रायपुर। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणी जिसमें कहा गया है की नकली उत्पादों की बिक्री इंटरनेट पर बहुत हो गई है कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने उसे लंबे स्टैंड के पुष्टि की है कि ई-कॉमर्स पोर्टलों का उपयोग नकली सामान, प्रतिबंधित दवाओं, बम बनाने में प्रयुक्त कच्चे माल की बिक्री के लिया किया जा रहा है जो न केवल देश की सुरक्षा के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है बल्कि नकली उत्पादों को वितरित करके ग्राहकों को गंभीर चोट पहुंचा सकता है। कैट ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री श्री पीयूष गोयल, जो उपभोक्ता मामलों के मंत्री भी हैं, से इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल संज्ञान लेने और कार्रवाई करने का आग्रह किया है। कैट ने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह द्वारा पारित आदेश पर दोनों मंत्रालयों में एक गंभीर लेकिन जल्द से जल्द गहन चर्चा का आह्वान किया है।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी और प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने आरोप लगाया कि भारत में संचालित प्रमुख विदेशी वित्त पोषित ई-कॉमर्स पोर्टल विक्रेताओं की आवश्यक केवाईसी नहीं कर रहे हैं, हालांकि वे अपने संबंधित प्लेटफॉर्म पर ऑनबोर्डिंग से पहले प्रत्येक विक्रेता की केवाईसी करने के लिए बाध्य हैं। जब भी, वे कानून, नियमों और नीतियों का उल्लंघन करते हुए पकड़े जाते हैं, तो वे हमेशा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 का आश्रय लेते हुए विक्रेता पर इसका आरोप जड़ते देते हैं यह कहते हुए कि वे तो केवल मार्केटप्लेस हैं और खरीदारों और विक्रेताओं को प्रौद्योगिकी मंच प्रदान करते हैं जो स्पष्ट रूप से झूठ है क्योंकि उनके संबंधित पोर्टलों पर ऑर्डर इन पोर्टलों तक पहुंच जाते हैं, जिनके पास यह तय करने का वीटो होता है कि आपूर्ति के लिए ऑर्डर किसके पास भेजा जाना चाहिए। वे ऐसा कैसे कह सकते हैं कि उन्हें अपने प्लेटफॉर्म पर होने वाले लेन-देन के बारे में कुछ भी पता नहीं है जबकि वे न केवल ऑर्डर एवं पैकिंग बल्कि माल की डिलीवरी भी करते हैं । इसके अलावा, कमीशन के रूप में कुछ राशि लेकर, वे बिक्री तंत्र का अभिन्न अंग बन जाते हैं और इसलिए वे किसी भी उत्पाद के लिए उपभोक्ताओं के प्रति दायित्व से बच नहीं सकते।
श्री पारवानी और श्री दोशी ने ई-कॉमर्स नीति, उपभोक्ता मामलों के तहत ई-कॉमर्स नियमों और ई-कॉमर्स नीति में एफडीआई के तहत एक नए प्रेस नोट के साथ मिलकर एक अधिकार प्राप्त नियामक प्राधिकरण की स्थापना की अपनी मांग दोहराई है।