बस्तर के शेरों की मांद में घुस आए रंगे सियार…

0 उड़ीसा के युवक ने फर्जीवाड़ा कर हथिया ली बस्तर फाइटर की नौकरी
0 गहराई से जांच की जाए तो मिल सकते हैं और भी नकली आदिवासी
0 शिकायत मिलने के बाद प्रशासन ने शुरू कराई जांच

(अर्जुन झा)

जगदलपुर। बस्तर के आदिवासी युवा शेर -चीतों की तरह चौकन्ने, फुर्तीले और गजब के योद्धा होते हैं. वे दुश्मन के सामने कभी किसी भी हाल में घुटने नहीं टेकते। इन्हीं जांबाज शेरदिल युवकों की एक फ़ौज बस्तर पुलिस ने तैयार की है, जिसे बस्तर फाइटर फ़ोर्स नाम दिया गया है। इस फ़ोर्स में बस्तर के ही आदिवासी युवकों की नियुक्ति का प्रावधान रहा है, लेकिन कुछ बाहरी युवक भी फर्जीवाड़ा कर बस्तर के शेरों की मांद में घुसपैठ करने में कामयाब हो चुके हैं। ऐसे ही एक मामले की शिकायत मिलने पर प्रशासन ने जांच शुरू कर दी है। जानकारों का कहना है कि मांद की जांच गहराई से करने पर कई रंगे सियार हत्थे चढ़ सकते हैं।

गौरतलब है कि बस्तर संभाग लंबे अरसे से नक्सली समस्या का सामना करते आ रहा है। उड़ीसा तथा अन्य पड़ोसी राज्यों से बस्तर संभाग के रास्ते छत्तीसगढ़ के अन्य भागों तक की जाने वाली गांजा तस्करी भी पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। नक्सली समस्या से निपटने के लिए बस्तर पुलिस पूरी ताकत लगा रही है। केंद्र सरकार ने भी विभिन्न सशस्त्र बलों तथा पैरा मिलिट्री फ़ोर्स की तैनाती बस्तर के विभिन्न भागों में कर रखी है। पुलिस को नक्सलवाद से निपटने के साथ ही गांजा तस्करी व दीगर अपराधों की रोकथाम और कानून व्यवस्था बनाने के लिए भी ताकत झोंकनी पड़ती है। इसीलिए बस्तर फाइटर की नियुक्ति का फैसला लिया गया। इस विशेष फोर्स में बस्तर के ही मूल निवासी आदिवासी युवकों को इसलिए शामिल किया गया है, क्योंकि वे बड़े ही साहसी तथा जंगलों के चप्पे- चप्पे से वाकिफ होते हैं। दूसरा अहम् उद्देश्य यह है कि पुलिस में नौकरी मिल जाने से ये युवा नक्सलियों के बहकावे में आने और राह भटकने से बचाये भी जा सकते हैं। मगर चिंता की बात है कि स्थानीय आदिवासियों का हक़ मरने वालों ने इसमें भी सेंध लगा दी है। ऐसे तत्व रंगे सियार की तरह बस्तर के इन शेरों की मांद में घुस चुके हैं। पुरानी कहानी है – जंगल का एक सियार शिकार की तलाश में गांव पहुंच गया, जहां कुत्ते उसके पीछे पड़ गए. सियार गांव के रंगरेज़ के रंग भरे हौज में घुस गया। सियार को ना पाकर कुत्ते लौट गए. इसके बाद ज़ब पूरी तरह रंग चुका सियार जंगल लौटा तो उसे देख डर के मारे सारे जानवर भागने लगे। फिर सियार खुद को भगवान का भेजा हुआ दूत बताकर जंगल में राज करने लगा। उसकी पोल तब खुल गई, ज़ब जंगल के दूसरे सियारों की आवाज़ सुन कर वह भी हुआ – हुआ करने लगा। ये तो हुई रंगे सियार की कहानी। अब बस्तर फाइटर फ़ोर्स में घुस चुके रंगे सियारों की असली कहानी को आगे बढ़ाते हैं. जो कुछ इस तरह है –
जिले के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र सिंह मीणा के समक्ष बस्तर जिले की बकावंड तहसील के ग्राम छोटे देवड़ा निवासी आदिवासी युवक मानसिंग पिता रायधर भतरा ने मामले की शपथ पत्र के साथ लिखित शिकायत की है। इसमें बताया गया है कि उड़ीसा से आकर ग्राम छोटे देवड़ा में रह रहे युवक कमलोचन पिता पकलू दिशा ने खुद को गांव के आदिवासी ग्रामीण सोमारु पिता सिरो का पुत्र बताते हुए फर्जी वंशावली ( मिसल ) पेश कर हल्का पटवारी के सहयोग से फर्जी जाति एवं निवास प्रमाण पत्र हासिल कर लिया और इसी के दम पर उसने बस्तर फाइटर की नौकरी भी पा ली।

शिकायतकर्ता मानसिंग ने बताया है कि वह ( मानसिंग ) सोमारु का नाती है। सोमारु की चार संतान क्रमशः मुंदिया, घासनी, मांगतीन व सुखराम थे। कमलोचन नाम वाला कोई बेटा सोमारु का नहीं है। मानसिंग सोमारु की बेटी घासनी पति रायधर का बेटा है। सोमारु की तीन संतानों मुंदिया, मंगतीन और सुखराम की मृत्यु हो चुकी है। इस तरह कमलोचन ने फर्जीवाड़ा कर बस्तर फाइटर की नौकरी पा ली है तथा अभी वह पुलिस लाइन जगदलपुर में सेवा दे रहा है।

आदिवासियों का हक़ मारने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो-बैज

बस्तर सांसद दीपक बैज ने कहा है कि इस तरह से फर्जीवाड़ा कर बस्तर के आदिवासियों का हक़ मारने वाले तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे फ्राड को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सांसद श्री बैज ने कहा कि बस्तर फाइटर फ़ोर्स समेत सभी विभागों में इस तरीके से नौकरियां हथियाने के मामलों का खुलासा कर ग़फ़लत करने वालों को नौकरियों से निकाल बाहर करने की जरुरत है, ताकि आदिवासियों का मौलिक अधिकार सुरक्षित रह सके।

शुरू करा दी है जांच -मीणा

बस्तर पुलिस अधीक्षक जितेंद्र सिंह मीणा ने कहा है कि मिली शिकायत के आधार पर मामले की जांच आरंभ करा दी गई है।अनुविभागीय दंडाधिकारी श्री वर्मा को जांच अधिकारी बनाया गया है। जांच अधिकारी श्री वर्मा ने बताया कि उन्हें दो दिन पहले ही जांच का आदेश मिला है तथा वे जल्द ही जांच पूरी कर जिला स्तरीय छानबीन समिति को जांच प्रतिवेदन सौंप देंगे।

पटवारी की भूमिका संदिग्ध

इस पूरे मामले में छोटे देवड़ा गांव से ताल्लुक हल्का पटवारी की भी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। पटवारी ने सोमारु के परिवार के मिसल दस्तावेज का बिना रिकार्ड परीक्षण कराए कमलोचन द्वारा प्रस्तुत मिसल को कैसे सत्यापित कर दिया और क्यों पटवारी ने कमलोचन के लिए जाति एवं निवास प्रमाण पत्र बनने दिया? यह सवाल उठ रहे हैं। इस तरह हल्का पटवारी भी जांच के दायरे में है।

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