(अर्जुन झा)
जगदलपुर। बस्तर की माटी के लाल, आदिवासी संस्कृति के सरल, सहज स्वरूप के प्रतिरूप छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा अपनी तेज तर्रार कार्यशैली और सादगी के लिए पहचाने जाते हैं। बस्तर की सांस्कृतिक विरासत के एक वारिस के तौर पर वे हमेशा ही बस्तर की लोक संस्कृति के तीज त्योहार पर एक विशुद्ध बस्तरिया आदिवासी ही होते हैं। ऐसे मौकों पर वे न तो राजनेता होते हैं न रुतबेदार मंत्री। वे सिर्फ आदिवासी होते हैं जो अपनी सामाजिक मान्यताओं के अनुसार पूरे श्रद्धा भाव से आयोजन के रस में सराबोर हो जाते हैं। ऐसे ही लोक संस्कृति पर आधारित सामाजिक आयोजन में कवासी लखमा के सिर पर देवी सवार हो गईं और भाव विभोर लखमा झूम कर नाच उठे। बस्तर की आदिवासी परंपरा, संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप ग्रामीण अंचल के मड़ई मेले के साथ-साथ मंदिर के पूजा-पाठ में कवासी लखमा अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराते हैं। कवासी लखमा अपने विधानसभा क्षेत्र कोंटा के दोरनापाल गांव में स्थित शीतला माता मंदिर में आयोजित तीन दिवसीय मंडई मेले में शामिल हुए। इस मेले को धूमधाम से मनाने के लिए आदिवासी परंपरा और रीति-रिवाज के तहत देवी से अनुमति ली। इस दौरान कवासी लखमा पर देवी सवार हो गईं।जिसके बाद वे बस्तरिया मोहरी बाजा की धुन पर थिरकते रहे और खुद को कोड़े भी मारे। इसके बाद इस तीन दिवसीय मेले को मनाने की अनुमति देवी से मिली।दोरनापाल के शीतला माता मंदिर में तीन दिवसीय मेले का आयोजन चल रहा है। हर साल की तरह इस साल भी कवासी लखमा इस मंडई मेले में शामिल हुए।