सिंधिया ने दिखाए नए रंग, क्या भाजपा से हो गया मोहभंग…

0 अपनी पार्टी, झाड़ू थामना या हाथी की सवारी विकल्प

0 समर्थक एकजुट रखना पहली जरूरत

(सत्यप्रकाश) भोपाल। केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्विटर अकाउंट में बीजेपी के स्थान पर पब्लिक सर्वेंट लिखा नजर आते ही सियासी हलचल तेज हो गई है। विधानसभा चुनाव सिर पर है और ऐसे समय में सिंधिया का यह संकेत गहरे मायने रखता है। सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने के पहले भी संकेत दिए थे। अब कांग्रेस और सिंधिया के बीच इतनी दूरी है कि उनकी घर वापसी सहज नहीं है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के साथ वे काम करना पसंद नहीं करेंगे। सिंधिया एक बड़े नेता हैं। भाजपा उन्हें मनाने बीच का रास्ता निकाल सकती है लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्या सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया की तरह पार्टी बनाएंगे या झाडू थामेंगे, इस पर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। सिंधिया की नाराजगी हर हाल में भाजपा के लिए खतरे की घंटी है और कांग्रेस इसका फायदा उठाने से पीछे नहीं रहेगी। सिंधिया कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में गए सभी पूर्व और मौजूदा विधायकों को टिकट दिलाने पर अड़े बताये जा रहे हैं। भाजपा ने टिकट काटने का जो फार्मूला तैयार किया है, उससे सिंधिया सहमत नहीं हैं। उपचुनाव में जो विधायक हार गए थे, सिंधिया उन्हें भी भाजपा की टिकट दिलाना चाहते हैं। प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति बैठक में सिंधिया नहीं आए। उनकी नाराजगी और बैठक में नहीं आने का यह एक अहम कारण माना जा रहा है। सिंधिया की नाराजगी की वजह से ग्वालियर और चंबल संभाग की भाजपा राजनीति में अजब स्थिति बन गई गई है। उपचुनाव में पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल, इमरती देवी, गिरराज दंडोतिया, रघुराज सिंह कंसाना और रणवीर जाटव हार गए थे। भाजपा हारे हुए विधायकों को टिकट नहीं देना चाहती। भाजपा से टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ये आम आदमी पार्टी या बसपा का रुख कर सकते हैं। खास बात यह है कि सिंधिया यह नहीं चाहेंगे कि उनके समर्थक तितर बितर हों। इन्हें एकजुट रखना ही सिंधिया की मजबूती है। समर्थक अलग अलग जगह चले गए तो अपने इलाके में ही सिंधिया का राजनीतिक वर्चस्व संकट में पड़ सकता है।

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