परदुःखकातरता से मनुष्यता की खोज भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल है

0 समय के साथ संवाद राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला महाविद्यालय और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा : समय के साथ संवाद विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन 24 फरवरी को हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. के.पी. सिंह, निदेशक, गाँधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय, विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रणय कुमार, प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं स्तंभकार, सम्मानित अतिथि के रूप में डॉ. संजीव पांचाल, सहायक निदेशक, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के रूप में उपस्थित रहे।

प्राचार्या प्रो. साधना शर्मा, एसपीएम कॉलेज ने इस अवसर पर सफल आयोजन के लिए इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के साथ ही आयोजकों को बधाई देते हुए दो दिवसीय संगोष्ठी के निष्कर्ष रूप में भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रवाहमान चरित्र और धर्म की तरह ही मनुष्य के अंतस में स्थित होने को रेखांकित किया।

विशिष्ट अतिथि प्रणय कुमार ने इस कार्यक्रम में ऑनलाइन जुड़ते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को नदी के प्रवाह के समान कई समानांतर धाराओं के रूप में देखने का आग्रह किया। यह ज्ञान परंपरा सत्य की कसौटी पर खरा उतरने वाला है जो मूल्यों को आत्मसात करने पर बल देता है और यह समन्वय, समरसता एवं सहयोग कृतज्ञता की परंपरा है। डॉ. संजीव पांचाल ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परंपरा का विद्यार्थियों के बीच प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल देते हुए बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा वास्तव में सही ज्ञान की तलाश की परंपरा है।

मुख्य अतिथि प्रो. के. पी. सिंह ने शिक्षा का लक्ष्य सीखना माना और साथ ही कहा कि सीखना ही आगे बढ़ना है। हमारी शिक्षा प्रणाली आरंभ से ही वैज्ञानिक रही है जो दूसरों के प्रमाण से पहले स्वयं के प्रमाण से सिद्ध होने की परंपरा रही है। परदुःखकातरता से मनुष्यता की खोज भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल है।
अंत में आयोजक मंडल के सदस्यों, प्रपत्र वाचकों और प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया और संयोजक डॉ. वीरेंद्र यादव, सह-संयोजिका डॉ. सुप्रिया सिन्हा के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ।

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