0 सरकारी दुकानों में बिक रही शराब का नशा नहीं चढ़ता
0 ओड़िशा से ला कर पी रहे हैं तक शराबी
(अर्जुन झा)
जगदलपुर। केंद्र सरकार की जांच एजेंसी ईडी द्वारा की गई छापेमारी बस्तर संभाग के शराब प्रेमियों पर भारी पड़ती दिख रही है। छापे की कार्रवाई के बाद से संभाग की सरकारी दुकानों में बेची जा रही शराब का असर बहुत ही कम हो गया है। दूसरी तरफ अंग्रेजी शराब दुकानों में वांछित ब्रांड की शराब नहीं मिल रही है। देशी शराब का नशा नहीं चढ़ता और अंग्रेजी शराब बहुत ही हल्के ब्रांड की होने के कारण हलक के नीचे नहीं उतरती। मदिरा प्रेमियों को कड़क नशा देने वाली और मनपसंद ब्रांड की अंग्रेजी शराब के लिए ओड़िशा तक की दौड़ लगानी पड़ रही है। दूसरी ओर इसका बेजा फायदा शराब तस्कर उठाने लगे हैं।
बस्तर और शराब के बीच सदियों से पुराना नाता रहा है। शराब को खासकर आदिवासी समुदाय के लोगों के जीवन का अनिवार्य हिस्सा माना जाता रहा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक हर संस्कार और यहां तक कि पूजा पाठ भी शराब के बिना पूर्ण नहीं माने जाते। यही वजह है कि सरकार ने भी आदिवासियों को निजी जरूरतों के लिए एक तय मात्रा में शराब बनाने की छूट दे रखी है। बस्तर संभाग के हाट बाजारों में भी महुआ शराब बेची जाती है। इसके साथ ही बस्तर संभाग में पचासों सरकारी शराब दुकानें भी संचालित हैं। संभाग की सरकारी दुकानों में बिक रही शराब कुछ अरसे से यहां के मदिरा प्रेमियों को रास नहीं आ रही है। इसकी वजह इस शराब का कम असरकारक होना है। मदिराप्रेमी बताते हैं कि सरकारी दुकानों की शराब पीने से पहले जैसा नशा नहीं चढ़ता। एक पौव्वा पीकर मस्त हो जाने वाले लोग पूरी बोतल गटक जाते हैं, तब भी उन्हें नशा नहीं चढ़ता। यहां की सरकारी दुकानों से खरीद कर शराब पीने को लोग अब पैसे की बर्बादी मानने लगे हैं। आलम यह है कि जो लोग बिना शराब सेवन किए रह नहीं पाते, वे लोग अब अपनी लत पूरी करने के लिए पड़ोसी राज्य ओड़िशा की वैध शराब दुकानों और अवैध दारू अड्डों तक की दौड़ लगाने लगे हैं। वहां उन्हें कम पैसों में ज्यादा नशा देने वाली शराब मिल जाती है। लोग मोटर साईकिलों और दीगर साधनों से बस्तर संभाग के बकावंड ब्लॉक की सीमा से लगे ओड़िशा की शराब दुकानों तक जाकर वहां से अपनी जरूरत के मुताबिक शराब खरीद लाते हैं। मगर इसके लिए उन्हें समय जरूर जाया करना पड़ता है। सूत्र बताते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी ) द्वारा पिछले दिनों राजधानी रायपुर में आबकारी विभाग के अफसरों के ठिकानों और कुछ दफ्तरों पर छापेमारी की गई थी। इसके बाद से ही बस्तर संभाग की सरकारी दुकानों की शराब भी आश्चर्यजनक ढंग से बेजान हो चली है। छापे की कार्रवाई के बाद से यहां की सरकारी दुकानों में बिकने वाली देसी, मसाला और अंग्रेजी शराब की गुणवत्ता में काफी गिरावट आ गई है। शराब इस कदर घटिया स्तर की होती है कि कितनी भी पी जाएं, लेकिन सुरूर नहीं आता। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ईडी के छापों का साइड इफेक्ट बस्तर संभाग के शराब प्रेमियों पर पड़ रहा है। दरअसल उत्पादन प्रभावित होने से जिले में शराब की सप्लाई कम हुई है। खासतौर पर कई लोकप्रिय ब्रांड की शराब सरकारी दुकानों में उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजी दुकानों में केवल सस्ती ब्रांड की शराब ही मिल रही है। ऐसे में मदिरा के शौकीन ओडिशा तक जाने मजबूर हो रहे हैं।
इस प्रकार की परेशानी मदिरा प्रेमियों को पूरे बस्तर संभाग में हो रही है। सरकारी शराब दुकान में अच्छी मदिरा नहीं मिलने का नाजायज फायदा शराब तस्कर उठा रहे हैं। ये तस्कर छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों के साथ ही दूसरे राज्यों से तस्करी कर लाई गई शराब को बस्तर में खपाने लगे हैं। इन तस्करों ने गांव – गांव और शहर – शहर में अपने कोचिए नियुक्त कर रखे हैं, जिनके माध्यम से वे तस्करी कर लाई गई शराब को आसानी से बिकवा कर मोटी कमाई कर रहे हैं। इस मामले में बस्तर संभाग के बीजापुर के एक कुख्यात शराब तस्कर का नाम सबसे आगे चल रहा है। जानकार बताते हैं कि बीजापुर का यह तस्कर मध्यप्रदेश और हरियाणा से तस्करी कर बड़े पैमाने पर अवैध शराब बस्तर संभाग में खपा रहा है।