में रोका गया और उसके बाद खड़गे के बंगले में भूपेश बघेल और सिंहदेव को फैसला सुना दिया गया। वेणुगोपाल ने बाकायदा इसका ऐलान कर दिया। मुख्यमंत्री ने तत्काल उपमुख्यमंत्री सिंहदेव को शुभकामनाएं दे दीं। दोनों ने चुनाव के लिए तैयार होने का ऐलान कर दिया है। अब यहां देखने वाली बात यह है कि दिल्ली बैठक के पहले सिंहदेव बस्तर में थे। सूत्र बताते हैं कि उनके समर्थक विधायकों के साथ उनकी गंभीर चर्चा हुई थी। सिंहदेव समर्थक विधायकों के मन में यह भय समा रहा था कि यदि सिंहदेव अलग-थलग रहे तो उन्हें टिकट के लाले पड़ जाएंगे सिंहदेव भी यह बात अच्छी तरह समझ रहे थे कि उनकी वजह से उनके समर्थक मझधार में हैं और यदि उन्होंने कोई बड़ा फैसला नहीं किया तो इन समर्थकों को निराश होना पड़ेगा। मुख्यमंत्री पद के लिए अब तक आस लगाए बैठे टीएस सिंहदेव डिप्टी सीएम बनने यूं ही राजी नहीं हुए हैं। इस फैसले में सबका भला है। झटका लगा है तो केवल भाजपा को। भाजपा कह सकती है कि कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है। वह अपनी जगह सही हो सकती है लेकिन असली डैमेज तो भाजपा का हुआ है। वह उम्मीद लगाए बैठी थी कि चुनाव आते आते सिंहदेव का मन डोल जाएगा। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा होने से रोक दिया। सिंहदेव के सामने मजबूरी है कि उन्हें अपने समर्थक विधायकों के भविष्य की चिंता है। कांग्रेस को यह चिंता थी कि सिंहदेव कहीं भाजपा के झांसे में न आ जाएं। वैसे सिंहदेव लगातार यह स्पष्ट करते रहे हैं कि वह कांग्रेस छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। लेकिन राजनीति में हालात बदलने की उम्मीद रहती है। लिहाजा कांग्रेस ने सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाकर उन्हें बांध दिया है। अब कांग्रेस नए कलेवर के साथ नए तेवर दिखाएगी। अब न कोई गिला है और न शिकवा है। सिंहदेव की दुविधा दूर हो गई है। अब वे पहले जैसे उत्साह के साथ मैदान में उतरेंगे तो उनके बस्तरिया समर्थकों को भी राहत का अहसास हो रहा है।

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