रायपुर। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने आज नई दिल्ली के विज्ञानं भवन में माप -तोल क़ानून, 2009 में दंडात्मक प्रावधानों को गैर आपराधिक श्रेणी में रखने के विषय पर एक राष्ट्रीय वर्कशॉप आयोजित की जिसका उद्घाटन केंद्रीय मंत्री श्री पियूष गोयल ने किया । इस वर्कशॉप में कैट ने जोर देकर कहा की माप-तोल क़ानून में केवल मात्र तकनीकी गलतियों के लिए भी आपराधिक धारा है जिससे देश भर के व्यापारी बुरी तरह प्रताड़ित होते हैं एवं उनमे कारावास का प्रावधान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के व्यापार करने में आसानी के विजन के विरुद्ध है। कैट ने कहा की व्यापारी तो पैक्ड सामान जो व्यापारियों को निर्माताओं, उत्पादक अथवा आयातकर्ता द्वारा दिया जाता है, को देने का साधन मात्र है । इसलिए उन पर आपराधिक धारा लगाना कतई उचित नहीं है। कैट ने कहा की न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत को देखते हुए इस क़ानून के तहत दंडात्मक प्रावधानों को गैर आपराधिक बनाया जाना चाहिए और इस सन्दर्भ में केवल निर्माता की जिम्मेदारी ही तय होनी चाहिए । ज्ञातव्य है की कैट एक लम्बे समय से इस क़ानून के अंतर्गत दंडात्मक प्रावधानों को गैर आपराधिक श्रेणी में रखने की मांग उठाता रहा है । कैट ने इस राष्ट्रीय वर्कशॉप को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा व्यापार करने में आसानी के विजन को आगे बढ़ाने के लिए मंत्रालय की सराहना की और उम्मीद जताई की इस क़ानून के पालन में यदि कोई त्रुटि होती है तो सिविल कार्यवाही का प्रावधान न्यायसंगत होगा जिससे देश में भयमुक्त व्यापार हो सकेगा । कैट ने इस बात पर सहमति जताई की खुदरा ग्राहक के हितों को देखते हुए यह जरूरी हैं की खरीदा गया उत्पाद प्रामाणिक है और पैकेट/उत्पाद पर प्रदर्शित मात्रा के अनुरूप है तथा वस्तु की कीमत गुणवत्ता के हिसाब से ठीक है। किसी भी तरह से ग्राहकों के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए लेकिन इसके लिए व्यापारियों को बेवजह दंडित भी नहीं होना चाहिए ।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने बताया की केंद्रीय वाणिज्य मंत्री श्री पीयूष गोयल ने हाल ही में उपभोक्ता दिवस पर मंत्रालय द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में बताया था की इस क़ानून के तहत पंजीकृत लगभग 60 प्रतिशत मामले असत्यापित बाट और माप के उपयोग हेतु अधिनियम की धारा 33 के तहत हैं, उनमें से 25 प्रतिशत धारा 36 के तहत हैं वहीं गैर-मानक पैकेजिंग की बिक्री के लिए और गैर-मानक वजन और माप के उपयोग के लिए 8-10 प्रतिशत मामले धारा 25 के तहत हैं। यह आँकड़ा दर्शाता है कि अधिनियम अपने नियमों जैसे लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियम, 2011 के साथ व्यापारियों पर अत्यधिक दायित्व डालता है और सुविधापूर्वक व्यापार करने में एक बड़ी बाधा है।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की किसी भी किये गए अपराध को क्रिमिनल अपराध मानने के लिए सिविल अपराधों की तुलना में क्रिमिनल अपराध तय करने के लिए उच्च स्तर के प्रमाण की जरूरत होती है जो उचित एवं संदेह से परे हों लेकिन इस क़ानून में मात्र तकनीकी गलती के लिए भी आपराधिक धारा लगाई जा सकती है। इसके अलावा इस क़ानून का उल्लंघन अनजानी मानवीय त्रुटि से भी हो सकता है और उसमें हर समय एक आपराधिक मंशा नहीं देखी जा सकती है। इस क़ानून के गैर-अनुपालन को हमेशा धोखाधड़ी के रूप में नहीं देखा जा सकता है, यह लापरवाही या अनजाने में चूक का परिणाम भी हो सकता है। श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की इस अधिनियम की धारा 49 के अंतर्गत किसी भी प्रतिष्ठान अथवा कम्पनी के शीर्ष प्रबंधन को किसी भी उल्लंघन के लिए कारावास की सजा दी सकती है भले ही वे अपराध की घटना के समय उपस्थित न हों, यह अमानवीय है।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने यह भी कहा की एक व्यापारी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह पहले से पैक किए गए प्रत्येक उत्पाद को मापेगा या तौलेगा। इससे निर्मित उत्पाद की प्रामाणिकता समाप्त हो जाएगी। किसी उत्पाद की कीमत उसके वजन या माप तथा किस स्तर की गुणवत्ता है, से निर्धारित होती है। ग्राहक को आश्वस्त होना चाहिए कि बेचा गया उत्पाद प्रदर्शित वजन या माप की मात्रा के अनुरूप है, इसलिए उत्पाद के निर्माता और वजन और माप को आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। इसी तरह बिना लाइसेंस के बाट और माप के निर्माण पर प्रतिबंध प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए बना रहना चाहिए। वजन और माप में गुणवत्ता और सटीकता किसी भी उत्पाद में किसी भी प्रामाणिकता की नींव है। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की आवश्यकता है कि ग्राहक के अधिकार सुरक्षित हैं और प्रदर्शित मात्रा या माप के संबंध में किसी भी धोखाधड़ी के खिलाफ उसे बचाया जाता है। इसके अभाव में अराजकता होगी। कोई भी व्यापारिक लेन-देन चाहे वो व्यापारियों के बीच हो अथवा व्यापारियों और ग्राहकों के बीच हो, उसमें 100 प्रतिशत पारदर्शिता और सटीकता होनी चाहिए।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इस दृष्टि से हमें अपने व्यापारिक बाजारों में सख्त गुणवत्ता और मात्रा नियंत्रण की आवश्यकता है। किसी भी सामान की मात्रा नियंत्रण उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि गुणवत्ता नियंत्रण, केवल तभी हम भारत को एक प्रामाणिक बाजार के रूप में बनाए रख सकते हैं। ग्राहकों को ऐसे उत्पाद की आपूर्ति करने के लिए सर्वोत्तम संभव जांच और यदि सामान ख़राब है तो ग्राहक को उसके द्वारा दी गई राशि को तत्काल अवश्य वापिस मिलनी चाहिए । इसी से व्यापारियों एवं ग्राहकों के बीच आपसी भरोसा बढ़ेगा जो स्वस्थ व्यापार के लिए बेहद आवश्यक है।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की वर्तमान में क़ानून उल्लंघन के लिए इस क़ानून में कारावास का प्रावधान कानूनी दृष्टिकोण से आपराधिक अपराध की मानक सीमा के अनुरूप नहीं है। इसके अलावा एक सिविल गलती के लिए इन आपराधिक प्रावधानों ने उत्पादों की पैकेजिंग और लेबलिंग को बढ़ावा देने में कोई मदद नहीं की है जो की वास्तव में इस क़ानून का मूल इरादा था। इसलिए ऐसे प्रावधानों की आवश्यकता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और वैकल्पिक रूप से इस क़ानून के अंतर्गत की गई किसी भी गलती को सिविल अपराध माना जाना चाहिए और इन्हे गैर आपराधिक बनाया जाना चाहिए। नोटः इस क़ानून की धारा 25 में गैर-मानक वजन, माप या अंक के उपयोग के लिए दंड का प्रावधान है और धारा 26 में बाट और माप के मानकों में छेड़छाड़ या परिवर्तन करने के लिए दंड का प्रावधान है। इन दोनों धाराओं में जुर्माने का प्रावधान है जो 25000 रुपये तक हो सकता है और बाद के अपराध के लिए छह महीने तक की कैद भी हो सकती है यहीं धारा 28-37, 39 और 41-47 में किये गए अपराध के लिए एक वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।