रायपुर। छत्तीसगढ़ संयुक्त अनियमित कर्मचारी महासंघ के प्रांतीय संयोजक गोपाल प्रसाद साहू ने भूपेश सरकार को अपने चुनावी घोषणा पत्र में आउटसोर्सिंग बंद करने के किए गए वादे को शीघ्र पूरा करने के लिए विज्ञप्ति जारी की है। जारी विज्ञप्ति में श्री साहू ने कहा है कि प्रदेश की शासकीय विभागों के 680 से अधिक कार्यालयों में लाखों अनियमित कर्मचारियों कर्मचारी कार्यरत है। कांग्रेस ने अपने जन-घोषणा पत्र में नियमितीकरण करने तथा शासकीय कार्यालयों में आउटसोर्सिंग से नियोजन बंद करने का वादा किया है। परन्तु सरकार के 3 वर्ष से अधिक समय होने के बाद भी इन वादों को अमल में नहीं लाया है जिससे कर्मचारियों में भरी आक्रोश है।
वर्तमान में 100 अधिक कार्यालयों में 35 हजार से अधिक अनियमित कर्मचारियों का नियोजन प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से किया गया है। जिनमें मुख्यरूप से नगरीय प्रशासन, जनसंपर्क, कृषि, बिजली, पर्यावरण एवं आवास, श्रम, उद्योग, समाज कल्याण, स्वास्थ्य, स्कुल शिक्षा, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, पर्यटन, सुचना प्रद्योगिकी, मार्कफेड, उच्च शिक्षा, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, आदिम जाति कल्याण विभाग के अधीनस्थ कार्यालय शामिल है।
प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से नियोजित अनियमित कर्मचारियों को वर्तमान में कार्यालय से अनुबंध आधार पर दो प्रकार के वेतन देने का प्रावधान है। पहला संविदा वेतन, श्रम विभाग द्वारा निर्धारित वेतन या लमसम मूल वेतन वेतन निर्धारित कर, मूल वेतन पर 18 प्रतिशत जी.एस.टी. एवं 5 से 10 प्रतिशत सेवा शुल्क के साथ एजेंसी द्वारा देयक प्रस्तुत किया जाता है जिससे सरकार को 25 से अधिक प्रतिशत की राशि सरकार को देनी पड़ती है। इससे सरकारी कोष को भारी नुकसान हो रहा है। दूसरी पद्धति में मूल वेतन में ही एजेंसी द्वारा 18 प्रतिशत जी.एस.टी. एवं 5 से 10 प्रतिशत सेवा शुल्क का कटौती कर कर्मचारी को भुगतान किया जाता है जिससे कर्मचारी को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और इसी कारण कर्मचारी एवं संस्थाओं के मध्य हमेशा विवाद की स्थिति बनी रहती है। इसके अतिरिक्त नौकरी देने के नाम पर मोटी रकम की मांग की जाती है।
आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियोजित कर्मचारियों को कार्यालयों में नियत समय के बाद भी कार्य करने मजबूर किया जाता है। कर्मचारियों को आये दिन नौकरी से निकालने की धमकियाँ दी जाती है। नियमित अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा दोयम दर्जे का व्यव्हार किया जाता है। जिससे कर्मचारी निरंतर मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से प्रताड़ित होते रहते है और नौकरी चले जाने के भय से आवाज उठाने से डरते है। इन परिस्थितियों के कारण कार्यालयों में प्रशासनिक संघर्ष की नौबत आ रही है।