0 छत्तीसगढ़ में आकार ले रही छत्तीसगढ़ में पर्यटन तीर्थों की नयी श्रृंखला
रायपुर। पौराणिक मान्यता के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु राम ने लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था। वनवास काल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया के सीतामढ़ी हरचौका से किया था। उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए वे छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों से गुजरे। सुकमा का रामाराम उनका अंतिम पड़ाव था। प्रभु राम वनवास काल के दौरान लगभग 2260 किलोमीटर की यात्रा की थी। ऐसे में छत्तीसगढ़ से जुड़ी भगवान राम के वनवास काल की स्मृतियों को सहेजने तथा संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना शुरू की गई है। चंदखुरी के बाद अब शिवरीनारायण में भी विकास कार्य पूरा हो जाने से राज्य में पर्यटन तीर्थों की नयी श्रृंखला आकार ले रही है।
परियोजना के अंतर्गत 75 स्थानों को चिन्हांकन किया गया है। इसके अंतर्गत प्रथम चरण में चयनित 9 पर्यटन तीर्थों का तेजी से कायाकल्प कराया जा रहा है। इस परियोजना में इन सभी पर्यटन तीर्थों की आकर्षक लैण्ड स्कैपिंग के साथ-साथ पर्यटकों के लिए सुविधाओं का विकास भी किया जा रहा है। 138 करोड़ रूपए की इस परियोजना में उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले तक भगवान राम के वनवास काल से जुड़े स्थलों का संरक्षण एवं विकास किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर में वर्ष 2019 में भूमिपूजन कर राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण की शुरूआत की थी। माता कौशल्या की जन्मभूमि चंदखुरी के बाद अब माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण में भी विकास कार्य पूरा हो चुका है, जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल 10 अप्रैल को करेंगे।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं परम्परा में प्रभु श्री राम रचे-बसे है। जय सिया राम के उद्घोष के साथ यहां दिन की शुरूआत होती है। इसका मुख्य कारण है कि छत्तीसगढ़ वासियों के लिए श्री राम केवल आस्था ही नहीं है बल्कि वे जीवन की एक अवस्था और आदर्श व्यवस्था भी हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी पूजा भांजे के रूप में होती है। रायपुर से महज 27 कि.मी. की दूरी पर स्थित चंदखुरी, आरंग को माता कौशल्या की जन्मभूमि और श्रीराम का ननिहाल माना जाता है। छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोसल है।
रघुकुल शिरोमणि श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या है लेकिन छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि है। वनवास काल के दौरान अयोध्या से प्रयागराज, चित्रकूट सतना गमन करते हुए श्रीराम ने दक्षिण कोसल याने छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के भरतपुर पहुंचकर मवई नदी को पार कर दण्डकारण्य में प्रवेश किया। मवई नदी के तट पर बने प्राकृतिक गुफा मंदिर, सीतामढ़ी-हरचौका में पहुंचकर उन्होनें विश्राम किया। इस तरह रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ़ में पहला पड़ाव भरतपुर के पास सीतामढ़ी-हरचौका को माना जाता है। छत्तीसगढ़ की पावन धरा में रामायण काल की अनेक घटनाएं घटित हुई हैं, जिसका प्रमाण यहां की लोक संस्कृति, लोक कला, दंत कथा और लोकोक्तियां हैं।
कोरिया जिले का सीतामढ़ी रामचन्द्र जी के वनवास काल के पहले पड़ाव के नाम से भी प्रसिद्ध है। पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में रामगिरि पर्वत का उल्लेख आता है। सरगुजा जिले का यही रामगिरि-रामगढ़ पर्वत है। यहां स्थित सीताबेंगरा-जोगीमारा गुफा की रंगशाला को विश्व की सबसे प्राचीन रंगशाला माना जाता है। मान्यता है कि वन गमन काल में रामचंद्र जी के साथ सीता जी ने यहां कुछ समय व्यतीत किया था, इसीलिए इस गुफा का नाम सीताबेंगरा पड़ा।
राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत प्रथम चरण में सीतामढ़ी-हरचौका (जिला कोरिया), रामगढ़ (जिला सरगुजा), शिवरीनारायण (जिला जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (जिला बलौदाबाजार-भाटापारा), चंदखुरी (जिला रायपुर), राजिम (जिला गरियाबंद), सप्तऋषि आश्रम सिहावा (जिला धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (जिला सुकमा) को विकसित किया जा रहा है।
राम वन गमन पथ : कॉन्सेप्ट प्लान के लिए 138 करोड़ रूपए का प्रावधान –
राम वन गमन कॉन्सेप्ट प्लान में प्रभु राम के छत्तीसगढ़ में वनवास काल में भ्रमण से संबंधित 75 स्थानों को धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनायी गई है। इनमें प्रथम चरण में 9 स्थलों को चिन्हित कर वहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। इसके लिए 138 करोड़ रूपए की कार्ययोजना तैयार की गई है। चयनित स्थानों पर आवश्यकता अनुसार पहुंच मार्ग का उन्नयन, संकेत बोर्ड, पर्यटक सुविधा केन्द्र, इंटरप्रिटेशन सेंटर, वैदिक विलेज, पगोड़ा वेटिंग शेड, मूलभूत सुविधा, पेयजल व्यवस्था, शौचालय, सिटिंग बेंच, रेस्टोरेंट, वाटर फ्रंट डेव्हलपमेंट, विद्युतीकरण आदि कार्य कराए जाएंगे। राम वन गमन मार्ग में आने वाले स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम रायपुर जिले के आरंग तहसील के गांव चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से शुरू हुआ है।
शिवरीनारायण : जहां प्रभु राम ने खाए थे शबरी के जूठे बेर
छत्तीसगढ़ में जांजगीर-चांपा जिले में प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शिवनाथ, जोंक और महानदी का त्रिवेणी संगम स्थल शिवरीनारायण है। शिवरीनारायण धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। इस विष्णुकांक्षी तीर्थ का संबंध शबरी और नारायण होने के कारण इसे शबरी नारायण या शिवरीनारायण कहा जाता है। यहां नर-नारायण और माता शबरी का मंदिर है जिसके पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके पत्ते दोने के आकार के हैं। इस स्थान की महत्ता इस बात से पता चलती है कि देश के चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम के बाद इसे पांचवे धाम की संज्ञा दी गई है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है इसलिए छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहां प्रभु राम का नारायणी रूप गुप्त रूप से विराजमान है इसलिए यह गुप्त तीर्थधाम या गुप्त प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है।
शिवरीनारायण रामायण कालीन घटनाओं से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार वनवास काल के दौरान यहां प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। रामायण काल की स्मृतियों को संजोने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ के विकास के लिए कॉन्सेप्ट प्लान बनाया गया है। इस प्लान में शिवरीनारायण में मंदिर परिसर के साथ ही आस-पास के क्षेत्र के विकास और श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधाओं के लिए यहां 39 करोड़ रूपए की कार्य योजना तैयार की गई है। प्रथम चरण में 6 करोड़ रूपए के विभिन्न कार्य पूर्ण कर लिए गए हैं, इससे यहां आने वाले लोगों को नई सुविधाएं मिलेंगी।
स्थापत्य कला एवं मंदिर
शिवरीनारायण का मंदिर समूह दर्शनीय है। यहां की स्थापत्य कला और मूर्तिकला बेजोड़ है। यहां नर-नारायण मंदिर है, इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। केशवनारायण मंदिर ईंटों से बना है, यह पंचरथ विन्यास पर भूमि शैली पर निर्मित है। यहां चंद्रचूड़ महादेव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर भी दर्शनीय है। यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सदृश्य है। शिवरीनारायण शहर से लगे ग्राम खरोद में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक मंदिर हैं इनमें मुख्य रूप से दुल्हादेव मंदिर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर, शबरी मंदिर प्रसिद्ध है।
प्रसिद्ध है यहां की रथ यात्रा
शिवरीनारायण शैव, वैष्णव धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान होने के कारण यहां रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से जगन्नाथपुरी ले जाया गया था। यहां पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा का आयोजन होता है। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के साधु संत और श्रद्धालु शामिल होते हैं।
छत्तीसगढ़ है प्राचीन दक्षिणापथ-
शोधार्थियों के अनुसार त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था। दण्डकारण्य में प्रभु राम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है। शोधकर्ताओं के शोध से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रभु श्रीराम के द्वारा उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों का भ्रमण करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था। अतः छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है।
शिवरीनारायण में नई सुविधाएं-
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में राम वन गमन परिपथ के अंतर्गत विकसित की गई नई सुविधाओं और विभिन्न कार्यों का लोकार्पण करेंगे। इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है।