आज का दिन परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है कि क्योंकि हमारे सबसे छोटे देवर की शादी के लिए लड़की देखने जाने का कार्यक्रम तय किया गया है। परिवार बोले तो 5 भाईयों और 3 बहनों में सभी 4 भाई और तीनों बहनें शासकीय सेवाओं में उच्च पदों पर सेवारत हैं, जो सभी इकट्ठे हुए। यद्यपि मैं भी उच्च शिक्षित हूं फिर और घर की बड़ी बहू होने के नाते परिवार की जिम्मेदारियों के प्रति विशेष लगाव होने से मैं गांव के घर पर ही रहती हूं। हमारे ससुर जी क्षेत्र के एक नामचीन सम्मानित व्यक्तियों में से हैं और पुराने समय के जमींदारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। ईश्वर की कृपा से घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है और श्रेष्ठ मध्यम परिवार के स्तर का जीवन जीते हैं। परिवार के सभी सदस्यों की उपयोग के लिए कारें भी हैं और घरेलू कामों के निए पुराने और विश्वसनीय दो नौकर भी हैं। सभी के मन में छोटे भाई के लिए बहू के रूप में जो लड़की चुनकर लायी जानी है उसके लिए अनेक कल्पनाएं हैं।
जिस परिवार में हमको लड़की देखने के लिए जाना है, वह परिवार भी हमारे समकक्ष हैसियत का परिवार है और सबसे बड़ी बात कि चार भाईयों के बीच इकलौती बहन होने की वजह से वह लड़की सबकी लाड़ली भी है, बहुत नाज़ों में पली होने के बावजूद भी संस्कारवान है। नियत समय पर हम सब लोग लड़की वालों के यहां गए और बहुत ही खुशनुमा माहौल में सभी का शानदार आदर सत्कार हुआ। घर में लायी जाने वाली बहू के रूप में लड़की को परिवार के सभी सदस्यों ने पसंद करते हुए खूब सराहना की। अन्य औपचारिकताओं को पूरा करते हुए विवाह की बात पक्की कर दी गई। रही बात लेन-देन व दान-दहेज की तो दोनों ही परिवार पूरी तरह से सक्षम होने के कारण हम सबने किसी प्रकार की न तो कोई मांग रखी और न ही हमारी ऐसी कोई ख्वाहिश थी कि हमें कुछ चाहिए। चूँकि विवाह के लिए लगभग छः महीने का समय था अतएव सभी लोग वापस अपने कार्यस्थल पर चले गए और बीच-बीच में समय निकालकर घर आते और शादी की तैयारियां करवाते। ईश्वर की कृपा से दीपावली के बाद एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त में भव्यता के साथ विवाह सम्पन्न हुआ और मेरी देवारानी हमारे घर की बहू बनकर आ गयी जिसका बहुत ही शानदार तरीके स्वागत किया गया। विदाई के समय लड़की के पिता ने सीख देते हुए अपनी बेटी से कहा कि दोनों ही परिवारों की मर्यादा का ध्यान रखना और परिवार की एकता को बनाए रखना। परिवार चलाने के लिए अनेक रीति रिवाजों और परंपराओं का जिक्र करते हुए लड़की पक्ष के लोगों ने विदाई किया। बाद में हमारे घर पर भी परंपरागत तरीके से सभी रश्मों को पूरा करते हुए भव्य तरीके से नई बहू के स्वागत में भोज का आयोजन कराया गया जिसमें बड़ी संख्या में क्षेत्रवासियों व रिश्तेदारों ने हिस्सा लिया और बहू व अन्य व्यवस्थाओं की भरपूर तरीफ हुई।
लड़की पक्ष वालों से यद्यपि किसी प्रकार की हमारी कोई मांग नहीं थी फिर भी उस परिवार की इकलौती लड़ली होने की वजह से उन लोगों ने अपनी हैसियत के अनुरूप नव दाम्पत्य की सुखमय जीवन में उपयोगिता के हिसाब से उपहार के रूप में हर वह सामान दिया जो आज के आधुनिक समय में नई गृहस्थी बसाने के लिए आवश्यक होता है। दिए गए सामानों के लिए ससुर जी ने कई बार मना भी किया कि हमें इन सब सामानों की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन दूसरी तरफ लड़की वालों का तर्क था कि हम अपनी बेटी को ऐसे ही कैसे विदा कर देते।
कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक ही चलता रहा और नई बहू सभी की अपेक्षाओं पर खरी साबित हुई। यहां यह भी बता दूं कि शादी के वक्त हमारे देवर जी की शिक्षा पूरी हो चुकी थी और उन्हें भी शासकीय विभाग में सम्मानजनक पद प्राप्त हुआ और वे भी घर के ही पास में नौकरी करने लगे। चूँकि उनका रूझान घर-परिवार और खेती के प्रति बहुत ज्यादा था अतः वे घर पर भी पर्याप्त समय दिया करते थे। धीरे-धीरे समय बीतता गया और जीवन की रफ्तार पहले की भांति आगे बढ़ती गई। इसी बीच देवरानी को एक लड़का भी हुआ।
वैसे तो हमारी सासू मां हर तरह से इस विवाह से प्रसन्न थीं और घर में किसी प्रकार का कोई अभाव भी नहीं था, लेेकिन उनके मन के किसी कोने में एक बात फंस कर रह गई थी और वह बात थी कि छोटी बहू अपने साथ कार लाई होती तो पड़ोस मुहल्ले और समाज में उनकी इज्जत और बढ़ जाती। पता नहीं बहू के परिवार वालों का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं गया। इस बात को सोचकर उनका मन मसोसकर रह जाता था। कुछ दिनों तक तो उन्होंने अपने मन को समझाया लेकिन यह बात उनके दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रही थी और एक दिन उन्होंने बहू के सामने अपने मंतव्य को प्रकट कर ही दिया। सासू मां ने देवरानी से साफ शब्दों में कहा कि उसे अपने घर से बी.एम.डब्ल्यू. कार लेकर आना था। सासू मां की इस फरमाईश को सुनकर छोटी बहू के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह बोली भी कि औसत या फिर मध्यम दर्जे की कोई भी कार वे यदि चाहें तो पिता जी व भाईयों को बोलकर वह ला सकती है लेकिन करोड़ की कीमत वाली बी.एम.डब्ल्यू. कार खरीद पाने की हैसियत उसके परिवार की नहीं है। लेकिन सासू मां के दिमाग में जो बात एक बार बैठ गई तो बस उसी बात पर ठहर गई। अपनी बात से वह टस से मस नहीं हुई और नतीजा यह हुआ कि उन्होंने धीरे-धीरे बहू की प्रताड़ना शुरू कर दिया। देवर जी भी अपनी मां को बहुत समझाने का प्रयास करते रहे कि हमें इतनी मंहगी कार की आवश्यकता नहीं है बल्कि यहां तक कह दिया कि हमें कार चाहिए ही नहीं लेकिन सासू मां तो इस बात को पड़ोस और मुहल्ले के साथ ही समाज में प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुकी थीं और जिद में आ गई थीं कि उनको तो बी.एम.डब्ल्यू. कार ही चाहिए। बात धीरे-धीरे देवरानी के मायके तक पहुंच गई और उन सभी ने भी विनती किया कि इस कार को छोड़कर 10 से 15 लाख कीमत वाली जो भी कार वे चाहें खरीदकर दे सकते हैं लेकिन बी.एम.डब्ल्यू. कार खरीदने की उनकी हैसियत नहीं है।
एक लम्बे अर्से तक चले इस प्रसंग की परिणति तलाक की नौबत तक पहुंच गई और मामला न्यायालय तक पहुंच गया फिर भी सासू मां का मन नहीं पसीजा। न्यायालय में इस बात की बहस चल रही थी कि बच्चा किसके पास रहेगा। ऐसी विषम परिस्थितियों में मेरी देवरानी ने तंग आकर खुदकुशी करने की नीयत से स्वंय अग्नि स्नान कर लिया और अपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया। बहुत ही दुःखद अंत के साथ घर परिवार, समाज सभी सकते में आ गए। सभी की जुबान पर बस एक ही बात थी कि हर दृष्टिी से सम्पन्न होते हुए भी दहेज की बलि बेदी पर एक बेटी-बहन व बहू चढ़ा दी गई। एक मासूम बच्चा अपनी ममत्व प्यार से अनाथ हो गया। दो परिवारो के सम्बन्ध में कटुता आ गई। सासु माँ को जिस पारा पड़ोस और समाज में प्रशंसा चाहिये थी आज वही सब हमपर थू थू करने लगी। पिता जी द्वारा कमाए गए मान सम्मान को आज गहरा आघात लगा था।
एक सुविधा सम्पन्न परिवार द्वारा दहेज प्रताड़ना की शिकार अक्सर वे लड़कियां होती हैं जो कुलीन व संस्कारवान होते हुए भी गरीब परिवारों से होती हैं और ससुराल वालों की अनंत फरमाईशों से तंग आकर ऐसा कदम उठाती हैं। लेकिन यहां तो एक ऐसी लड़की बलि बेदी पर चढ़ी जो सम्पन्न परिवार से समकक्ष परिवार में गई थी। तो क्या झूठी शान और प्रतिष्ठा के नाम पर उसकी बलि चढ़ाई गई। अक्सर देखा जता है कि दहेज की वजह से हुए हादसों का जिक्र आने पर मस्तिष्क में लड़की पक्ष वालों के गरीब, लाचार और बेबश होने का अक्श उभर कर सामने आता है लेकिन यहां तो कहानी ही अलग है। ऐसे में प्रबुद्ध वर्ग को गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है कि कब तक लड़कियों के साथ पशुता का व्यवहार किया जाता रहेगा, आखिर दहेज के नाम पर कब तक उन्हें कुर्बानी देनी पड़ेगी।
आज रक्षाबंधन का पुनीत पर्व है और ऐसे में यह एक बड़ा सवाल उठता है कि इस तरह से दहेज की बलि चढ़ी लड़कियों की वजह से कितने भाईयों की कलाईयां आज सूनी हो गई है! इस पर युवाओं और समाज के जिम्मेदारों को विचार करना होगा।
बलवंत सिंह खन्ना
स्वतन्त्र लेखक, कहानीकार